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नमाज कक्ष पर घमासान से फायदे में रहीं बड़ी पार्टियां, दूसरे प्रदेश के प्रावधान देखेगा झारखंड

एक कमरे को लेकर झारखंड में बवाल मच रहा है। इस पर विपक्ष के कड़े विरोध के कारण विधानसभा की कार्यवाही और...
नमाज कक्ष पर घमासान से फायदे में रहीं बड़ी पार्टियां, दूसरे प्रदेश के प्रावधान देखेगा झारखंड

एक कमरे को लेकर झारखंड में बवाल मच रहा है। इस पर विपक्ष के कड़े विरोध के कारण विधानसभा की कार्यवाही और जनहित से जुड़े सवाल पूरे सत्र के दौरान हंगामे की भेंट चढ़ गये। दरअसल झारखंड विधानसभा के अध्‍यक्ष रबींद्र नाथ महतो ने नमाज पढ़ने के लिए विधानसभा में एक अलग कमरा विधिवत आवंटित कर दिया। विधिवत आवंटन ही विवाद की वजह बन गया। सत्र के समापन के बाद खुद पर लगे आरोप को लेकर विधानसभा अध्‍यक्ष को सोशल मीडिया पर अपनी पीड़ा जाहिर करनी पड़ी। अब इसके लिए गठित सदन की समिति दूसरे प्रदेशों में विधानसभा भवन में नमाज के लिए व्‍यवस्‍था का अध्‍ययन करेगी।

सदन हो या सरकारी दफ्तर, ऐसा नहीं है कि लोग नमाज नहीं पढ़ते हैं। मगर उसके लिए अमूमन विधिवत कमरा आवंटित नहीं होता। देश में शायद ही कोई सदन हो जहां नमाज पढ़ने के लिए अलग कमरा आवंटित हो। झारखंड का वायरस अब बिहार भी पहुंचा। जिस तरह से अल्‍पसंख्‍यक और हिंदू वोट की तीखी राजनीति देश में चल रही है आशंका है कि वोट बैंक में दखल के लिए झारखंड की लहर दूसरे प्रदेशों तक न पहुंचने लगे।

बिहार में जदयू और भाजपा गठबंधन की सरकार है। भाजपा और जदयू के विधायक ने विधानसभा अध्‍यक्ष से आग्रह किया है कि मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए विधानसभा परिसर में अलग व्‍यवस्‍था और सदन की कार्यवाही में कुछ समय के लिए विराम मिले। बिहार विधानसभा के अध्‍यक्ष विजय कुमार के अनुसार बिहार में यह झमेला नहीं है। विधानसभा लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर है। पूजा करने के लिए जगह की क्‍या जरूरत है, हम यहां बैठे बैठे पूजा कर सकते हैं, जाप कर सकते हैं कौन रोकेगा हमें। विधानसभा में पहले से विश्‍वकर्मा पूजा, सरस्‍वती पूजा होती है, नमाज भी अदा होता है। कभी यहां लोगों को दिक्‍कत नहीं हुई। पूरा विधानसभा ही लोकतंत्र का मंदिर है जो जहां चाहते हैं बैठ कर आराधना कर सकते हैं।

झारखंड में नमाज के लिए अलग कक्ष को लेकर खूब खेल चलता रहा। जानकार मानते हैं कि झारखंड में एक कमरे का विवाद सत्‍ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए अनुकूल रहा। विपक्ष के हंगामे के कारण सत्‍ता पक्ष को विपक्ष के आक्रामक सवालों का मुकाबला नहीं करना पड़ा। निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण जैसे विधेयक पर विवाद हो सकता था आसानी से पास हो गया। काम के इतर वोट बैंक के लिए भी दोनों को खुराक मिल गया। अब कमरा मिले या न मिले फर्क नहीं पड़ता। अल्‍पसंख्‍यक वोट और हिंदू वोट की राजनीतिक करने वालों ने अपने अपने वोटरों को संदेश दे दिया। विपक्ष के साथ सत्‍ता पक्ष को भी ऊर्जा दी, राहत दी। अंतत: पांच दिनी सदन का सत्र समाप्‍त होने के दिन नौ सितंबर को इस विवाद को दूर करने के लिए विधानसभा अध्‍यक्ष ने सर्वदलीय समिति गठित कर विवाद पर विराम लगा दिया। आठ टर्म विधायक रहे जेएमएम के प्रो स्‍टीफन मरांडी के संयोजकत्‍व में सात सदस्‍यीय सर्वदलीय कमेटी डेढ़ माह के अंदर अपनी रिपोर्ट देगी। यह काम पहले दिन भी हो सकता था। इसके पहले झामुमो के विधायक सरफराज अहमद ने सत्र के अंतिम दिन कहा कि इस मसले को लेकर चार दिनों से सदन की कार्यवाही बाधित है। विधानसभा में नमाज पढ़ने के लिए कमरे के आवंटन की परंपरा पुरानी है। बाबूलाल मरांडी जब सूबे के पहले मुख्‍यमंत्री बने थे इंदर सिंह नामधारी विधानसभा अध्‍यक्ष थे उसी समय से यह परंपरा चली आ रही है। सरफराज के पहले पूर्व सांसद व कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता फुरकान अंसारी यही बात कह चुके थे। हालांकि सदन में मौजूद भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने इससे इनकार किया।

और शुरू हुआ विवाद

नमाज के लिए अलग कमरा आवंटि करने का आदेश विधानसभा सचिवालय ने दो सितंबर को ही जारी किया मगर भाजपा के लोगों को भनक देर से लगी। भनक लगते ही चार सितंबर को हंगामा शुरू हो गया। भाजपा ने हेमन्‍त सरकार की तुष्टिकरण की नीति बताते हुए आंदोलन का एलान कर दिया। विधानसभा परिसर में बजरंगबली के मंदिर के लिए स्‍थान आवंटित करने की मांग कर दी। विधानसभा के पूर्व अध्‍यक्ष वरिष्‍ठ भाजपा विधायक सीपी सिंह ने कहा कि 82 सदस्‍यीय विधानसभा में सिर्फ चार सदस्‍यों के लिए अलग कक्ष और समय से पहले सभा की कार्यवाही स्‍थगित करना कहीं से न्‍यायोचित नहीं है। सदन में भारी विरोध प्रदर्शन, भजन मंडली सजाने और हनुमान चालीसा का पाठ करने के साथ आंदोलन के क्रम में एक दिन पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन और मुख्‍यमंत्री व विधानसभा अध्‍यक्ष का पुतला दहन हुआ। पूर्व मुख्‍यमंत्री विधानसभा के सामने धरना पर बैठे। विधानसभा का घेराव किया तो भाजपा का आक्रामक चेहरा दिखा। कुछ बड़े नेताओं को भी लाठियां खानी पड़ीं। भाजपा का शिष्‍टमंडल राज्‍यपाल से भी मिला। आंदोलन के बहाने बहाने भाजपा को विरोधी तेवर दिखाने का मौका मिला तो खेमों में बंटी भाजपा के नेता एक मंच पर दिखे। अलग नमाज कक्ष को लेकर हाई कोर्ट में दो जनहित याचिका भी दायर की गई। इधर आठ सितंबर को विधानसभा का घेराव करने के सिलसिले में भीड़ का नेतृत्‍व करने, कोविड के दिशा निर्देश का उल्‍लंघन करने, पुलिस का हथियार छीनने के प्रयास आदि को लेकर रांची सांसद, मेयर सहित 28 को नामजद आरोपी बनाया गया है। हालांकि प्राथमिकी में प्रदेश अध्‍यक्ष दीपक प्रकाश और विधायक दल नेता बाबूलाल मरांडी का नाम नहीं है। पूरे प्रकरण में झामुमो संयत तरीके से जवाब देती रही कि भाजपा धर्म के नाम पर लोगों को बांटना चाहती है, मुद्दा विहीन हो गई है इसलिए सिर्फ हंगामा कर रही है। विधानसभा अध्‍यक्ष रबींद्र नाथ महतो की दलील थी कि हंगामा नाहक है, ठोस वजह नहीं है। संयुक्‍त बिहार के समय से ही विधानसभा भवन में नमाज के लिए अलग कक्ष की व्‍यवस्‍था रही है। उसी परंपरा का निर्वाह किया गया है। भाजपा सदस्‍यों ने जब सदन नहीं चलने दी तो मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन ने कहा कि जब भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं रह जाता है तब वह इसी तरह के आचरण अपनाकर सदन की प्रक्रिया को बाधित करती है। सत्र की समाप्ति के बाद झामुमो के माउथपीस, पार्टी महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने भी पार्टी की भावना स्‍पष्‍ट कर दी। कहा कि उत्‍तर प्रदेश के चुनाव को लेकर भाजपा ने सोची समझी राजनीति के तहत यह खेल खेला। राज्‍य को सांप्रदायिक आग में झोंकने की नाकाम कोशिश की। हमारी पार्टी के वरिष्‍ठ विधायक सरफराज अहमद को सलाम पेश करते हैं जिन्‍होंने इस बात को पूरी ताकत से कहा कि, ''जहां विवाद होगा उस स्‍थल पर नमाज नहीं अदा करेंगे''। धन्‍यवाद देते हैं अध्‍यक्ष को सदन के वरिष्‍ठतम आठ बार के चुने हुए प्रतिनिधि स्‍टीफन मरांडी की अध्‍यक्षता में सर्वदलीय समिति का गठन किया। जिसमें भाजपा को भी उचित स्‍थान दिया गया।

भंवर में कांग्रेस

विधानसभा में नमाज के लिए कमरा आवंटित करने के विवाद में हेमन्‍त सरकार की सहयोगी पार्टी कांग्रेस उल्‍झन में फंसी दिख रही है। मुस्लिम और हिंदू दोनों उसके परंपरागत वोट रहे हैं। वह अल्‍पसंख्‍यकों को खुश करके बहुसंख्‍यक वोट को गंवाना नहीं चाहती। अपने किसी कदम से 'सरकार' से भी बिगाड़ नहीं करना चाहती थी। इसमें पहल करते हुए कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता पूर्व मंत्री व इंटक के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष केएन त्रिपाठी ने मदद की। प्रेस कांफ्रेंस कर के त्रिपाठी ने कहा कि अगल नमाज के लिए अलग कमरा आवंटित करने की अधिसूचना जारी की गई तो वह गलत है। उस कमरे को हर व्‍यक्ति के लिए खोल दिया जाये। अब कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष और सिक्किम, नागालैंड और त्रिपुरा के प्रभारी आगे आये हैं। उन्‍होंने मुख्‍मंत्री हेमन्‍त सोरेन को इस संबंध में पत्र लिखकर सदन को धार्मिक संबंधी प्रथा से दूर रखने की वकालत की है। ट्वीट भी किया है। पत्र में लिखा है कि भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में धर्म को राजनीति से अलग रखना चाहिए। विधानसभा लोकतंत्र का मंदिर है। इसे किसी भी प्रकार के धार्मिक संबंधित प्रथा से दूर रखना चहिए क्‍योंकि विधानसभा एक ऐसा स्‍थान है जहां सभी विधायक, मंत्री हमारे लोगों और राज्‍य से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करते हैं। धर्म, राजनीति में लंबे समय से महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। राजनीति, शासन और धार्मिक प्रथाएं अलग-अलग हैं जिन्‍हें एक साथ नहीं मिलाया जाना चाहिए। भारत जैसा देश जहां हिंदू, मुस्लिम सिख, ईसाई धर्म आदि विविध धर्म हैं इसके बावजूद लेग भाई-बहन और देस्‍तों की तरह एकजुट रहते हैं। इसलिए यदि कोई राजनीतिक दल किसी विशेष धर्म का समर्थन करता है तो वहां अशांति पैदा होने की संभावना होगी। देश और धर्मों के लोगों से समान व्‍यवहार करने में समस्‍याएं होंगी। अनुरोध है कि मेरे इस सुझाव पर ध्‍यान दें और धर्म को लोकतंत्र के मंदिर से दूर रखने के लिए कदम उठायें। यह पूरे राज्‍य के हित में होगा और हमारे लोगों की धार्मिक भावनाओं का सम्‍मान करने में भी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाएगा। बहरहाल वोट के आकर्षण में दूसरे प्रदेशों ने भी झारखंड वाला कदम उठाया तो धर्म और राजनीति की हवा गरम हो सकती है।

विधानसभा अध्‍यक्ष का दर्द

सदन का सत्र समाप्‍त होने के करीब एक सप्‍ताह के बाद विधानसभा अध्‍यक्ष रबींद्रनाथ महतो की पीड़ा छलकी। ट्वीटर पर लिखा कि , '' सदन सर्वोपरी होता है। नमाज रूम को लेकर उठे विवाद के बाद सर्वदलीय कमेटी गठित की गई है। जिस तरह से इस मुद्दे पर विवाद खड़ा किया गया वह उचित नहीं था। इसकी वेदना मेरे मन में है। कभी-कभी सदन में सदस्‍यों के मन में जनता की भावना इतनी प्रबल होती है कि वे आवेश में बोलते भी हैं। मगर आसन, उनकी भावना को समझते हुए उन्‍हें शांत कराने की कोशिश करता है और हमलोग बर्दाश्‍त करते हैं। तकलीफ हमें इस बात पर है कि जनता की गाढ़ी कमाई से सत्र आहुत की जाति है मगर कोई फलाफल नहीं निकला। विधानसभा में अध्‍यक्ष की भूमिका कस्‍टोडियन की होती है। जो सभी सदस्‍यों को साथ लेकर चलता है। तो फिर सदन की परिपार्टी का हम कैसे उल्‍लंघन कर सकते हैं। आसन पर आक्षेप लगाना सही नहीं है। आसन की उम्र बहुत लंबी है। मैंने उन्‍हें(बिना नाम लिये) नियमावली भी दे दी है कि कैसे और किस तरह से सदन में समस्‍या उठाई जाती है। नियम संचालन विधि के बारे में भी उन्‍हें बताया, इसके बावजूद वे संतुष्‍ट नहीं हुए और समस्‍या उठाना चाह रहे थे।'' दरअसल सत्र के अंतिम दिन नौ सितंबर को भाजपा के वरिष्‍ठ सदस्‍य, पूर्व मंत्री अमर बाउरी सदन से रोते हुए बाहर निकले थे। इस विषय पर उनका कार्यस्‍थन मंजूर नहीं हुआ था। पीड़ा यह थी कि विधानसभा अध्‍यक्ष ने बिना नोटिस लिये प्रस्‍ताव को खारिज कर दिया था।

दूसरे राज्‍यों का अध्‍ययन

विधानसभा में नमाज कक्ष पर विवाद के बाद गठित सर्वदलीय कमेटी ने अपनी पहली बैठक में तय किया है कि पड़ोसी राज्‍यों में नमाज-प्रार्थना की व्‍यवस्‍था का अध्‍ययन करेगी। इसके लिए पड़ोसी राज्‍यों से जानकारी जुटाई जा रही है।

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