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Search Result : "रुपये का मूल्य"

रघुराम राजन से आखिर क्यों नाराज हैं सुब्रह्मण्यम स्वामी

रघुराम राजन से आखिर क्यों नाराज हैं सुब्रह्मण्यम स्वामी

सीधे-सीधे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर पर हमला बोलने के पीछे के कारणों पर कयास जारी, क्या इसकी वजह राजन के कठोर कदम हैं, जिससे नाराज हैं बड़े कॉरपोरेट
मोहाली के पूरे दो सेक्टरों की मालिक है यह आरोपी कंपनी

मोहाली के पूरे दो सेक्टरों की मालिक है यह आरोपी कंपनी

सीबीआई जांच का सामना कर रहे पर्ल समूह के पास मोहाली में दो पूर्ण सेक्टरों 100 और 104 का स्वामित्व है। इसके अलावा समूह के पास सेक्टर 96 और सेक्टर 99 में भी आधा हिस्सा है। सीबीआई द्वारा समूह की परिसंपत्तियों के विश्लेषण से यह तथ्य सामने आया है। समूह पर करीब पांच करोड़ निवेशकों को 51,000 करोड़ रुपये का चूना लगाने का आरोप है।
70 करोड़ की जमीन पौने दो लाख रुपये में मिली हेमा मालिनी को

70 करोड़ की जमीन पौने दो लाख रुपये में मिली हेमा मालिनी को

बॉलीवुड अभिनेत्री और भाजपा सांसद हेमामालिनी को नृत्य अकादमी खोलने के लिए ओशिवाड़ा इलाके में महाराष्ट्र सरकार की संशोधित नीति के तहत 70 करोड़ रुपये की जमीन महज पौने दो लाख रुपये में मिली। यह दावा आज एक आरटीआई कार्यकर्ता ने किया।
चर्चाः दाल खट्टी, चीनी कड़वी | आलोक मेहता

चर्चाः दाल खट्टी, चीनी कड़वी | आलोक मेहता

स्वास्‍थ्य गड़बड़ होने पर मुंह का स्वाद बदल जाता है। इसी तरह भारत में मौसम के साथ महंगाई बढ़ने पर आम आदमी के दांत खट्टे भले ही न हों, दाल खट्टी और चीनी कड़वी लगने लगती है। एक तरफ किसानों को अनाज, तिलहन और गन्ने का सही दाम नहीं मिलता और कर्ज से तंग आकर लोग आत्महत्या करते हैं, दूसरी तरफ कालाबाजारी और सूदखोर दलाल एवं व्यापारियों का एक वर्ग मनमाने ढंग से मूल्य वसूलते हैं।
माल्या इस वर्ष 4000 करोड़ रुपये चुकाने को तैयार

माल्या इस वर्ष 4000 करोड़ रुपये चुकाने को तैयार

ऋणदाता बैंकों के दबाव और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की कार्रवाई की वजह से देश छोड़कर गए शराब कारोबारी विजय माल्या ने कहा है कि वह इस वर्ष बैंकों को 4000 करोड़ रुपये तक का भुगतान कर देंगे।
चर्चाः खजाने की उदारता और कंजूसी | आलोक मेहता

चर्चाः खजाने की उदारता और कंजूसी | आलोक मेहता

सरकारी खजाने से कल्याण की उम्मीद सदा रहती है। सत्ताधारी कांग्रेस हो अथवा भाजपा या आम आदमी पार्टी, हर वर्ष बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री जन-हित और सुविधाओं के लिए विभिन्न मदों में उदारतापूर्वक करोड़ों रुपयों का प्रावधान कर देते हैं। लेकिन साल के अंत में बही-खाता खोलने पर पता चलता है कि कई विभागों के लिए रखी गई धनराशि का बड़ा हिस्सा खर्च ही नहीं हुआ।