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Search Result : "रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी"

ऐक्टिविस्ट महिलाओं ने किया अर्णब गोस्वामी का बहिष्कार

ऐक्टिविस्ट महिलाओं ने किया अर्णब गोस्वामी का बहिष्कार

देश की कई जानी-मानी महिला ऐक्टिविस्ट ने टाइम्स नाव टीवी चैनल और अर्णब गोस्वामी के शो के बहिष्कार का ऐलान किया है। इन ऐक्टिविस्ट ने अर्णव को एक ख़त लिखकर अपनी नाराज़गी जताई है। ख़त में कहा गया है कि गोस्वामी अपने टीवी कार्यक्रम न्यूज़ आवर में पत्रकारीय उसूलों का पालन नहीं करते हैं। इसलिए आगे से यह महिला ऐक्टिविस्ट उनके शो में हिस्सेदारी नहीं करेंगी।
मतंग सिंह का जलवा है कायम

मतंग सिंह का जलवा है कायम

भले ही शारदा चिंट फंड घोटाले में पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह को सीबीआई ने हिरासत में लिया हो लेकिन संबंधों के चलते उनका जलवा आज भी कायम है।
किसने और क्यों किया दस्तावेज चोरी

किसने और क्यों किया दस्तावेज चोरी

पेट्रोलियम मंत्रालय के दो कर्मचारियों सहित पांच लोगों को कथित रूप से गोपनीय सरकारी दस्तावेज को कुछ निजी सलाहकारों और उर्जा कंपनियों को लीक करने के आरोप में गिरफ्तारी के बाद से यह सवाल उठने लगा है कि किसने और क्यों यह दस्तावेज चोरी किया है।
रजत शर्मा की क़ामयाबी का राज़

रजत शर्मा की क़ामयाबी का राज़

मीडिया, राजनीति और व्यापारियों के बीच का रिश्ता समझना हो तो इंडिया टीवी के मालिक और मुख्य संपादक रजत शर्मा इसके जीता जागता नमूना हैं।
गोस्वामी का फोन किसने किया टैप

गोस्वामी का फोन किसने किया टैप

विदेश सचिव सुजाता सिंह की जबरन विदाई के बाद गृह सचिव अनिल गोस्वामी की बर्खास्तगी से केंद्र सरकार के कामकाज पर सवाल उठने लगा है। गोस्वामी पर पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह को शारदा घोटाले में गिरफ्तार न किए जाने की पहल का आरोप था।
मीडिया भी नहीं कर पाया चुनाव परिणाम का आकलन

मीडिया भी नहीं कर पाया चुनाव परिणाम का आकलन

दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम का अनुमान मीडिया द्वारा किए गए तमाम सर्वेक्षण और एग्जिट पोल भी नहीं लगा पाए। हालांकि आम आदमी पार्टी की जीत का दावा ज्यादातर सर्वेक्षणों में किया गया था लेकिन बंपर जीत का अनुमान किसी ने नहीं लगाया।
क्यों गई अनिल गोस्वामी की कुर्सी?

क्यों गई अनिल गोस्वामी की कुर्सी?

पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह को शारदा घोटाले में गिरफ्तार न किए जाने की पहल करना केंद्रीय गृह सचिव अनिल गोस्वामी को भारी पड़ गया।
बर्बर प्रदेश में कितनी उम्मीद

बर्बर प्रदेश में कितनी उम्मीद

राष्‍ट्र¬भाषा होने का दावा करने वाली हिंदी के मीडिया से तो इसी राष्‍ट्र का हिस्सा माना जाने वाला मणिपुर अमूमन गायब ही होता है और उत्तर पूर्व में असम अगर यदा-कदा चर्चा में आता भी है तो बिहारियों, झारखंडियों पर उग्रवादी हमले के कारण या अरूणाचल प्रदेश की चर्चा होती है तो चीनी दावेदारी के हंगामें के कारण। हिंदी के एक्टिविस्ट संपादक प्रभाष जोशी के निधन के बाद की चर्चा में यह प्रसंग जरूर आया कि वह 5 नवंबर को नागरिकों की एक टीम के साथ मणिपुर जाना चाहते थे लेकिन यह टीम मणिपुर की जिन उपरोक्त परिस्थितियों के बारे में एक तथ्यान्वेषण मिशन पर वहां जा रही थी उसका जिक्र ओझल ही रहा। और जिस ऐतिहासिक अवसर पर यह टीम मणिपुर जा रही थी उसका जिक्र तो भला कितना होता? यह ऐतिहासिक अवसर था 37 वर्षीय इरोम शर्मिला के आमरण अनशन के दसवें वर्ष में प्रवेश का। गांधी और नेल्सन मंडेला की जीवनी सिरहाने रखे बंदी परिस्थितियों में इंफाल के एक अस्पताल में अनशनरत अहिंसक वीरांगना के नाक में टयूब के जरिये जबरन तरल भोजन देकर सरकार जिंदा रखे हुए है। अपढ़ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पिता और अपढ़ माता की नौवीं संतान शर्मिला सन 2000 में असम राइफल्स के जवानों पर बागियों की बमबारी के जवाब में सशस्त्र बलों द्वारा एक बस स्टैंड पर 10 निर्दोष नागरिकों को भूने जाने की खबरें अखबारों में पढक़र और तस्वीरें देखकर तथा उन सुरक्षाकर्मियों को सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम के कारण सजा की कोई संभावना न जानकर इतना विचलित हुई कि उन्होंने इस तानाशाही कानून के खिलाफ आमरण अनशन का फैसला ले लिया।
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