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अमर गीतों में भविष्य दर्शन

नया इतिहास बनाने की जैसी कोशिश चल रही है उससे तो लगता है कि आनंद बख्शी ने सैंतीस साल पहले आज की परिस्थिति को देख लिया था
तथ्य हो या न हो, इतिहास बनकर रहेगा!

मैंने कहीं पढ़ा था कि कवि भविष्यद्रष्टा होते हैं, हालांकि मुझे इस बात पर यकीन नहीं आया। मैंने किसी कवि को ज्योतिषी का धंधा करते हुए नहीं देखा जबकि वह कविता लिखने से ज्यादा फायदेमंद और जनता से जुड़ा धंधा है। मैं जिन कवियों को जानता हूं उनमें से ज्यादातर को सड़क पर सामने का गड्ढा तक नहीं दिखता, भविष्य देखना तो दूर की बात है। नौजवानी में जब कोई इश्क में नाकाम होता है तो उसे अक्सर उस तरह के उर्दू शेर याद आते हैं कि देखो शायर ने वही बात लिखी थी जो अपने साथ हुई। लेकिन वह कोई खास बात नहीं है, भारत में इश्क हमेशा से खतरनाक कारोबार रहा है, जब बजरंग दल नहीं था तब भी।

लेकिन पिछले दिनों मुझे कवि के भविष्यद्रष्टा होने का एक सबूत मिल गया। ये कवि हैं हिंदी फिल्मों के अमर महाकवि स्वर्गीय आनंद बख्‍शी जी। आनंद बख्‍शी ने सन 1981 की फिल्म एक दूजे के लिए में एक गाना लिखा था- “हम तुम दोनों जब मिल जाएंगे, एक नया इतिहास बनाएंगे, और अगर हम न मिल पाए तो (भी) एक नया इतिहास बनाएंगे।” बख्‍शी जी ने आज से सैंतीस साल पहले आज की परिस्थिति को देख लिया था। हमारे देश में पद्मावती से अकबर, भगत सिंह और नेहरू तक को लेकर जैसे नया इतिहास बनाने की कोशिश चल रही है वह इस गाने से अभिव्यक्त होती है।

गाने में आता है- हम तुम दोनों जब मिल जाएंगे तो एक नया इतिहास बनाएंगे, यानी अगर नया इतिहास लिखने वाले इतिहासकार को तथ्य मिल जाएंगे तो नया इतिहास लिखा जाएगा। लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण दूसरी पंक्ति है जहां कवि दृढ़ता से अपना संकल्प व्यक्त करता है कि अगर न मिल पाएं तो भी नया इतिहास तो बन कर ही रहेगा। ‘मिलना’ क्रिया में दो या दो से ज्यादा लोगों का होना अनिवार्य है। एक आदमी अपने आप से तो नहीं मिल सकता। अब एक व्यक्ति को दूसरा दो सूरतों में नहीं मिल सकता, पहली, उसके आने में कोई दिक्कत हो या वह नहीं आना चाहता हो और दूसरी सूरत यह है कि दूसरे का अस्तित्व ही न हो, तो वह कैसे मिलेगा। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहता है कि अगर तथ्य न मिलें या तथ्यों का अस्तित्व ही न हो, तो भी नया इतिहास बनेगा। अगर नेहरू, भगत सिंह से जेल में मिले हों या अकबर की हकीकत जो भी हो, नया इतिहास तो बनकर रहेगा। तथ्यों की गैर मौजूदगी जैसी छोटी-मोटी दिक्कतों के लिए नया इतिहास बनाने का कार्यक्रम रोका नहीं जा सकता।

जब आनंद बख्‍शी ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी तो यह तय है कि जालिम जमाना कितना ही चाहे, नया इतिहास तो लिखा ही जाएगा। जब जालिम जमाना नहीं कर सकता तो हमारी औकात क्या है। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए यह भी बख्‍शी जी उससे भी पुरानी फिल्म अमीर गरीब के इस गीत में बता गए हैं-“बैठ जा, बैठ गई, खड़ी हो जा, खड़ी हो गई।” यानी आज्ञापालन करने में ही भलाई है, समझ लीजिए।

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