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“हम अपने मेडल को गंगा में बहाने जा रहे हैं और फिर इंडिया गेट पर आमरण अनशन…”, पहलवानों का देश के नाम खुला पत्र

दो दिन पहले यानी 28 मई को जंतर-मंतर से हटाए जाने और राजधानी की सड़कों पर घसीटकर बसों और पुलिस वैन में ठूंस...
“हम अपने मेडल को गंगा में बहाने जा रहे हैं और फिर इंडिया गेट पर आमरण अनशन…”, पहलवानों का देश के नाम खुला पत्र

दो दिन पहले यानी 28 मई को जंतर-मंतर से हटाए जाने और राजधानी की सड़कों पर घसीटकर बसों और पुलिस वैन में ठूंस कर विभिन्न थानों में हिरासत में रखे जाने के बाद अब पहलवानों में रोष और अधिक बढ़ गया है। जंतर-मंतर से हटाए गए पहलवानों ने अब एक ऐसी घोषणा की है, जो देश की मर चुकी अंतरात्मा को झकझोरने के लिए काफी होनी चाहिए।

विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया ने सोशल मीडिया के माध्यम से देश के नाम खुला पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने ऐलान किया है कि वे अपने जीते गए सभी पदक हरिद्वार में जाकर गंगा में तिरोहित करेंगे। इसके साथ ही सभी खिलाड़ी अब जंतर-मंतर के बजाय इंडिया गेट पर ‘आमरण अनशन’ पर बैठेंगे।

इस बीच भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने पहलवानों के मेडल में गंगा में प्रवाहित किए जाने की बात पर पहलवानों से अपील की है वह इस तरह का कदम न उठायें। राकेश टिकैत ने कहा है कि यह मेडल देश और तिरंगे की शान है हमारा सभी पहलवानों से अनुरोध है कि ऐसा कदम मत उठाओ। आपने अपने खेल से देश का सिर गर्व से ऊंचा किया है, हमारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जी से अनुरोध है कि मामले को संज्ञान में लेकर पहलवानों से जल्द बातचीत करें।

 

टिकैत ने कहा है कि मेडल समाज की धरोहर है, देश के बच्चों, राष्ट्र और तिरंगे की धरोहर है। हमें ये मेडल वापसी देने होंगे तो वह मेडल राष्ट्रपति जी को वापस किए जाएंगे, सब इस मामले में फैसला लेंगे। इस पर हताश होने की जरूरत नहीं है।

“28 मई को जो हुआ वह आप सब ने देखा। पुलिस ने हम लोगों के साथ क्या किया, हमें कितनी बर्बरता से गिरफ्तार किया। हम शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे। हमारे आंदोलन की जगह को भी पुलिस ने तहस-नहस कर हमसे छीन लिया और अगले दिन गंभीर मामलों में हमारे ऊपर ही एफआईआर दर्ज कर दी गई। क्या महिला पहलवानों ने अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के लिए न्याय मांग कर कोई अपराध कर दिया? पुलिस और तंत्र हमारे साथ अपराधियों जैसा व्यवहार कर रही है, जबकि उत्‍पीड़क खुली सभाओं में हमारे ऊपर फब्तियां कस रहा है। टीवी पर महिला पहलवानों को असहज कर देने वाली घटनाओं को कबूल करके उनको ठहाकों में तब्दील कर दे रहा है, यहां तक कि पोक्सो एक्ट को बदलवाने की बात सरेआम कह रहा है। हम महिला पहलवान अंदर से ऐसा महसूस कर रही हैं कि इस देश में हमारे लिए कुछ नहीं बचा है। हमें वे पल याद हैं जब हमने ओलंपिक, वर्ल्ड चैंपियन में मेडल जीते थे।

अब लग रहा है कि क्यों जीते थे, क्या इसलिए जीते थे कि तंत्र हमारे साथ ऐसे घटिया व्यवहार करें. हमें घसीटे और फिर हमें ही अपराधी बना दे।

कल पूरा दिन हमारी कई महिला पहलवान खेतों में छिपती फिरती रहीं। तंत्र को पकड़ना उत्पीड़क को चाहिए था, लेकिन वह पीड़ित महिलाओं को उनका धरना खत्म करवाने, उन्हें तोड़ने और डराने में लगा हुआ है।

अब लग रहा है कि हमारे गले में सजे इन मेडलों का कोई मतलब नहीं रह गया है। इनको लौटाने की सोचने भर से हमें मौत लग रही थी, लेकिन अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता करके भी क्या जीना?

यह सवाल आया मेडल किसे लौटाएं। हमारी राष्ट्रपति को जो खुद एक महिला हैं? मन ने ना कहा, क्योंकि वह हमसे सिर्फ 2 किलोमीटर बैठी देखती रहीं, लेकिन कुछ भी बोलीं नहीं।

हमारे प्रधानमंत्री को जो हमें अपने घर की बेटियां बताते थे? मन नहीं माना, क्योंकि उन्होंने एक बार भी अपने घर की बेटियों की सुध-बुध नहीं ली, बल्कि नई संसद के उद्घाटन में हमारे उत्पीड़क को बुलाया और वह तेज सफेदी वाले चमकदार कपड़ों में फोटो खिंचवा रहा था। उसकी सफेदी हमें चुभ रही थी, मानो कह रही हो कि मैं ही तंत्र हूं।

इस चमकदार तंत्र में हमारी जगह कहां है। भारत की बेटियों की जगह कहां है? क्या हम सिर्फ नारे बनकर या सत्ता में आने भर का एजेंडा बनकर रह गई हैं?

यह मेडल अब हमें नहीं चाहिए, क्योंकि इन्हें पहनाकर हमें मुखौटा बनाकर सिर्फ अपना प्रचार करता है यह सफेदी वाला तंत्र और फिर हमारा शोषण करता है। हम उस शोषण के खिलाफ बोले तो हमें जेल में डालने की तैयारी कर लेता है।

इन मेडलों को हम गंगा में बहाने जा रहे हैं, क्योंकि जितना पवित्र हम गंगा मां को मानते हैं, उतनी ही पवित्रता से हमने मेहनत कर इन मेडलों को हासिल किया था। यह मेडल सारे देश के लिए ही पवित्र हैं और पवित्र मेडलों को रखने की सही जगह मां गंगा ही हो सकती हैं, ना कि हमें मुखौटा बनाकर फायदा लेने के बाद हमारे उत्पीड़क के साथ खड़ा हो जाने वाला हमारा अपवित्र तंत्र

मेडल हमारी जान हैं, हमारी आत्मा है। इनके गंगा में बह जाने के बाद हमारे जीने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। इसलिए हम इंडिया गेट पर आमरण अनशन पर बैठ जाएंगे। इंडिया गेट हमारे उन शहीदों की जगह है, जिन्होंने देश के लिए अपनी देह त्याग दी। हम उनके जितने पवित्र तो नहीं हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलते वक्त हमारी भावना भी उन सैनिकों जैसी ही थीं।

अपवित्र तंत्र अपना काम कर रहा है और हम अपना काम कर रहे हैं। अब लोगों को सोचना होगा कि वह अपनी बेटियों के साथ खड़े हैं या इन बेटियों का उत्पीड़न करने वाले उस तेज सफेदी वाले तंत्र के साथ।

आज शाम 6:00 बजे हम हरिद्वार में अपने मेडल गंगा में प्रवाहित कर देंगे।

इस महान देश के हम सदा आभारी रहेंगे”।

यहां पढ़ें पूरी चिट्ठी


बता दें कि रविवार को दिल्ली पुलिस ने साक्षी के साथ विश्व चैंपियनशिप की कांस्य विजेता विनेश फोगाट और एक अन्य ओलंपिक पदक विजेता बजरंग पूनिया को हिरासत में लिया और बाद में उनके खिलाफ कानून और व्यवस्था के उल्लंघन के लिए प्राथमिकी दर्ज की। 

जंतर-मंतर पर ओलंपिक और विश्व चैंपियनशिप के पदक विजेताओं को दिल्ली पुलिस ने जबरदस्ती बस में डाला जब रविवार को पहलवानों और उनके सामर्थकों ने सुरक्षा घेरा तोड़कर महिला ‘महापंचायत’ के लिए नए संसद भवन की ओर बढ़ने की कोशिश की। 

पहलवानों को नए संसद भवन की ओर बढ़ने की अनुमति नहीं थी। इसी दिन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को इसका उद्घाटन करना था और पुलिस ने जब पहलानों और उनके समर्थकों को रोका तो उनके बीच धक्का-मुक्की भी हुई। 

विरोध करने वाले पहलवानों और उनके समर्थकों को राष्ट्रीय राजधानी में विभिन्न स्थानों पर ले जाया गया और बाद में रिहा कर दिया गया।.

पहलवानों को बसों में डालने के बाद पुलिस अधिकारियों ने धरना स्थल पर मौजूद चारपाई, गद्दे, कूलर, पंखे और तिरपाल की छत सहित अन्य सामान को हटा दिया। दिल्ली पुलिस ने कहा कि वह पहलवानों को प्रदर्शन स्थल दोबारा आने की स्वीकृति नहीं देगी।

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