क्या आम आदमी पार्टी (आप) सचमुच लोकतांत्रिक मूल्यों या सामाजिक सरोकारों के लिए लड़ना चाहती है या जैसे-तैसे चुनाव जीतना ही इसका पहला मक़सद है? पार्टी के भीतर चल रही उथल-पुथल से यह अहम सवाल पैदा होता है।
आम आदमी पार्टी के असंतुष्ट नेता प्रशांत भूषण ने पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल को नया पत्र लिखकर उन मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित किया है जिन्हें वह उठाने की कोशिश करते रहे हैं। भूषण ने इन खबरों को भी खारिज कर दिया कि अगर केजरीवाल उनकी मांगों को मान लेते हैं तो वह राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटने को तैयार हैं।
गौहत्या पर प्रतिबंध गाय के संरक्षण के बजाय उल्टा गौ-अर्थव्यवस्था पर ही भारी पड़ सकता है। गौ मांस पर पाबंदी की बहस में पशुपालन, मीट उद्योग और पाबंदी के कानूनों की आड़ में फलते-फूलते अवैध कारोबार को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा है।
विचार, कला, लेखन, फिल्म, धर्म, यात्रा, आहार-सब पर पाबंदी यानी पूरा देश ही बन गया पवित्र गौ। यह मत करो, वह मत देखो, यह मत खाओ, वह मत पढ़ो, यह मत पहनो, यहां-वहां मत जाओ, इस तरह की बंदिशें पूरे समाज पर कसी जा रही हैं। महाराष्ट्र की भाजपा सरकार द्वारा गाय को मारने पर प्रतिबंध लगाए जाने और फिल्म इंडियाज डॉटर पर लगी रोक ने देश भर में खलबली पैदा कर दी।
भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति, प्रत्यक्ष लोकतंत्र (डायरेक्ट डेमोक्रेसी), स्वराज जैसे जुमलों को हवा में उछाल कर जिस तरह आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ दिल्ली की सत्ता में आई। उसे जनता के एक बड़े हिस्से ने भारतीय राजनीति में बदलाव की ताकत के तौर पर देखा। लेकिन पार्टी के मुख्य हीरो जिस तरह लगातार इन शब्दों का मजाक उड़ाते रहे उससे नाराज लोग अब सवाल उठाने लगे हैं कि यह आप का स्वराज है कहां?
आप की भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति की पोल अब पूरी तरह खुल चुकी है। यह भी साबित हो चुका है कि पार्टी का केजरीवाल गुट किसी भी तरह से सत्ता में आना और बने रहना चाहता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में जिस तरह से आपराधिक, धनबली और बाहुबली प्रत्याशियों को मैदान में उतारा गया उस पर सवाल तो उठे थे लेकिन केजरीवाल गुट के मीडिया मैनेजरों ने कभी भी इन्हें मुख्य सवाल नहीं बनने दिया। क्या अपराधियों और बाहुबलियों को साथ लेकर कोई भ्रष्टाचार विरोधी लड़ी जा सकती है। यह सवाल उठाना अब पार्टी के वरिष्ठ नेता योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को महंगा पड़ रहा है क्योंकि कल के उम्मीदवार आज चुनाव जीत चुके हैं और दोनों नेताओं को ठिकाने लगाने के लिए अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी कर रहे हैं।
विनोद मेहता की कई बातें जो उन्हें अन्य संपादकों से अलग करती थीं, उनमें सबसे बड़ी यह है कि वे लोकतंत्र में सिर्फ यकीन ही नहीं करते थे, उसे पत्रकारिता में भी पूरी तरह अपनाया हुआ था। संपादक के नाम पत्र कॉलम में अपने खिलाफ लिखी चिट्ठियों को भी वे जिस तरह तवज्जो देते थे, उसकी मिसाल शायद ही अन्यत्र मिले।
बलात्कार के आरोपी व्यक्ति की भीड़ द्वारा हत्या किए जाने की घटना के बाद नगालैंड के दीमापुर में हालात सामान्य की ओर लौट रहा है। शहर में कर्फ्यू में भी ढील दी गई है और तीन दिन बाद फिर से बाजार खुले। इस बीच घटना के संबंध में और अधिक गिरफ्तारियां की गईं।
नगालैंड में बलात्कार के आरोपी को पीट पीट कर मार डाले जाने का मुद्दा आज लोकसभा में उठा और असम के कांग्रेस सदस्यों ने इस मामले को प्रदेश सरकार की विफलता करार दिया।
शिवसेना ने दीमापुर में भीड़ द्वारा बलात्कार के आरोपी को जेल से बाहर खींचकर मार डालने की घटना को सही ठहराने की कोशिश की है। पार्टी मुखपत्र सामना में इस संदर्भ में एक लेख छापा गया है।
एक ओर जहां हम निर्भया गैंगरेप के आरोपियों से संबंधित डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण पर पाबंदी लगाने में जुटे हैं और इसपर देश में अच्छी-खासी बहस चल रही है वहीं अमेरिका में वहां के एक टीवी स्टेशन ने जेल में बंद एक कैदी का इंटरव्यू प्रसारित किया है जिसने यह कह कर सनसनी फैला दी है कि अगर वह गिरफ्तार नहीं होता तो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को मार गिराता।