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Search Result : "सतीश चंद्र मिश्र"

नेताजी पर सरकार का पाखंड

नेताजी पर सरकार का पाखंड

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के रहस्य के मसले पर कांग्रेस की सरकारों, खासकर पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ आग उगलने वाली भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली वाजपेयी सरकार और वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने भी इससे संबंधित विभिन्न आयोगों की रिपोर्टों, खुफिया सूचनाओं और अन्य दस्तावेजों के खुलासे से इनकार किया।
‘बांसुरी मेरा पहला प्यार है’-मु्‍क्तेश चंद्र

‘बांसुरी मेरा पहला प्यार है’-मु्‍क्तेश चंद्र

दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त यातायात मुक्तेश चंद्र का नाम सुनते ही एक दबंग अंदाज, कड़क मिजाज और अनुशासन प्रिय अधिकारी की छवि उभरकर सामने आती है। लेकिन इस छवि के अलावा मुक्तेश चंद्र की पहचान एक बांसुरी वादक के रुप में भी है। 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी मुक्तेश चंद्र से बांसुरी के प्रति उनके लगाव और निष्ठा को लेकर बातचीत की गई। पेश है प्रमुख अंश-
काटजू को गुस्सा क्यों आता है?

काटजू को गुस्सा क्यों आता है?

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू फिर चर्चाओं में हैं। इस बार उन्होंने राष्ट्र पिता माने जाने वाले मोहनदास करमचंद गांधी यानी महात्मा गांधी और आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस की आलोचना की है। उन्होंने गांधी को फर्जी और बोस को जापानी फासिस्टों का एजेंट कहा है। काटजू के बयान के लिए राज्यसभा में उनकी निंदा का प्रस्ताव पास किया जा चुका है।
हाशिये के लोगों पर काम करने वाले सम्मानित

हाशिये के लोगों पर काम करने वाले सम्मानित

रमणिका फाउंडेसन का सम्मान समारोह हाशिए के शब्दों को रेखांकित करने और पूरी शक्ति के साथ उनके समर्थन में खड़े होने के अपने संकल्प की ओर बढ़या गया एक ठोस और सार्थक कदम है
बेदी को लाने से नुकसान हुआः कलराज

बेदी को लाने से नुकसान हुआः कलराज

केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री कलराज मिश्र ने कहा है कि किरण बेदी को नेता के तौर पर पेश किए जाने से दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान हुआ और पार्टी अब अन्य राज्यों में पैराशूट नेताओं के कारण पैदा होने वाली स्थिति से निपटने के लिये ठोस रणनीति बना रही है।
न्यायिक देर से भी अंधेर हो सकता है

न्यायिक देर से भी अंधेर हो सकता है

भारतीय संविधान के तहत उपलब्ध न्यायिक सुनवाई के अधिकार और संस्थाबद्ध प्रणालियों में त्वरित न्याययिक सुनवाई के अधिकार की ज्यादा गुंजाइश नहीं बनाई गई है, यह हाल में 40 साल बाद ललित नारायण मिश्र हत्याकांड में आए फैसले से साबित है।