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Search Result : " मुझे मेरे मित्र की बहुत याद आती है "

मेरे शौचालय हैं कहां, कोई तो बताए ?

मेरे शौचालय हैं कहां, कोई तो बताए ?

देश भर में जोर-शोर से चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान के बीच मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के बाढ़ गांव के 45 परिवार सरकार से पूछ रहे हैं कि मेरे शौचालय कहां है? निर्मल भारत अभियान के वेबसाइट पर उनके घरों में शौचालय बन चुके हैं, पर वे सभी आज भी खुले में शौच जाने के मजबूर हैं। उनके घरों में शौचालय ही नहीं है। वे अपने गायब शौचालय के लिए लगातार आवेदन दे रहे हैं, पर उनकी सुनवाई ही नहीं हो रही है।
मोदी को विदेश में याद आया हिंदी साहित्य

मोदी को विदेश में याद आया हिंदी साहित्य

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में योगदान के लिए आज मॉरीशस की सराहना की और कहा कि इस भाषा ने विश्व में एक विशेष स्थान हासिल कर लिया है।
केजरीवाल ने मुझे भी टीम अण्‍णा से ‌‌निकाला था: कासमी

केजरीवाल ने मुझे भी टीम अण्‍णा से ‌‌निकाला था: कासमी

आम आदमी पार्टी में चल रहे मौजूदा विवाद के बीच अण्‍णा की टीम के पूर्व सदस्य मुफ्ती शमून कासमी ने कहा है कि उन्होंने जब पारदर्शिता और इंडिया अगेंस्ट करप्शन को मिलने वाले चंदे का मामला उठाया था तो अरविन्द केजरीवाल ने उन्हें भी अण्‍णा की टीम से बाहर निकलवा दिया था।
मांझी मेरे कारण गए मेरा सौभाग्यः चौधरी

मांझी मेरे कारण गए मेरा सौभाग्यः चौधरी

बिहार विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने जीनत राम मांझी के विश्वासमत के दौरान लिए गए अपने फैसलों को सही, संवैधानिक तथा नियमानुकूल ठहराते हुए आज कहा कि यदि मांझी ने उनकी वजह से इस्तीफा दिया है तो वे स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं।
मेरे बच्चे भी पूछ रहे हैं वाई-फाई कब मिलेगा : केजरीवाल

मेरे बच्चे भी पूछ रहे हैं वाई-फाई कब मिलेगा : केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता संभालने के करीब एक हफ्ते बाद शुक्रवार को कहा कि उनकी सरकार आम आदमी पार्टी के चुनावी वायदों के तहत बहुत जल्द बिजली की दरें कम करने जा रही है और मुफ्त पानी योजना शुरू करने वाली है।
पेशावर के बच्चों की याद में वीडियो

पेशावर के बच्चों की याद में वीडियो

पाकिस्तान के मशहूर अभिनेता और संगीतकार अली ज़ाफ़र पेशावर सैनिक स्कूल में मारे गए बच्चों की याद में एक वीडियो बना रहे हैं। इस वीडियो वहां की पचास नामचीन हस्तियां हिस्सा ले रही हैं।
एक धीमी सी याद

एक धीमी सी याद

उनकी मुंदी आंखों के नीचे अंधेरे की गाढ़ी परत बिछी हुई थी। सरकारी अस्पताल के उस आईसीयू में गुजरे जमाने के मशहूर गवैए उस्ताद इकराम मुहम्मद खान को उनकी जिंदगी आखरी सलामी देने की तैयारी कर रही थी।
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