महागठबंधन की इस आंधी में बिहार की राजनीति के कई बड़े और चर्चित चेहरों को हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा, लोजपा और हम के साथ साथ एमआईएम के कई बड़े नेता हार गए हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण के मतदान के बाद आए टूडेज चाणक्य ने महागठबंधन के नेताओं को चौका दिया। चाणक्य के एक्जिट पोल के मुताबिक बिहार में भाजपा गठबंधन की सरकार बनना तय है।
पटना हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही यात्रियों का इंतजार कर रहे टैक्सी, ऑटो रिक्शा वालों ने पूछा कि कहां चलना है। कुछ न बोलते हुए जब आगे बढ़ा तो एक रिक्शा वाला मिला और बोला कहां चलना है साहब, मैंने कहा बोरिंग रोड। बोला छोड़ दूंगा। खैर मुझे बोरिंग रोड तो जाना नहीं था लेकिन मैंने सोचा रिक्शा से चलते कुछ चुनावी माहौल का जायजा लिया जाए। छपरा का रहने वाला रिक्शा चालक कमलेश से जब पूछा कि बिहार में चुनाव है और कहीं कोई शोर नहीं हो रहा कही कोई बड़े-बड़े पोस्टर नहीं दिखाई पड़ रहा है। कमलेश बोला कि साहब यह एयरपोर्ट का इलाका है जब आप शहर में जाएंगे तो हालात बदले हुए नजर आएंगे। खैर कमलेश ने बताया कि साहब किसी की लहर नहीं है कौन चुनाव जीतेगा कह पाना मुश्किल है। मैंने पूछा क्यों, कमलेश कहता है कि विकास का जो मुद्दा भारतीय जनता पार्टी का है तो वही मुद्दा तो नीतीश कुमार का रहा है। आज बिहार में जो विकास हुआ है वह नीतीश कुमार की ही बदौलत हुआ है।
बिहार विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नजर है। चुनाव परिणाम जो भी हो लेकिन सभी दल अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। मुख्य मुकाबला भाजपानीत राजग और महागठबंधन (जदयू, राजद, कांग्रेस) के बीच है। लोकसभा चुनाव के बाद राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में जीत की लय (दिल्ली को छोडक़र) बरकरार रखने के लिए भाजपा कड़ी मेहनत कर रही है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह आश्वत हैं कि इस चुनाव में भी जीत निश्चित है। शाह के व्यस्त कार्यक्रमों के बीच आउटलुक के विशेष संवाददाता ने पटना में विस्तार से बात की। पेश है प्रमुख अंश-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, संभवतः नीतीश और भारती यादव अपने दोस्त की शादी में जिस तरह डांस कर रहे थे उसने भारती के भाइयों विकास और विशाल को गुस्सा दिला दिया और उन्होंने नीतीश का अपहरण कर उसकी हत्या कर दी।
अपने 10 वर्ष के कार्यकाल में नीतीश कुमार ने छोटे बच्चों में पूर्ण टीकाकरण को 18.6 फीसदी से 70 फीसदी तक पहुंचाने में कामयाबी हासिल की। यह देश के औसत के बराबर है।
विधि आयोग को एक स्थायी संस्था का रूप देने के प्रस्ताव को फिलहाल सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है और हर तीन साल पर पुनर्गठन की मौजूदा व्यवस्था को जारी रखने का फैसला किया है।