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नौकरी के साथ कला साधना

नई पीढ़ी के ऐसे कई शास्त्रीय संगीतकार और नर्तक हैं, जिन्होंने अपनी कला साधना और पेशे (काफी हद तक इंजीनियरिंग) के बीच गजब का संतुलन बनाया
वीपी अरुण द्रविड़, पूर्व बैंक मैनेजर धनंजय हेगड़े

आनंद शंकर जयंत यात्राएं खूब करती हैं, जो किसी रेलवे अफसर के लिए अजूबा नहीं है। लेकिन उनकी कई यात्राएं अक्सर सरकारी कामकाज के अलावा होती हैं और इनमें विदेश यात्राएं भी हैं। दरअसल, वे काफी व्यस्त शास्‍त्रीय नृत्यांगना हैं। हैदराबादी जयंत ने 1970 के दशक में चेन्नै के प्रसिद्ध कलाक्षेत्र से भरतनाट्यम और कुचीपुड़ी सीखा। उन्होंने पर्यटन विषय में पीएचडी किया है और वे सिकंदराबाद में सेंटर फॉर रेलवे इन्फॉर्मेशन सिस्टम में वरिष्ठ अधिकारी भी हैं।

यह तो एक-दूसरे से बिलकुल उलट पेशा है? लेकिन, पद्म पुरस्कार से सम्मानित आनंद कहती हैं, ऐसा बिलकुल नहीं है। वे आगे कहती हैं, “एक नियमित नौकरी आपको अपने कलात्मक सपने को पूरा करने में मददगार साबित होती है। मुझे सरकारी नौकरी में 30 साल हो चुके हैं। यह सबकुछ बेहतर समय प्रबंधन पर निर्भर करता है।”

अपने मूल पेशे से बिलकुल अलग शास्‍त्रीय संगीत या नृत्य जैसे कला क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने की मिसाल बहुत कम है। हालांकि, इस तरह का चलन काफी बाद में प्रचलित हुआ। लेकिन ऐसा नहीं है कि पहले ऐसा कुछ नहीं था। इसके लिए संगीतकार वी.एन. भातखंडे को श्रेय देना शायद गलत नहीं होगा। उन्होंने 1890 के दशक में अविभाजित भारत के कराची हाइकोर्ट में वकालत की और हिंदुस्तानी शास्‍त्रीय संगीत पर पहला आधुनिक ग्रंथ भी लिखा। सुदूर दक्षिण से एमबीबीएस और एमडी करने वाले गायक श्रीपाद पिनाकपानी (1913-2013) ने शीर्ष मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाने के साथ-साथ अपने मूल निवास आंध्र में संगीत की कर्नाटक परंपरा को समृद्ध किया।

अब 2018 में बात करें तो मुंबई में मेट्रो रेल ट्रैक बिछाने के लिए खुदाई का काम हो रहा है। युवा खयाल गायक आदित्य मोदक कुछ समय पहले तक कार से बोरीवली से गोरेगांव दफ्तर जाते थे। वे जेपी मॉर्गन चेस में एक चार्टर्ड एकाउंटेंट थे। पंडित राम देशपांडे के शिष्य मोदक कहते हैं, “ट्रैफिक जाम की वजह से तीन घंटा यूं ही लग जाता था। फिर मैं अपनी कार में इलेक्ट्रॉनिक तानपुरा पर अभ्यास करने लगता। इस तरह घर से आने और जाने में जितना समय लगता, वह मेरे लिए अभ्यास का वक्त बन जाता।” इस साल अप्रैल में आदित्य ने संगीत पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सीए की नौकरी छोड़ दी। यह एक ऐसा कदम था, जिसे 50 वर्षीय कर्नाटक गायक संजय सुब्रह्मण्यम ने 1999 में उठाया और सफल हुए। हाल में त्रिशूर भाइयों (श्रीकृष्ण और रामकुमार) ने भी कुछ ऐसा ही कदम उठाया।

मुंबई शहर और शास्‍त्रीय संगीत में मोदक के एक हमनाम साथी भी हैं। आदित्य खांडवे महालक्ष्मी में लाला लाजपत राय इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में फाइनेंस पढ़ाते हैं। हालांकि, वे अपने रियाज के लिए रोज सुबह तीन बजे उठ जाते हैं। वे कहते हैं, “अपने गुरु उल्हास काशलकर की तरह मुझे अपनी नौकरी से शास्‍त्रीय संगीत से जुड़े रहने के लिए प्रेरणा मिलती है।” कैसे? “मुझे अपने संगीत के लिए पीआर करने की जरूरत नहीं है। मैं केवल उन लोगों के सामने परफॉर्म करता हूं, जो हिंदुस्तानी संगीत को लेकर गंभीर हैं। मुझे वित्तीय परेशानी नहीं होती, क्योंकि मुझे दूसरे पेशे से नियमित आमदनी होती है।”

कला के प्रति इस तरह का लगाव किसी को पूर्णकालिक संगीतकार बना सकता है। मुंबई के धनंजय हेगड़े ने इस गर्मी में कर्नाटक बैंक की प्रबंधक की नौकरी छोड़ दी, ताकि वह अपना ध्यान उस पर केंद्रित कर सकें, जिससे वे लंबे समय से जुड़े रहे हैं। और, वह है हिंदुस्तानी गायन। अपने गुरु विनायक तोरवी (69 वर्ष), जो खुद एक बैंकर थे, की तरह धनंजय दफ्तर पहुंचते ही संगीत बिलकुल बंद कर देते हैं। वह कहते हैं, “बैंक पहुंचते ही मैं हम्म...भी नहीं करता। इसी तरह मैं कभी भी घर पर दफ्तर का काम नहीं लाता हूं। मुझे यह ज्ञान अपने गुरु से मिला है।”

जाहिर है कि सबकी आदतें अलग-अलग होती हैं। रुद्र वीणा वादक सुवीर मिश्रा मुंबई में कस्टम ऐंड सेंट्रल एक्साइज विभाग में कमिश्नर हैं। जैसा कि सिविल सेवा के अधिकारी कहते हैं, वे कभी-कभी मानसिक पूजन करते हैं। यह मानसिक अभ्यास (संगीत का) है। जिया फरीदुद्दीन डागर के छात्र सुवीर कहते हैं, “दफ्तर के खाली पलों में मैं राग में लीन हो जाता हूं और कल्पना करता हूं कि अपना वाद्ययंत्र बजा रहा हूं। ध्वनि मस्तिष्क में घूमती है और मैं अपनी घूमने वाली कुर्सी पर बैठकर सच में अालाप या जोर-झाला पेश करने लगता हूं।”

अब बेंगलूरू चलते हैं, जहां 40 वर्षीय पट्टाभिराम पंडित आधी रात के बाद संगीत का अभ्यास करते हैं। पट्टा‌भ‌िराम फिलिप्स हेल्थकेयर में सॉफ्टवेयर प्रोग्राम हेड हैं और कंपनी उन्हें कई बार काम के सिलसिले में विदेश भेजती है। वे रात के खाने के बाद अपने बनाशंकरी निवास पर युवाओं को कर्नाटक संगीत सिखाते हैं। पट्टा‌‌भि कलात्मक स्किल को बढ़ावा देने वाले अपने गुरु के.वी. नारायणस्वामी और वरिष्ठ सहयोगियों के प्रति सम्मान रखते हैं। वह कहते हैं, “वे (शिष्य) 11 बजे चले जाते हैं और उसके बाद मैं लगभग दो घंटे तक अभ्यास करता हूं। फिर सुबह मैं थोड़ी देर से उठता हूं और सीधे दफ्तर निकल जाता हूं।”

बेंगलूरू में काम करने वाले एस. साकेतरमन कुछ महीने पहले ही अपने शहर चेन्नै लौटे हैं। लेकिन 36 वर्षीय इस कर्नाटक गायक ने एमएनसी निवेश बैंक के साथ काम करना जारी रखा है और वह 2008 से आइटी इंजीनियर हैं। लालगुड़ी जयरमन के शिष्य साकेतरमन ट्रैफिक की परेशानी से बचने के लिए हमेशा ऑफिस के पास ही रहते थे। वह बताते हैं, “शुरुआत में दो चीजों के बीच संतुलन बनाना थोड़ा कठिन था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मैंने अपने बॉस का विश्वास हासिल किया है। मैं संगीत पर दिन में आठ घंटे बिताता हूं। जब मुझे कहीं परफॉर्म के लिए नहीं जाना होता तो सप्ताहांत में यह अवधि 12-14 घंटे की होती है।”

साकेतरमन के बेंगलूरू के सहयोगी अरुण वारियर एक वाइस प्रेसिडेंट (वीपी) हैं। वह अपने राज्य के शास्‍त्रीय पंचवाद्यम कलाकारों की गोष्ठी में मड्डलम ड्रम बजाने के लिए हर सप्ताहांत केरल जाने के लिए रात में ट्रेन से सफर करते हैं। उनके कई कार्यक्रम कोच्चि और त्रिशूर के आसपास होते हैं। प्रसिद्ध कर्नाटक गायक श्रीवलसन जे. मेनन सप्ताह में पांच दिन इन दोनों शहरों के बीच सफर करते हैं, क्योंकि वे मनुथी के केरल कृषि विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी हैं। डॉ. मेनन कहते हैं, “विश्वविद्यालय के कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र के प्रमुख के रूप में मैं नियमित रूप से किसानों से बातचीत करता हूं। इससे मुझे समाज से शास्‍त्रीय संगीतकारों को मिलने वाले सम्मान की जमीनी हकीकत का अंदाजा रहता है। मेनन की आवाज कुछ हद तक हिंदुस्तानी गायक गणपति भट्ट की तरह लगती है, जो खुद उत्तर कन्नड़ के हसनगी गांव में एक कृषिविद हैं।

नेय्याट्टिंकारा वासुदेवन के शिष्य 47 वर्षीय मेनन ने 1997 में दिल्ली के पूसा संस्थान से पीएचडी किया था। राष्ट्रीय राजधानी में शोभना नारायण एक कथक सेलिब्रिटी हैं, जिन्होंने भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा में कॅरिअर अधिकारी के रूप में काम किया। उन्होंने सेवानिवृ‌त्त‌ि से दो साल पहले 2008 में मद्रास विश्वविद्यालय से दूसरी एमफिल (रक्षा और रणनीतिक अध्ययन में) किया था। महरौली में कुतुबमीनार के पास ध्रुपद वाद्ययंत्र वादक शरद मुश्ती एक प्रतिष्ठित स्टूडियो के सह-निदेशक हैं। यह स्टूडियो कथा संग्रहालय डिजाइन में माहिर है। मुंबई के रहने वाले सितारवादक अरविंद पारिख के शिष्य और रुद्र वीणावादक शरद कहते हैं, “वॉल्यूमेट्रिक और बहुआयामी शिल्प के रूप में आर्किटेक्चर और संगीत, किसी  कलाकार की बातचीत में लय और पुनरावृत्ति, जगह और समय, क्रम और अराजकता की बातचीत में आकार लेते हैं।”

पूरब की ओर चलें तो, इस साल की शुरुआत में कोलकाता ने अपने सरोदवादक बुद्धदेव दासगुप्त को हमेशा के लिए खो दिया। दासगुप्ता शिवपुर में 1856 में स्थापित बंगाल इंजीनियरिंग ऐंड साइंस यूनिवर्सिटी के छात्र थे। उन्होंने 32 वर्षों तक इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉर्पोरेशन में ट्रेनर-प्रशासक के रूप में काम किया था। हालांकि, शहर में अभी भी कुछ व्यवसायों में हिंदुस्तानी संगीतकार हैं। जैसे, सितारवादक सुब्रतो रॉय चौधरी, इन्होंने शहर के प्रमुख कॉलेजों में अर्थशास्‍त्र (दो दशकों तक) पढ़ाया है। सरोदवादक कल्याण मुखर्जी ने इंडियन स्टैटिसटिकल इंस्टीट्यूट में नौकरी करने से पहले न्यूयॉर्क के कॉर्नेल विश्वविद्यालय से गणित में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की। औद्योगिक अर्थशास्‍त्री सुगाता मार्जित हाल ही में कलकत्ता विश्वविद्यालय के वीसी के रूप में सेवानिवृत्त हुए। वे हिंदुस्तानी गायक भी थे। आइटीसी संगीत अनुसंधान अकादमी के कार्यकारी निदेशक अमित मुखर्जी किराना घराना के गायक हैं। वे 32 साल तक जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (भूगर्भीय सर्वेक्षण) में वैज्ञानिक रहे।

शिक्षण भाषाओं ने कुछ कला-प्रेमी शिक्षाविदों को काफी प्रोत्साहित किया है। आइआइटी-बॉम्बे में अंग्रेजी पढ़ाने वाले वोकलिस्ट मिलिंद माल्शे ने हिंदुस्तानी वादक वीना सहस्‍त्रबुद्धे के साथ मिलकर ‘संगीत की समझ’ संस्था की स्थापना की और पिछले साल सेवानिवृत्त होने तक कैंपस में उसे चलाया। वह मुस्कराते हुए कहते हैं, इससे कुछ छात्र हमेशा के लिए संगीत लेने के लिए प्रेरित हुए।” पुणे के इतिहासकार-पुरातत्वविद चैतन्य कुंटे कहते हैं, “इंडोलॉजी में मेरी रुचि ने संगीतशास्‍त्र पर शोध में काफी मदद की। उनके ही शहर के श्रीराम हस्बनीस भी हार्मोनियम बजाते हैं। वैसे वह एक आइटी प्रोफेशनल हैं और मुंबई में यूटीवी टून्ज के साथ फ्रीलांस करने के बाद एक अनुभवी यूजर डिजाइनर के रूप में काम करते हैं। हिंदुस्तानी संगीत के विद्वान दीपक राजा खुद एमबीए और सितारवादक हैं। दीपक राजा कहते हैं, “पेशा जीवनयापन का साधन है, लेकिन कला जिंदगी है। आपको दोनों की जरूरत है।

इसी तरह, देश में नई पीढ़ी के कई शास्‍त्रीय संगीतकार और नर्तक हैं, जो अपनी कला और पेशे (काफी हद तक इंजीनियरिंग) के बीच संतुलन बनाकर रखते हैं। कर्नाटक गायक टीएनएस कृष्ण, वी. शंकरनारायणन, प्रसन्ना वेंकटरामन, मुरलीधर कांची (एमबीबीएस, एमडी, नारायण हुरुदयालय, बेंगलूरू में काम करते है), अश्विन डीबी, विग्नेश ईश्वर, वायलिनिस्ट एचके वेंकटराम और ज्योत्सना श्रीकांत, बांसुरीवादक रसिका शेकर, मृदंगवादक लालगुड़ी श्रीगणेश, वीणावादक अश्विन आनंद और जेटी जयराज कृष्णन इसके उदाहरण हैं। कविता रामू (भरतनाट्यम, आइएएस) और रेंजिनी सुरेश (कथककली, वकील/ राजनेता) नृत्य से उदाहरण हैं। वहीं, उपन्यासकार राधिका झा और मनस्विनी मोहंती (इंजीनियरिंग) ओडिसी नृत्यांगना हैं। हिंदुस्तानी बांसुरीवादक प्रवीण गोदखिंडी धारवाड़ के एसडीएम कॉलेज से बीटेक (इलेक्ट्रिकल) हैं, जबकि तबलावादक राघवेंद्र नाकोद नोकिया में एक आरऐंडडी इंजीनियर हैं।

अगर प्रतिष्ठित किशोरी आमोनकर के शिष्य अरुण द्रविड़ एमआइटी से पीएचडी के बाद कैलिफोर्निया में जैकब्स इंजीनियरिंग में वीपी हैं, तो आइआइटी दिल्ली के कंप्यूटर प्रोफेसर मौसम ने अपने सिएटल में प्रवास (2001-13) के दौरान शास्‍त्रीय संगीत सीखने और स्थानीय कार्यक्रमों में तबला और हार्मोनियम बजाने में भी बिताया। वह यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन में गणित के प्रोफेसर रमेश गांगुली के कर्जदार हैं। राजा उन्हें उत्कृष्ट संगीतकार मानते हैं। न्यूयॉर्क के मैनहट्टन में टेकी अनुराग हर्ष एक गेमिंग कंपनी चलाते हैं। वह सबसे लोकप्रिय ऑनलाइन भारतीय शास्‍त्रीय संगीतकारों में से एक हैं। बोस्टन में रहने वालीं एनेस्थेटिस्ट सपना गोविंदन मोहिनीयट्टम नृत्य करती हैं।

अब मुंबई लौटते हैं, जहां 57 वर्षीय गायिका अश्विनी भिड़े ने बार्क से डॉक्टरेट की डिग्री ली और शहर के एक कॉलेज में दो साल तक माइक्रो बायोलॉजी पढ़ाया। उनकी सीनियर संगीतकार प्रभा अत्रे (86) के पास दो डिग्रियां हैं। इसी तरह मृदंगवादक उमायालपुरम के शिवरामन (82) के पास भी, लेकिन दोनों में से किसी ने इसका उपयोग नहीं किया। आनंद कहती हैं, यह सब प्राथमिकता पर निर्भर करता है, जैसे मैं खाना नहीं बनाती हूं।

लेकिन फिर ऐसा है कि इस तरह के लोग कुछ अलग ही करते हैं।

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