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जन्‍मदिन विशेष: हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जीवन से जुड़ी 10 खास बातें

मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत के राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन हर साल खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न के अलावा अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार दिए जाते हैं।
जन्‍मदिन विशेष: हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जीवन से जुड़ी 10 खास बातें

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का आज जन्मदिन है। जो स्थान फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन का है, वही स्थान हॉकी में मेजर ध्यानचंद का है। 29 अगस्‍त 1905 को इलाहाबाद में जन्में ध्‍यानचंद जैसा खिलाड़ी हॉकी की दुनिया में आजतक कोई नहीं हुआ। 

मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत के राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन हर साल खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न के अलावा अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार दिए जाते हैं।

आज उनके जन्‍मदिन के खास मौके पर जानिए उनके जीवन से जुड़ी 10 खास बातें:

# ध्यानचंद के पिता सेना में थे। ध्यानचंद प्रारंभिक शिक्षा के बाद 16 साल की उम्र में सिपाही की पोस्ट पर सेना में भर्ती हो गए। बचपन में उनको हॉकी के प्रति कोई लगाव नहीं था। सेना में भर्ती होने के बाद वे खेलने लगे। 21 वर्ष की उम्र में उन्हें न्यूजीलैंड जाने वाली भारतीय टीम में चुन लिया गया। इस दौरे पर भारतीय सेना की टीम ने 21 में से 18 मैच जीते।

# मेजर ध्यानचंद चंद्रमा की चांदनी में सारी रात अभ्यास किया करते थे। इसी वजह से उनके साथी उन्हें चांद कहने लगे। यहीं से उनका नाम ध्यानचंद पड़ गया। ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर तिवारी को है। मेजर तिवारी भी एक हॉकी खिलाड़ी थे।

# 23 वर्ष के ध्यानचंद को 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में पहली बार हिस्सा ले रही भारतीय हॉकी टीम में शामिल किया गया। यहां चार मैचों में भारतीय टीम ने 23 गोल दागे। ध्यानचंद ने 1928 में एम्सटर्डम, 1932 में लॉस एंजेलिस और 1936 के बर्लिन ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का नेतृत्व किया और भारत को स्वर्ण पदक दिलाया।

# 1932 में लॉस एंजेलिस ओलंपिक में हॉकी फाइनल में भारत ने अमेरिका को 24-1 से हरा दिया। इस मैच में ध्यान चंद ने 8 गोल किए और उनके छोटे भाई रूप सिंह ने 10 गोल किए। वहीं 1936 के बर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे। 15 अगस्त, 1936 को हुए फाइनल में भारत ने मेजबान जर्मनी को 8-1 से हराया।

# ध्यानचंद का खेल देखकर जर्मन तानाशाह हिटलर तक उनके खेल के मुरीद हो गए थे। हिटलर ने उनको जर्मन सेना में पद ऑफर करते हुए उनकी तरफ से खेलने का ऑफर दिया था लेकिन हॉकी के इस जादूगर ने हिटलर का ये प्रस्ताव यह कहते हुए ठुकरा दिया कि मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारतीय हूं और भारत के लिए ही खेलूंगा।

# मेजर बॉल अपने पास रखने में इतने माहिर थे कि एक बार हॉलैंड में एक मैच के दौरान कुछ लोगों को शक हुआ कि मेजर की हॉकी में चुंबक लगा हुआ है जिसके कारण उनकी हॉकी तुड़वा कर देखी गई थी। 

# साल 1948 में 43 वर्ष की उम्र में ध्यानचंद ने अंतरराट्रीय हॉकी को अलविदा कहा। सैनिक के रूप में भर्ती हुए ध्यानचंद अपने खेल के दम पर मेजर के पद से रिटायर हुए। मेजर ध्यानचंद ने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे। वहीं अंतरराष्‍ट्रीय कॅरिअर में 400 से ज्यादा गोल किए, जो आज भी एक रिकार्ड है।

# ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से जर्मन तानाशाह हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना फैन बना दिया था। ध्यानचंद को साल 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

# ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार भी भारत के लिए ओलंपिक खेलने वाली हॉकी टीम का हिस्सा रहे हैं। साल 1975 में अशोक के आखिरी समय में किए गोल से भारत ने पाकिस्तान को हराकर विश्व कप का खिताब जीता था।

# अशोक कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया कि साल 1972 में एक बार जब भारतीय हॉकी टीम जर्मनी दौरे पर अभ्यास कर रही थी, तभी कुछ लोग एक शख्स को स्ट्रेचर पर लेकर आए। उन्होंने 1936 के अखबारों की कटिंग दिखाते हुए कहा कि ऐसे थे आपके पिता।

 

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