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कैसे दिल्ली हाई कोर्ट ने भारत के शीर्ष खेल प्रशासक के रूप में नरिंदर बत्रा की 'बाजीगरी' को किया समाप्त, पढ़िए यह रिपोर्ट

2017 से भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) को सख्ती से चलाने वाले नरिंदर बत्रा को दिल्ली हाई कोर्ट ने एक्सपोज कर पद से...
कैसे दिल्ली हाई कोर्ट ने भारत के शीर्ष खेल प्रशासक के रूप में नरिंदर बत्रा की 'बाजीगरी' को किया समाप्त, पढ़िए यह रिपोर्ट

2017 से भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) को सख्ती से चलाने वाले नरिंदर बत्रा को दिल्ली हाई कोर्ट ने एक्सपोज कर पद से बेदखल कर दिया है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को अपने 30 पन्नों के आदेश में कहा है कि 65 वर्षीय बत्रा ने अवैध रूप से हॉकी इंडिया के अध्यक्ष बनने के लिए 'आजीवन सदस्य' के रूप में अपने पद का दुरुपयोग किया और फिर अंतर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ (FIH) के बॉस बनने के लिए गलत तरीके से अपने रास्ते को 'नेविगेट' किया। बता दें कि इस मामले को 2020 में पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी और ओलंपियन असलम शार खान द्वारा अदालत के संज्ञान में लाया गया था।

1975 के हॉकी विश्व कप विजेता खान ने हॉकी इंडिया में कुछ पदों की नियुक्ति पर सवाल उठाया था, जिसमें सीईओ का पद शामिल था, जिसके जरिये सभी प्रमुख परिचालन मामले निष्पादित (एग्जिक्यूट) किए जा रहे थे।

अदालत ने पाया कि हॉकी इंडिया ने कुछ ऐसे पदों को बनाए जो राष्ट्रीय खेल संहिता के खिलाफ थे। न्यायमूर्ति नाज़मी वज़ीरी और न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की दो-न्यायाधीशों की पीठ के अनुसार, 'आजीवन सदस्य' के रूप में बत्रा की स्थिति अस्थिर थी। पर्यवेक्षकों ने बताया कि हॉकी इंडिया की वेबसाइट में भी पारदर्शिता का अभाव है।

विशेष अधिकारी नियुक्त

अदालत ने तुरंत प्रभाव से हॉकी इंडिया के प्रशासन को संभालने के लिए प्रशासकों की तीन सदस्यीय समिति (CoA) नियुक्त की है। सीओए में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनिल आर दवे, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी और भारत के पूर्व कप्तान जफर इकबाल शामिल होंगे।

एक हफ्ते से भी कम समय में, भारतीय अदालतों ने उचित मानदंडों के खिलाफ कार्य करने वाले और 'सत्तालोभी' प्रशासकों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है।

18 मई को, सुप्रीम कोर्ट ने अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के प्रशासन की देखरेख में दिसंबर 2020 से होने वाले चुनाव कराने के लिए एक सीओए की नियुक्ति की। शीर्ष अदालत ने एआईएफएफ अध्यक्ष के रूप में प्रफुल्ल पटेल के विस्तारित (एक्सटेंडेड) प्रवास को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया।

जस्टिस दवे और कुरैशी दोनों सीओए में हैं। कानूनी पर्यवेक्षकों का कहना है कि चूंकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट की नीति का पालन किया है, इसलिए बत्रा किसी भी चीज को चुनौती देने की स्थिति में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कानूनी या नैतिक रूप से बत्रा के पास कोई विकल्प नहीं बचा है।

समझदारी भरी चाल

आलोचकों ने बत्रा के "आईओए चुनाव नहीं लड़ने" के फैसले को एक स्मार्ट कदम बताया है।

आईओए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने के शर्त पर कहा, "उन्हें पता था कि क्या होने जा रहा है। बत्रा ने व्हाट्सएप के जरिए जो मेल प्रसारित किया वह कुछ और नहीं बल्कि बचाव का उपाय था। उन्होंने खुद को भारतीय खेलों के लिए एक योद्धा के रूप में पेश किया था। अब वह बुरी तरह बेनकाब हो गए है।" 

चूंकि अदालत ने बत्रा के कामकाज के अनैतिक तरीकों पर स्पष्ट रूप से सवाल उठाया है, इसलिए एफआईएच के अध्यक्ष के रूप में उनकी स्थिति भी संदेह के घेरे में है। 2021 में, बत्रा ने एक करीबी चुनाव के बाद दूसरा कार्यकाल जीता। अब एफआईएच में उनकी नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया अधूरी है।

कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा: "बत्रा (आर-3) अच्छी तरह से जानते थे कि राष्ट्रीय खेल महासंघ (एनएसएफ) में आजीवन अध्यक्ष और आजीवन सदस्य का पद अवैध है। उन्हें भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से सूचित किया गया था। 

कोर्ट ने आगे कहा, "फिर भी जब हॉकी इंडिया को 28.05.2009 को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया था और उसके कुछ दिनों के भीतर भारत सरकार द्वारा तुरंत मान्यता प्रदान की गई थी, बत्रा ने आगे बढ़ कर खुद को हॉकी इंडिया के आजीवन सदस्य के रूप में नियुक्त किया। यह कानून के स्पष्ट जनादेश के प्रति निर्लज्जता की बू आती है।"

जो बात एफआईएच में बत्रा की स्थिति को डगमगाती है, वह है अदालत का आदेश जिसमें कहा गया है: "क्या एक विरोधाभास है, एक ऐसी संस्था में खुद को स्थायी बनाना जिसका कार्यकाल स्वयं अस्थायी है। आजीवन अध्यक्ष या आजीवन सदस्य का अवैध पद किसी अन्य पद के लिए 'स्टेपिंग स्टोन' नहीं हो सकता है। आदेश में यह भी कहा गया है कि बत्रा को अगर कहीं और लाभ, चाहे वह राष्ट्रीय स्तर पर हो (भारतीय ओलंपिक संघ सहित) या अंतर्राष्ट्रीय निकायों में हुआ है तो ऐसा लाभ या पद तुरंत समाप्त हो जाएगा।

बत्रा को हटाने का मतलब है कि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की उनकी सदस्यता भी समाप्त हो जाएगी क्योंकि प्रतिष्ठित पद उनके आईओए अध्यक्ष पद से जुड़ा था। ऐसे समय में जब भारत एक दिन ओलंपिक की मेजबानी करने पर विचार कर रहा है, यह प्रकरण भारत के छवि को धूमिल कर सकता है।

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