विश्व कप के दूसरे मैच में ऑस्ट्रेलिया ने अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी इंग्लैंड के समक्ष नौ विकेट गंवाकर जीत के लिए 343 रनों का लक्ष्य दिया लेकिन इंग्लैंड की टीम 231 रनों पर ही ऑल आउट हो गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्रिकेट वर्ल्ड कप से ठीक पहले सार्क देशों के नेताओं के साथ संपर्क साधा और क्रिकेट पर चर्चा की। भारत के अलावा पाकिस्तान, बांगलादेश, श्रीलंका और अफ़ग़ानिस्तान की टीमों को उन्होंने शुभकामनाएं भेजीं। पाकिस्तान के साथ सचिव स्तर की बातचीत दुबारा शुरु होने के संकेत फिर से मिलने लगे हैं और इसे क्रिकेट कूटनीति की जीत के रूप में देखा जाने लगा है।
विश्व कप के पहले मैच से ही उलटफेर का आगाज हो चुका है। जैसी कि आशंका थी आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की उछाल और स्विंग लेती पिच पर दक्षिण एशियाई टीमों का खेलना मुश्किल हो जाएगा, न्यूजीलैंड ने अपनी जमीन पर श्रीलंका को 98 रनों के बड़े अंतर से धो डाला।
भारत रूस में होने वाले फीफा विश्व कप 2018 के पहले क्वालीफाइंग दौर के मुकाबले में नेपाल से खेलेगा। क्वालीफाइंग दौर के डा आज कुआलालम्पुर स्थित एएफसी मुख्यालय में निकाले गए।
पूर्व क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी अब तक टीम इंडिया का चुनाव न होने से हैरान हैं। बेदी का मानना है कि विश्व कप में दस दिन से भी कम समय बचा है और भारत अपनी मुख्य टीम की पहचान तक नहीं पा रहा है। इससे टीम के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है।
दोनों टीमें पूल बी के दूसरे मैच में 15 फरवरी को होंगी आमने-सामने, लेकिन इंग्लैंड और न्यूजीलैंड से हार के कारण बल्लेबाजी और गेंदबाजी लय में नहीं दिख रही हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र में सत्ता संभालने के बाद से प्रवासी भारतीयों पर खास ध्यान रखे हुए हैं। इसकी झलक सात से नौ जनवरी तक गुजरात के गांधीनगर में हुए भव्य प्रवासी सम्मेलन में दिखाई दी। घोषणाएं तो खूब हुईं लेकिन इसके जवाब में प्रवासी निवेश कितना आएगा, इसे लेकर दुविधा ज्यों की-त्यों बरकरार है।
राष्ट्र¬भाषा होने का दावा करने वाली हिंदी के मीडिया से तो इसी राष्ट्र का हिस्सा माना जाने वाला मणिपुर अमूमन गायब ही होता है और उत्तर पूर्व में असम अगर यदा-कदा चर्चा में आता भी है तो बिहारियों, झारखंडियों पर उग्रवादी हमले के कारण या अरूणाचल प्रदेश की चर्चा होती है तो चीनी दावेदारी के हंगामें के कारण। हिंदी के एक्टिविस्ट संपादक प्रभाष जोशी के निधन के बाद की चर्चा में यह प्रसंग जरूर आया कि वह 5 नवंबर को नागरिकों की एक टीम के साथ मणिपुर जाना चाहते थे लेकिन यह टीम मणिपुर की जिन उपरोक्त परिस्थितियों के बारे में एक तथ्यान्वेषण मिशन पर वहां जा रही थी उसका जिक्र ओझल ही रहा। और जिस ऐतिहासिक अवसर पर यह टीम मणिपुर जा रही थी उसका जिक्र तो भला कितना होता? यह ऐतिहासिक अवसर था 37 वर्षीय इरोम शर्मिला के आमरण अनशन के दसवें वर्ष में प्रवेश का। गांधी और नेल्सन मंडेला की जीवनी सिरहाने रखे बंदी परिस्थितियों में इंफाल के एक अस्पताल में अनशनरत अहिंसक वीरांगना के नाक में टयूब के जरिये जबरन तरल भोजन देकर सरकार जिंदा रखे हुए है। अपढ़ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पिता और अपढ़ माता की नौवीं संतान शर्मिला सन 2000 में असम राइफल्स के जवानों पर बागियों की बमबारी के जवाब में सशस्त्र बलों द्वारा एक बस स्टैंड पर 10 निर्दोष नागरिकों को भूने जाने की खबरें अखबारों में पढक़र और तस्वीरें देखकर तथा उन सुरक्षाकर्मियों को सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम के कारण सजा की कोई संभावना न जानकर इतना विचलित हुई कि उन्होंने इस तानाशाही कानून के खिलाफ आमरण अनशन का फैसला ले लिया।