संभवत: पहली बार किसी सांसद ने अपनी ही पार्टी के केंद्रीय मंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की अर्जी दी है। भाजपा सांसद कीर्ति आजाद ने केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ आईपी इस्टेट पुलिस थाने को शिकायत भेजकर एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। आजाद ने आरोप लगाया है कि दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में जो बार संचालित करता है उस बार में 2 अक्टूबर, 2013 को शराब परोसी गई थी जबकि दो अक्टूबर (महात्मा गांधी का जन्मदिन) पूरे देश में शुष्क दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस दिन कहीं भी शराब परोसना कानूनन जुर्म है।
पटना के बाढ इलाके में हाल में चार लोगों के अपहरण और उनमें से एक व्यक्ति की हत्या के मामले में जदयू विधायक अनंत सिंह का नाम आने के बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। इससे पहले अनंत सिंह ने इस मामले से उनका कोई लेना देना नहीं है। उन्हें जबरन फंसाया जा रहा है।
फिल्म अभिनेता इरफान खान ने निर्देशक ओमांग कुमार की आने वाली फिल्म सरबजीत में काम करने को लेकर लगाई जा रही अटकलों पर विराम लगा दिया है। उन्होंने कहा है कि वह इस फिल्म में काम नहीं कर रहे हैं। यह फिल्म पाकिस्तान में मारे गए भारतीय कैदी सरबजीत सिंह के जीवन पर आधारित है।
बिहार विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए जहां चुनौती है वहीं राजद-जदयू के लिए बना अस्तित्व का सवाल। दोनों ही तरफ लामबंदी तेज हो गई है। चुनावी मुद्दे और टीम?ं सज रही हैं, जातियों के इर्द-गिर्द गोटियां बैठाई जा रही हैं। जनता जनार्दन को अपन पक्ष में खींचने की कवायद तेज। बिहार विधानसभा चुनावों में छुपा है देश की भविष्य की राजनीति का राज। अगर नीतीश गठबंधन जीता तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प होंगे और अगर मोदी ने फतह किया, तो उत्तर भारत पर पकड़ होगी मजबूत।
बिहार की राजनीति में अलग अंदाज में गठजोड़ करने में वह माहिर हैं। पुराने गठजोड़ों को नया रंग देने की कला में वह निपुण हैं। स्थिति के हिसाब से दुश्मनों को दोस्त और पुराने साथियों से अखाड़े में कुश्ती की कला में पारंगत हैं। जब ये लगने लगे कि बिहार उनके हाथ से निकल ही गया तो फिर वह अपनी नई चाल से खेवनहार बनने की दावेदारी पेश करते हैं। जिनको सत्ता से हटाने के लिए उन्होंने अपनी पार्टी की कतारों को लामबंद किया, उन्हीं लालू प्रसाद यादव के साथ आज वह गलबहियां डाल उगता बिहार, नूतन बिहार के नारे के साथ वोट मांगने की तैयारी में हैं।
गुजरात में बहुत से लोगों के लिए केंद्र सरकार के एक साल पूरा होते न होते अच्छे दिन आ गए हैं। जिनके दिन और रात पहले से काले थे, उन्हें अब अमावस्या में जीने की सलाह दी जा रही है। आज की वारीख में चाहे वह इशरत जहां का फर्जी एनकाउंटर का मामला हो या सोहराबुद्दीन की हत्या का, सब मामलों में तमाम आरोपियों को जेल से मुक्ति, मुकदमों से मुक्ति की राह निकल पड़ी है। दोषियों, आरोपियों की रिहाई की यह रेल जिस तेजी से चल रही है, उसमें 2002 गुजरात नरंसहार के दोषियों को भी मुक्ति की आस बंध गई है।
एक बुजुर्ग पिता पिछले आठ महीनों से रक्षा मंत्रालय, सेना मुख्यालय के चक्कर काट रहा है। जिंदगी भर पूरे दमखम से सत्ता प्रतिष्ठानों से लड़ने-भिड़ने का रसूख रखने वाले सांवलराम यादव ने प्रण किया है कि वह युद्ध में हताहत हुए अपने बेटे को शहीद का दर्जा दिलवाए बिना चैन से नहीं बैठेंगे। मामला सिर्फ एक जवान की मौत का नहीं है। इससे जुड़ा हुआ है, उन सैकड़ों जवानों की मौत का मसला जो सियाचिन से लेकर दुर्गम सीमा पर देश के लिए अत्यंत विषम परिस्थितियों में जान गंवा देते हैं। इन जवानों की मौत को आखिरकार शहीद का दर्जा क्यों नहीं मिलता?