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सुपरबाइक्स के हाइवे पर टैक्स ब्रेकर

भारत में सुपरबाइक्स के 15 से अधिक मैन्युफैक्चरर्स अपना कारोबार शुरू कर चुके हैं, लेकिन ग्रोथ में इंपोर्ट ड्यूटी बन रही बड़ी बाधा
बीते साल लग्जरी, बड़ी और सुपरबाइक्स ने नई ऊंचाइयों को छुआ

ऑटोमोबील्स मार्केट में सुपरबाइक्स तेजी से अपनी जगह बना रही हैं। भारत में अगर पिछला दशक छोटी और मझोली साइज वाली बाइक्स का था तो 2016-17 के दौरान लग्जरी, बड़ी और सुपरबाइक्स ने नई ऊंचाइयों को छुआ। इनकी बढ़ती मांग को देखते हुए दोपहिया वाहनों की दुनिया के दिग्गज नामों में शुमार होने वाली कंपनियों ने भारत में अपने शो-रूम खोले। 2016 से इस क्षेत्र में 10 से 12 फीसदी तक की बढ़ोतरी देखी गई, जो ऑटो इंडस्ट्री के औसत ग्रोथ से अधिक है। भारत में अभी सुपरबाइक के 15 से अधिक मैन्युफैक्चरर्स अपना कारोबार शुरू कर चुके हैं। इनमें ट्रायंफ, हर्ले डेविडसन, बेनेल्ली, होंडा, सुजुकी की हायाबुसा (धूम फिल्म वाली बाइक आपको याद ही होगी), इंडियन मोटरसाइकिल और टीवीएस बीएमडब्ल्यू मोटररैड शामिल हैं। और, जाहिर है अपनी रॉयल एनफील्ड तो है ही। अब आप 100 और 200 सीसी वाली बाइक्स को भूल जाइए, ये सुपरबाइक 650 सीसी से लेकर 1000 सीसी तक की हैं। इनकी कीमत भी सात लाख रुपये से लेकर 50 लाख रुपये तक है। होंडा की गोल्ड विंग 2018 मॉडल की कीमत तो 26.85 लाख रुपये से शुरू ही होती है, जबकि हर्ले डेविडसन की मॉडल सीवीओ लिमिटेड की कीमत 53.73 लाख रुपये है।

आंकड़ों के मुताबिक, 80 फीसदी सुपरबाइक 30 से 35 साल की उम्र के लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय हैं, जबकि सुपरबाइक की कुल बिक्री में 20 फीसदी   हिस्सेदारी 35 से 60 साल की उम्र वाले लोगों की होती है। इनसे अलग पिछले कुछ दिनों से सुपरबाइक अलग वजहों से सुर्खियों में हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारी-भरकम कीमतों वाली बाइकों, खासतौर पर अमेरिकी हर्ले डेविडसन का मुद्दा उठाया। ट्रंप ने कहा कि भारत में इन पर अधिक टैक्स है। इस साल फरवरी में लग्जरी बाइकों पर आयात शुल्क में भारी कटौती के बावजूद यह शुल्क बहुत ज्यादा है। 12 फरवरी को केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड द्वारा जारी एक अधिसूचना के मुताबिक, 800 सीसी तक की इंजन वाली कंप्लीटली बिल्ड यूनिट (सीबीयू) पर सीमा शुल्क 60 फीसदी से घटाकर 50 फीसदी कर दिया गया, जबकि 800 से अधिक पर सीमा शुल्क 75 फीसदी से घटाकर 50 फीसदी कर दिया गया। यह कटौती उन मॉडल्स पर है, जो पूरी तरह बाहर से बनकर देश में आती हैं। ऐसी बाइकों को सीबीयू यानी कम्प्लीटली बिल्ट यूनिट भी कहते हैं। वहीं, कंप्लीटली नॉक्ड डाउन (सीकेडी) यूनिट्स के लिए इंजन और ट्रांसमिशन या असेंबल होने वाले गियरबॉक्स पर आयात शुल्क 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया है। इस कटौती के बावजूद लग्जरी बाइक बनाने वाली कंपनियों ने डोनाल्ड ट्रंप के रुख का समर्थन किया है। उनका मानना है कि अभी भी भारत में इंपोर्ट ड्यूटी बहुत अधिक है, जिससे इनकी बिक्री प्रभावित हो रही है। भारत में इंडियन मोटरसाइकिल ब्रांड की बाइक बनाने वाली कंपनी पोलारिस इंडिया के एमडी और कंट्री हेड पंकज दुबे कहते हैं, “31 फीसदी जीएसटी के साथ-साथ उच्च आयात शुल्क होने की वजह से भारत में इस तरह की बाइकों का बाजार प्रभावित हो रहा है। अमेरिका की तुलना में हमारे यहां इसकी कीमत दोगुनी है। इसलिए बहुत अधिक आमदनी वाले लोग ही इन्हें खरीद पाते हैं।” हालांकि, कुछ मैन्यूफैक्चरर्स मानते हैं कि अधिक आयात शुल्क होने से इन बाइकों के बाजार पर कोई असर नहीं पड़ा है।

पहली पसंदः हर्ले डेविडसन का सीवीओ लिमिटेड मॉडल

ट्रायंफ मोटरसाइकिल इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर विमल संबली कहते हैं, “भारत में ट्रायंफ मोटरसाइकिल का बाजार अच्छी रफ्तार से बढ़ रहा है। इस सेक्टर में काफी प्रतिस्पर्धा के बावजूद वित्त वर्ष 2014 और 2017 के बीच हमारी ग्रोथ 63 फीसदी रही।”

इंडस्ट्री के जानकार कहते हैं कि अधिक आयात शुल्क और कम बिक्री से लग्जरी बाइक बनाने वाली कंपनियां भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेंटर खोलने से हिचक रही हैं। दुबे कहते हैं, “फिलहाल हमलोग अमेरिका से अपना प्रोडक्ट आयात करते हैं और अभी भारत में इन बाइकों को बनाने की हमारी कोई ठोस योजना नहीं है।” मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस ग्रोथ पर निर्भर करता है। देश में इस तरह की बाइकों की मैन्युफैक्चरिंग का फैसला इनकी स्थानीय मांग पर निर्भर करता है, जो निवेश के लिहाज से घाटे का सौदा है। इसलिए अधिक कीमत वाली बाइकों की घरेलू मैन्युफैक्चरिंग के लिए सबसे पहले देश में इनकी मांग बढ़ानी होगी और इस लिहाज से कम आयात शुल्क (पुर्जों और अंततः मोटसाइकिलों के उत्पादन के लिए) ‘मेक इन इंडिया’ के लिए मददगार साबित होगा। संबली इस बात से सहमत हैं और मानते हैं कि वृद्धि के बावजूद इस क्षेत्र का आकार अभी बहुत छोटा है। वह कहते हैं, “हम सरकार के मेक इन इंडिया का हिस्सा हैं। इसके मौजूदा बाजार के हिसाब से हम जैसे उत्कृष्ट ब्रांड के लिए भारत में पुर्जों की असेंबलिंग ज्यादा मायने रखती है। यही वजह है कि हम 2016 में अपनी मैन्युफैक्चरिंग को 90 फीसदी सीबीयू से 90 फीसदी सीकेडी (2017 के अंत तक) की तरफ बढ़ा चुके हैं।”

बाइक मैन्युफैक्चरर्स के लिए चिंता का दूसरा विषय टिकाऊ सरकारी नीतियों का न होना है। अधिकांश लोगों का मानना है कि स्थिर नीतियों के साथ-साथ तर्कसंगत आयात शुल्क से इनकी मांग को बढ़ाया जा सकता है। संबली कहते हैं, “मौजूदा सरकारी निर्देशों से सीकेडी निर्माताओं के उत्पाद की लागत 5-10 प्रतिशत बढ़ गई है, जबकि एफटीए निर्माता इससे पूरी तरह अछूते हैं। अगर हम सभी मौजूदा कंपनियों के लिए सोचते हैं तो पूरे सेक्टर के लिए इस तरह की तर्कसंगत बढ़ोतरी एक सकारात्मक कदम हो सकता है।” इसके बावजूद भारत में इस तरह की लग्जरी बाइकों की मांग बढ़ी ही है। पिछले साल बिक्री के मामले में मोटरसाइकिलों ने कारों को पीछे छोड़ दिया। पिछले दो वर्षों में भारतीय बाजार में सुपरबाइक की बिक्री ज्यादा बढ़ी है। 2008 में सुपरबाइक की बिक्री महज 500-800 थी, जो पिछले साल बढ़कर 10 हजार से अधिक हो गई। आमतौर पर सुपरबाइक तीन तरह की होती हैं, स्पोर्ट्स, क्रूजर और एडवेंचर। इनमें सबसे ज्यादा मांग क्रूजर की है और बाजार में इसका योगदान लगभग 68 फीसदी है। वहीं, स्पोर्ट्स बाइक 24 फीसदी तो एडवेंचर बाइक का बाजार महज आठ फीसदी ही है। पहले भारत में लग्जरी बाइक की सिर्फ प्रदर्शनी ही लगती थी। आज ये बाइक यहां की सड़कों पर दौड़ती नजर आती हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मई 2018 तक होंडा की 1800सीसी वाली गोल्ड विंग की बिक्री पहले ही हो चुकी है।

2017 में नोटबंदी और जीएसटी की वजह से लग्जरी बाइक्स बाजार में थोड़ी सुस्ती आई, लेकिन इसने इसके उत्साह को कम नहीं किया। दुबे कहते हैं, “यह बाजार अगले दशक तक 20 फीसदी की सीएजीआर की दर से बढ़ता रहेगा। हालांकि, भारत में रईसों की संख्या बढ़ने के साथ ही इन बाइकों में बिक्री का रुझान क्रूजर और अधिक आरामदायक बाइक की ओर बढ़ रहा है।” कंपनी की सबसे लोकप्रिय बाइक “द इंडियन स्काउट सीरीज” की कीमत 12.99 लाख रुपये से शुरू होती है। जानकारों का मानना है कि लोग अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए इन बाइकों को खरीद रहे हैं। यहां तक कि अपेक्षाकृत कम आमदनी वाले लोग भी कार की जगह इस तरह की बाइकों को अधिक तरजीह दे रहे हैं। संबली कहते हैं, “आज, मोटरसाइकिलिंग नया पैशन बन गया है! लोग लद्दाख और सिंगापुर तक बाइक से जा रहे हैं।”

सोल्ड आउटः होंडा गोल्ड विंग की मई 2018 तक की हो चुकी है एडवांस बुकिंग

सुपरबाइक की मांग गैर-मेट्रो और छोटे शहरों में ज्यादा बढ़ रही है। पिछले साल इस तरह की 15 फीसदी बाइकों की मांग टीयर-2 और टीयर-3 शहरों से आई। होंडा टू वीलर्स के सेल्स ऐंड मार्केटिंग के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट वाई.एस. गुलेरिया कहते हैं, “छोटे शहरों के कुछ इलाके ऐसे हैं, जहां इस तरह की बाइक की ज्यादा मांग है। इनमें महाराष्ट्र के कोल्हापुर और पुणे, पंजाब के लुधियाना और जालंधर, पूर्वोत्तर में गुवाहाटी और पूरब में भुवनेश्वर शामिल हैं।” उदाहरण के तौर पर, रॉयल एनफील्ड मार्च 2018 तक स्टोर की संख्या 350 से बढ़ाकर 750 कर चुका है। टीयर-2 और टीयर-3 शहरों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण संख्या है। हर्ले डेविडसन भी पिछले दो साल में टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में नई डीलरशिप के साथ सामने आई है। भारतीय बाजार में सब-1000 सीसी की सुपरबाइक्स की मांग बहुत अधिक है। सुजुकी मोटरसाइकिल इंडिया के सेल्स ऐंड मार्केटिंग के ईवीपी सजीव राजशेखरन कहते हैं, सुपरबाइक सेगमेंट में 10 लाख रुपये तक की कीमत वाली 600 से 1000 सीसी तक की बाइक लोगों की पसंद के लिहाज से काफी मायने रखती हैं। जिस तरह भारत में बाइकिंग कम्युनिटी और कल्चर विकसित हो रहा है, उस हिसाब से हमें उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षों में इस कैटेगरी की बाइक्स का बाजार काफी बढ़ेगा।”

महानगरों और छोटे शहरों के विभिन्न बाइकर समूह और कम्युनिटी भी सुपरबाइक की मांग बढ़ने की एक बड़ी वजह हैं। हर्ले डेविडसन इंडिया के एमडी पीटर मेकेंजी कहते हैं, “भारतीय दोपहिया वाहन बाजार में एक बदलाव देखा जा रहा है कि यहां लोग यातायात के तौर पर बाइकों को खरीदने की जगह अब उसे शौक पूरा करने के लिए खरीद रहे हैं। शौकिया तौर पर बाइक चलाने वालों की संख्या काफी तेज गति से बढ़ रही है। इस सेगमेंट के अधिकांश खरीदार बाइक्स को एक प्रोडक्ट की जगह अपनी लाइफस्टाइल का एक अहम हिस्सा मानकर खरीद रहे हैं।”

अधिकांश मैन्युफैक्चरर्स को उम्मीद है कि नोटबंदी और जीएसटी से जुड़ी समस्याएं कम होने के साथ-साथ अगले तीन से चार वर्षों में इस बाजार में मांग दोगुनी होगी। लेकिन, सरकार को भी इनके लिए सड़कों पर बुनियादी ढांचा दुरुस्त करने की जरूरत है। जब तक ऐसा नहीं होता है, तब तक इन बाइकों का सपना चंद शहरी इलाकों तक ही सीमित रहेगा। 

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