ट्रिनिटी वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में शुरू हो रहे तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन अंतरराष्ट्रीय दलित अधिकार आयोग (आईसीडीआर) और वैश्विक सम्मेलन आयोजन समिति (जीसीओसी) द्वारा किया जा रहा है।
पूर्व दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन और उनके भाई कलानिधि मारन ने सोमवार को अलग-अलग याचिकाएं दायर कर एयरेसल-मैक्सिस सौदा मामला चलाने के विशेष टूजी अदालत के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि भारत को सिर्फ शांति सुनिश्चित करने के लिए ही नहीं बल्कि अपनी क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा के लिए भी मजबूत रक्षा बलों की जरूरत है।
किसानो को उनका वाजिब हक दिलाने के लिए सामाजिक कार्यकर्त अण्णा हजारे वर्धा से दिल्ली तक पदयात्रा करेंगे। इस यात्रा में वह कुल 1100 सौ किलोमीटर चलेंगे। एक अनुमान के मुताबिक उन्हें इस यात्रा के लिए तीन महीने लगेगें।
विकास के वादे के साथ सत्ता में आई नई सरकार ने सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों और विधानों पर निर्दयता से धावा बोल दिया है। अक्तूबरए 2014 में यह अफवाह उड़ाई गई कि कुछ जिलों में मनरेगा योजना बंद कर दी जाएगीए हालांकि प्रस्तावित बदलावों को लागू नहीं किया गया। मनरेगा के लिए वित्त की कमी करके और मजदूरी के भुगतान में देरी करके इसको धीरे.धीरे खत्म करने की स्थिति पैदा की जा रही है।
केंद्र सरकार ने भारत को मैला प्रथा से मुक्त कराने की दिशा में देश भर से राज्य मंत्रियों की उच्च स्तरीय सम्मेलन बुलाया है। यह सम्मेलन दिल्ली के डीआरडीओ भवन में चल रही है और इसमें इस कुप्रथा के खात्मे के लिए अब तक उठाए गए कदमों की विवेचना हो रही है।
बच्चों के विकास में बाधा बन सकता है स्मार्ट फोन। एक नए अनुसंधान से यह पता चला है। यह उन माता-पिता के लिए चेतावनी है जो अपने बच्चों को व्यस्त रखने के लिए उऩ्हें स्मार्ट फोन थमा देते हैंं।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लगभग पांच लाख ट्रांसजेंडर हैं। हालांकि इनकी गिनती इससे कहीं ज्यादा है। इनके अधिकारों की बात करें तो तमिलनाडु राज्य में इन्हें सबसे अधिक अधिकार प्राप्त हैं।
सूचना के अधिकार कानून के क्रियान्वयन पर अभी चार अध्ययन आए हैं। दो गैर सरकारी, परिवर्तन और सूचना के जनाधिकार पर राष्ट्रीय अभियान द्वारा, और दो सरकारी, केंद्रीय सूचना आयोग की कमेटी और स्वयं भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय द्वारा। सभी की रिपोर्ट के अनुसार सूचना का अधिकार सक्षमता से लागू करने में मुख्य बाधा अपर्याप्त क्रियान्वयन, कर्मचारियों के प्रशिक्षण का अभाव और खराब दस्तावेज प्रबंधन है। किसी ने फाइल देखने की नोटिंग की मांगों और खिझाऊ तथा तुच्छ आवेदनों के कारण नहीं माना है। फिर भी कार्मिक मंत्रालय नौकरशाही के दबाव में इनसे संबंधित लाना चाहता है तो उसकी मंशा पर शक होता है वही कार्मिक मंत्रालय जिसका अपना अध्ययन बताता है कि अभी देश के सिर्फ 15 प्रतिशत लोगों को सूचना के अधिकार के कानून की जानकारी है और 85 प्रतिशत लोगों को नहीं। यानी नौकरशाही अभी भी सिर्फ 15 प्रतिशत भारतीयों के प्रति जवाबदेह होने से भी कतरा रही है। और परिवर्तन की रिपोर्ट के अनुसार इन 15 प्रतिशत में सिर्फ एक-चौथाई यानी 27 फीसदी ही संतोषप्रद सूचना हासिल कर पाते हैं।