विवादों के लिए चर्चित दिल्ली के मांस निर्यातक मोइन कुरैशी को आज अधिकारियों ने थोड़े समय के लिए दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हिरासत में ले लिया पर बाद में उन्हें दुबई के लिए उड़ान पकड़ने की छूट दे दी गई। कुरैशी को मनी लॉंड्रिंग के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जारी तलाश नोटिस के आधार पर रोका गया था।
श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर पंपोर इलाके में स्थित एक सरकारी इमारत में छिपे आतंकियों के साथ आज लगातार दूसरे दिन सुरक्षा बलों की मुठभेड़ जारी है। वहीं दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में एक सीआरपीएफ गश्ती दल पर आज ग्रेनेड से हमला किया गया जिसमें दो जवानों समेत नौ लोग घायल हो गए।
छत्तीसगढ़ में सोशल मीडिया पर भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर टिप्पणी करने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को जिले से हटाकर मंत्रालय भेज दिया गया है। अधिकारी को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया जा रहा है।
केंद्र या राज्य सरकारों की योजनाएं बड़ी महत्वाकांक्षाओं के साथ बनाई जाती है। जोर-शोर से घोषणाएं भी होती हैं। बजट में विपुल धनराशि का प्रावधान हो जाता है। लेकिन किसी भी योजना, कार्यक्रम पर अमल ठीक से नहीं होने पर सारे सपने धरे रह जाते हैं।
कश्मीर में हिंसा और बंद को सरकार के राजपत्रित अधिकारी और पुलिस कर्मी भी हवा दे रहे हैं। अलगाववादियों की मंशा को पूरा करने में अधिकारी बराबर मदद कर रहे हैं। ऐसे 150 सरकारी मुलाजिमों की अब तक पहचान की जा चुकी है। सूबे की सरकार ने हालांकि इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
आतंकियों और अलगाववादियों की धमकी को धता बताते हुए पूरे कश्मीर से हजारों युवाओं ने विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के 10,000 पदों के लिए आवेदन दिए हैं। कश्मीर में जारी अशांति में अब तक 82 लोगों की मौत हो चुकी है।
पिछले दिनों उड़ीसा के एक सरकारी अस्पताल से वाहन नहीं मिलने पर पत्नी के शव को कंधे पर 12 किलोमीटर तक ढोने वाले दाना मांझी का वीडियो वायरल होने के बाद अब उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया है। यहां एक बेटे का अपने पिता के शव को ठेले पर लादकर ले जाते हुए वीडियो वायरल हुआ है।
उच्चतम न्यायालय ने आज गैरशिक्षण पृष्ठभूमि के एक व्यक्ति की प्रतिष्ठित अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के कुलपति के रूप में नियुक्ति पर सवाल खड़ा किया। कुलपति के पद पर पूर्व सैन्य अधिकारी जमीरउद्दीन शाह की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह सवाल उठाया।