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हाईकमान को चुनौती

राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने झुकने को तैयार नहीं मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे
शह और मात : पार्टी नेतृत्व के साथ टकराव में भारी पड़ती दिख रहीं वसुंधरा राजे

राजस्थान में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद को लेकर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व में शह और मात की लड़ाई चल रही है। माना जा रहा है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान में अपनी पसंद के रूप में केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री गजेंद्र शेखावत को पार्टी अध्यक्ष बना कर भेजना चाहता है। मगर मुख्यमंत्री राजे ने इसे स्वीकार नहीं किया। अब नए अध्यक्ष की नियुक्ति कर्नाटक चुनाव तक टलती नजर आ रही है।

संगठन में अजेय और एकमेव शक्ति के रूप में आगे बढ़ते रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी प्रमुख अमित शाह के लिए कदाचित यह पहला अनुभव होगा। मानो उनके अश्वमेध का घोड़ा राजस्थान के मरुस्थल में रोक लिया गया है। पार्टी ने जैसे ही शेखावत को अशोक परनामी की जगह नया अध्यक्ष बनाने का संकेत दिया, मुख्यमंत्री के समर्थकों ने इस नियुक्ति के विरोध में मोर्चा खोल दिया। बात इतनी बढ़ी कि केंद्रीय नेतृत्व ने राजे को दिल्ली बुलाया। लेकिन घंटों की मशक्कत के बाद भी राजे उसकी सांगठनिक पसंद के प्रति राजी नहीं हो पाईं।

पार्टी सूत्रों के अनुसार, जोधपुर से सांसद शेखावत के नाम की औपचारिक घोषणा होती, इससे पहले ही खबर लीक हो गई। इसने पार्टी में राजे गुट को तलवार भांजने का अवसर दे दिया। इसके पहले केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री राजे के भरोसेमंद अशोक परनामी से इस्तीफा मांग लिया। वे 2014 से राजस्थान में भाजपा के प्रमुख बने हुए थे। राजस्थान में दो लोकसभा और एक विधानसभा उपचुनाव में करारी हार के बाद से ही परनामी की रवानगी पुख्ता मानी जा रही थी। इसकी प्रतिक्रिया में राजे ने केंद्रीय मंत्री शेखावत की ताजपोशी रुकवाने का प्रयास किया। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व और राजे में छिड़ा यह टकराव फिलहाल अनिर्णीत है। मगर पहले चरण में मुख्यमंत्री हावी होती दिख रही हैं।

केंद्रीय मंत्री शेखावत के विरुद्ध सबसे पहले पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी ने मोर्चा खोला। भाटी खुद राजपूत समाज के प्रभावशाली नेता हैं। वे कभी राजे के मुखर विरोधी हुआ करते थे। मगर हाल के वर्षों में तल्खी दूर हो गई। पूर्व मंत्री भाटी एकाएक जयपुर आए और पार्टी के संगठन मंत्री चंद्रशेखर से मिले। उन्होंने शेखावत के विरोध में दो कारण गिनाए। एक तो यह कि शेखावत की कोई राज्यव्यापी अपील नहीं है और दूसरे इससे भाजपा का जातिगत समीकरण गड़बड़ा जाएगा। उनके मुताबिक, शेखावत के नाम को सियासी रूप से असरदार जाट समुदाय स्वीकार नहीं करेगा। भाटी ने आउटलुक से कहा, “गजेंद्र शेखावत को जोधपुर से बाहर कौन जनता है? एक तरफ तो हम विकेंद्रीकरण की बात करते हैं और दूसरी तरफ हम ऊपर से कोई नाम थोप देते हैं। यह ठीक नहीं है।” भाटी ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल के नाम का भी विरोध किया है।

भाटी के इन बयानों के बाद राजे समर्थक मंत्री और विधायक दिल्ली कूच कर गए और पार्टी पदाधिकारियों से मिलने लगे। इनमें ग्रामीण विकास मंत्री राजेंद्र राठौड़ और परिवहन मंत्री यूनुस खान प्रमुख थे। इन राजे समर्थकों ने पार्टी अध्यक्ष शाह और मोदी से मिलने का यत्न किया। मगर इसमें कामयाबी नहीं मिली, बल्कि शुरू में दिल्ली ने राजे समर्थक इन नेताओं को आंखें दिखाकर हतोत्साहित किया। पार्टी में अचानक मची इस कलह ने उन मंत्री, विधायकों को दुविधा में डाल दिया, जो दोनों तरफ वफादारी दर्ज किए रखना चाहते थे।

इस बीच पार्टी हाईकमान को लगा कि राजे को दिल्ली तलब करने से सब ठीक हो जाएगा। मगर इसका कोई असर नहीं हुआ। राजे अपने रुख पर अडिग रहीं। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और संगठन प्रभारी रामलाल के साथ लंबी बैठक की, जो बेनतीजा रही। राजे ने शेखावत के विकल्प के रूप में जो नाम सुझाए हैं, वे केंद्रीय नेतृत्व के गले नहीं उतर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, राजे गुट ने समाज कल्याण मंत्री अरुण चतुर्वेदी, पूर्व मंत्री लक्ष्मी नारायण दवे, विधायक सुरेंद्र पारीक और नगरीय विकास मंत्री श्रीचंद कृपलानी जैसे नाम प्रस्तुत किए। मगर पार्टी ने इसे स्वीकार नहीं किया।

पार्टी सूत्रों के अनुसार, अगले चुनाव को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व अपने किसी प्रतिबद्ध नेता को अध्यक्ष बनाना चाहता है, ताकि टिकट वितरण में पार्टी हाईकमान अपना वर्चस्व रख सके। उधर राजे गुट भी यही चाहता है। अतीत में जब-जब पार्टी और राजे के बीच विवाद हुआ है, राजे ने विवाद को अपनी जीत में बदल दिया।

इसके पहले जब राजनाथ सिंह अध्यक्ष थे, राजे ने उनका फरमान मानने से इनकार कर दिया था। मौजूदा स्थिति को समझने के लिए भरतपुर के पूर्व राज परिवार के प्रमुख और पूर्व सांसद विश्वेंद्र सिंह का बयान काफी है। सिंह भाजपा में राजे के सहयोगी रह चुके हैं। पर अभी वे कांग्रेस में हैं। उन्होंने कहा, “आखिर कोई तो बुलंद निकला जिसने अमित शाह की मनमानी को दमदार चुनौती दी है।”

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