क्वीन फिल्म का पुरस्कार जीतने का सिलसिला जारी है। विकास बहल की इस फिल्म ने आईफा अवॉर्ड समारोह में भी इस परंपरा को बनाए रखा। सोहलवें आईफा अवॉर्ड में क्वीन के साथ विशाल भारद्वाज की फिल्म हैदर की झोली में भी कई पुरस्कार आए। सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री कंगना रनौत और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार शाहिद कपूर के नाम रहा।
यदि दिल ऐसे ही धड़कता है तो फिर भगवान ही बचाए। जोया अख्तर (निर्देशक) यदि इस फिल्म का नाम दिमाग बंद रहने दो रखतीं तो एकदम बढ़िया रहता। जोया को समझना चाहिए कि कलाकारों का जमघट भर लगा देने से कोई फिल्म हिट नहीं हो जाती।
कंगना द्वारा यह कहकर फेयरनेस क्रीम के विज्ञापन को ठुकराना कि सेलिब्रिटीज की भी कुछ जिम्मेदारी होनी चाहिए, मुझे बहुत पसंद आया। मुझे यकीन है कि बॉलीवुड के पुरुष सितारे इस पहाड़ी कन्या से कुछ नसीहत लेंगे। लेकिन मैं यह भी कहना चाहती हूं कि तनु वेड्स मनु रिटर्न्स मुझे बहुत उबाऊ लगी। फिल्म देखकर मुझे लगा कि आखिर उससे जुड़ा शोर किस बात का था। मुझे बरसों पहले गैंगस्टर (जिसमें अब लगभग बर्बाद हो चुका शाइनी आहूजा भी लाजवाब था) में अपने लीक से जुदा रूप रंग से भाने वाली कंगना की यह अब तक की सबसे बेकार फिल्म लगी। मेरी राय में वह नशे की शिकार मॉडल के रूप में फैशन में अपने छोटे से रोल में प्रियंका चोपड़ा से कहीं अधिक असरदार रही थी। वहीं क्वीन, फिल्म और उसकी नायिका दोनों बेहद चमत्कारी थे।
कोयला घोटाला मामले के एक आरोपी और कांग्रेस नेता नवीन जिंदल के औद्योगिक समूह से जुड़े एक व्यक्ति ने विशेष न्यायाधीश से एकाधिक बार संपर्क करने की कथित रूप से कोशिश की जिन्होंने उसे भविष्य में ऐसी हरकत करने के खिलाफ चेतावनी दी।
इस साल आइफा पुरस्कारों की मेजबानी रणवीर सिंह के साथ करने को लेकर उत्साहित अभिनेता अर्जुन कपूर को इस बात की खुशी है कि राम लीला के अभिनेता रणवीर के साथ उनके तालमेल को दर्शको ने पसंद किया है।
ईद पर सेवइंयों से ज्यादा बजरंगी भाईजान का इंतजार हो रहा है। दर्शक मनपसंद त्योहार का जिस तरह इंतजार करते हैं, उससे ज्यादा उन्हें सलमान खान की फिल्मों का इंतजार रहता है।
लोग अपनी गर्लफ्रेंड का किस पाने के लिए क्या-क्या जतन नहीं करते। एक बार उसके अधर चेहरे को छू जाएं इसके लिए नए-नए विचार अपनाते हैं। लेकिन फरहान अख्तर इन सबसे अलग हैं। वह एक कुत्ते को अपने चेहरे की ओर आकर्षित करने के क्या-क्या जतन करते रहे।
देश के संवैधानिक प्रमुख की हैसियत से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राजधानी दिल्ली में गहराते संवैधानिक संकट को देखते हुए अब और निष्क्रियता और चुप्पी की आरामतलबी गवारा नहीं कर सकते। केंद्रीय गृह मंत्रालय की अधिसूचना और आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार के उसके खिलाफ विधान सभा का सत्र बुलाने के निर्णय से केंद्र और दिल्ली सरकार का टकराव अब उस कगार पर पहुंच गया है कि बिना न्यायपालिका या राष्ट्रपति जैसी उच्च संवैधानिक संस्थाओं की पंचायती के किसी परिपक्व संवैधानिक हल की उम्मीद नहीं।