Advertisement

Search Result : "उजले दिन"

वीरेन का जाना, जीवंत वामपंथी प्रतिज्ञा को गहरा आघात

वीरेन का जाना, जीवंत वामपंथी प्रतिज्ञा को गहरा आघात

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिकी साम्राज्यवाद और राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी-मार्का हिंदुत्ववादी फासीवाद के मौजूदा वर्चस्व के दौर में वीरेन डंगवाल (1948-2015) की कविता किसी आत्मीय, जीवंत, वामपंथी प्रतिज्ञा की तरह सामने आती है।
उजले दिनों के कासिद वीरेन डंगवाल नहीं रहे

उजले दिनों के कासिद वीरेन डंगवाल नहीं रहे

अपनी कर्मभूमि बरेली में आज सुबह अंतिम सांसे ली, हिंदी के हस्ताक्षर कवि वीरेन डंगवाल ने। पिछले कुछ सालों से वह मुंह के कैंसर से बहादुराना लड़ाई लड़ रहे थे।
Advertisement
Advertisement
Advertisement