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कविता - जन्नत न जाने पाए

कविता - जन्नत न जाने पाए

सितंबर 1947 में बक्सर, बिहार में जन्में उपेन्द्र कुमार सन 1972 की भारतीय प्रशासनिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर सरकारी सेवा में नियुक्ति, संसदीय कार्य, श्रम एवं रक्षा मंत्रालयों के विभिन्न विभागों में 35 वर्षों से अधिक सक्रीय सेवा में रहे। उनकी पुस्तकों में बूढ़ी जड़ों का नवजात जंगल, मैं बोल पड़ना चाहता हूं, चुप नहीं है समय, प्रतीक्षा में पहाड़, गांधारी पूछती है, उदास पानी, प्रेम प्रसंग, गहन है यह अंधकार प्रमुख है। उन्हें कई पुरस्कार एवं सम्मान मिल चुके हैं।
मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार समारोह

मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार समारोह

मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रतिष्ठित भवभूति अलंकरण एवं वागीश्वरी पुरस्कार समारोह का गरिमामय आयोजन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के वीथि संकुल सभागार, भोपाल में विख्यात कवि, कथाकार फिल्मकार उदयप्रकाश की अध्यक्षता, वरिष्ठ साहित्यकार-शिक्षाविद प्रोफेसर रमेश दवे के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ।
वृत्तचित्र व्यवसाय के व्यवधान

वृत्तचित्र व्यवसाय के व्यवधान

बहुत दिन नहीं बीते हैं, जब बीबीसी के लिए लेजली उडविन द्वारा बनाए गए एक वृत्तचित्र पर खूब हंगामा हुआ। संसद से लेकर सडक़ तक विरोध के स्वर गूंजे और शायद इसी बहाने पहली बार भारत में वृत्तचित्र पर इतनी बात हुई।
सात समंदर पार कविताओं का संसार

सात समंदर पार कविताओं का संसार

कनाडा हिंदू सोसाइटी, मोर्रिस्विल्ले के सांस्कृतिक भवन के प्रांगण में अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति और हिंदी विकास मंडल के तत्त्वाधान में कवि- सम्मलेन का आयोजन हुआ। कवि सम्मलेन में बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित हुए।
‘कनहर’ पर कहरः पुलिस की गोली से छलनी आदिवासी

‘कनहर’ पर कहरः पुलिस की गोली से छलनी आदिवासी

सोनभद्र में 38 वर्षों से लंबित कनहर सिंचाई परियोजना को लेकर डूब क्षेत्र के ग्रामीणों और जिला प्रशासन में खूनी संघर्ष। प्रशासन ने की परियोजना स्थल की नाकाबंदी। धरनारत ग्रामीणों पर हुई गोलीबारी की जांच करने पहुंचे स्वतंत्र जांच दल को परियोजना निर्माण समर्थकों ने दो घंटे तक बनाया बंधक।
व्यवस्था की विकलांगता ही चुनौतीः केदार

व्यवस्था की विकलांगता ही चुनौतीः केदार

जब वह मेरे दफ्तर मिलने के लिए आए तो अचानक ही लगा कि मेरा दफ्तर भी विकलांग व्यक्ति के लिए कितना असुविधाजनक है। वह हथेलियों में हवाई चप्पल पहने हुए पूरी सहजता और जबर्दस्त आत्मविश्वास के साथ दफ्तर में आ चुके थे। तकरीबन लपकते हुए वह कुर्सी की ओर बढ़े।
विरह में दो मंत्र

विरह में दो मंत्र

सर्वेश सिंह की कविताएं आध्यात्म और वास्तविक जीवन के ईद-गिर्द खूबसूरत ताना-बाना बुनती हैं। उनके द्वारा लिखे गए कई लेखों पर तीखी बहसें भी हुई हैं। उनकी कहानी ज्ञान क्षेत्रे, कुरूक्षेत्रे को बहुत सराहना मिली थी। सर्वेश फिलवक्त डीएवीपीजी कॉलेज, बनारस में हिंदी विभागाध्यक्ष हैं।
मोदी की हिंदी पाठशाला

मोदी की हिंदी पाठशाला

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने गैर हिंदी भाषी सांसदों को हिंदी सिखाने जा रहे हैं। इसके लिए बाकायदा विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाएंगी और सप्ताहंत में कक्षाएं लगेंगी। अ से अनार और आ से आम सीखने के लिए कुछ सांसद राजी हैं तो कुछ ‘स्कूल’ आना नहीं चाहते
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