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Search Result : "समान अधिकार आंदोलन"

केजरी, किरण को अण्णा का न्योता नहीं

केजरी, किरण को अण्णा का न्योता नहीं

अण्णा हजारे का 23-24 फरवरी को दिल्ली के तर-मंतर पर होने वाला आंदोलन सांकेतिक आंदोलन होगा। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ, किसानों के हक को लेकर इस धरने में देशभर से लोग जुटेंगे। सरकार ने अगर तीन महीने तक आंदोलकारियों की प्रस्तावित मांगों पर गौर नहीं किया तो रामलीला मैदान में अनिश्चिकालीन धरना दिया जाएगा।
राजस्व गांव की मांग को लेकर प्रदर्शन

राजस्व गांव की मांग को लेकर प्रदर्शन

उत्तराखंड में बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने की मांग को लेकर अखिल भारतीय किसान महासभा ने बड़ा प्रदर्शन किया। बिंदुखत्ता नैनीताल जिले का एक गांव है। इसकी आबादी पच्चीस हजार से ज्यादा है।
अन्ना फिर करेंगे आंदोलन

अन्ना फिर करेंगे आंदोलन

अन्ना का कहना है कि काले धन के मुद्दे पर कहा कि जनता के साथ जो ''धोखाधड़ी की गई है इसलिए अब जनता सरकार को सबक सिखाएगी।
आगाज तो अच्छा , अंजाम क्या होगा

आगाज तो अच्छा , अंजाम क्या होगा

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लगभग पांच लाख ट्रांसजेंडर हैं। हालांकि इनकी गिनती इससे कहीं ज्यादा है। इनके अधिकारों की बात करें तो तमिलनाडु राज्य में इन्हें सबसे अधिक अधिकार प्राप्त हैं।
जवाबदेही के जुए से कतराती नौकरशाही

जवाबदेही के जुए से कतराती नौकरशाही

सूचना के अधिकार कानून के क्रियान्वयन पर अभी चार अध्ययन आए हैं। दो गैर सरकारी, परिवर्तन और सूचना के जनाधिकार पर राष्‍ट्रीय अभियान द्वारा, और दो सरकारी, केंद्रीय सूचना आयोग की कमेटी और स्वयं भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय द्वारा। सभी की रिपोर्ट के अनुसार सूचना का अधिकार सक्षमता से लागू करने में मुख्य बाधा अपर्याप्त क्रियान्वयन, कर्मचारियों के प्रशिक्षण का अभाव और खराब दस्तावेज प्रबंधन है। किसी ने फाइल देखने की नोटिंग की मांगों और खिझाऊ तथा तुच्छ आवेदनों के कारण नहीं माना है। फिर भी कार्मिक मंत्रालय नौकरशाही के दबाव में इनसे संबंधित लाना चाहता है तो उसकी मंशा पर शक होता है वही कार्मिक मंत्रालय जिसका अपना अध्ययन बताता है कि अभी देश के सिर्फ 15 प्रतिशत लोगों को सूचना के अधिकार के कानून की जानकारी है और 85 प्रतिशत लोगों को नहीं। यानी नौकरशाही अभी भी सिर्फ 15 प्रतिशत भारतीयों के प्रति जवाबदेह होने से भी कतरा रही है। और परिवर्तन की रिपोर्ट के अनुसार इन 15 प्रतिशत में सिर्फ एक-चौथाई यानी 27 फीसदी ही संतोषप्रद सूचना हासिल कर पाते हैं।
सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

चुनिंदा नायकों या खलनायकों की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के कारण इतिहास का सम्यक विवेचन नहीं हो पाता। जैसे गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना और माउंटबेटन पर ज्यादा जोर देने से हमें भारत विभाजन के बारे में कई जरूरी प्रश्‍नों के उत्तर नहीं मिलते। मसलन, देसी मुहावरे में आम जनता को अपनी बात समझाने में माहिर और उनमें आजादी के लिए माद्दा जगाने वाले गांधी अपने तमाम सद्प्रयासों के बावजूद नाजुक ऐतिहासिक मौके पर आम हिंदू-मुसलमान को एक-दूसरे के प्रति सांप्रदायिक दरार से बचने की बात समझाने में क्यों विफल रहे, नोआखली जैसी अपनी साक्षात उपस्थिति वाली जगह को छोडक़र? जिन्ना की महत्वकांक्षा और जिद को कितना भी दोष दें, कलकत्ता और अन्य जगहों का आम मुसलमान क्यों उनके उकसावे पर पाकिस्तान हासिल करने के लिए खून-खराबे पर उतारू हो गया?
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