वकील से प्रशासक बने शशांक मनोहर को भारतीय क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई का निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया। इसी के साथ बीसीसीआई में नए युग की शुरूआत हुई और एन श्रीनिवासन का इस धनाढ्य खेल संस्था पर से दबदबा समाप्त हो गया।
बीसीसीआई ने अपने नए अध्यक्ष के चयन के लिए 4 अक्तूबर को आमसभा की विशेष बैठक बुलाई है जिसमें नागपुर के वकील शशांक मनोहर सभी की पसंद के उम्मीदवार के रूप में उभरे हैं।
दोनों गठबंधनों के उम्मीदवारों की सूची देखने से साफ लगता है कि विकास के दावे और वादे नेपथ्य में चले गए हैं। उसकी जगह सामाजिक समीकरण के मद्देनजर जिताऊ कहे जा सकनेवाले उम्मीदवारों ने ले ली है। महागठबंधन ने जहां अपने मंडल या कहें सामाजिक न्याय के सिद्धांत को सामने रखकर पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों पर भरोसा किया है तो भाजपा और उसके गठबंधन ने सर्वाधिक सीटें अपने सवर्ण जनाधार को ध्यान में रखकर बांटी है।
नीतीश कुमार के नेतृत्व में बने महागठबंधन ने अपने 242 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया है। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने दोनों बेटों को चुनावी मैदान में उतारा है। उनका बड़ा बेटा तेज प्रताप महुआ से और छोटा बेटे तेजस्वी राघोपुर से चुनाव लड़ेगा। गठबंधन ने सबसे ज्यादा 134 ओबीसी उम्मीदारों को टिकट दिया है। इसके बाद 40 एससी-एसटी, 39 सामान्य और 33 मुस्लिम उम्मीदवारों को आजमाया जा रहा है। मिली जानकारी के अनुसार, 243 में से 242 सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवारों को ऐलान हो गया है और लेकिन एक सीट पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है।
अनुभवी प्रशासक जगमोहन डालमिया के निधन ने बीसीसीआई को विभाजित कर दिया गया है। पूर्व क्षेत्र की इकाइयों ने अपना स्वयं का उम्मीदवार खड़ा करने का फैसला किया है जिससे उत्तराधिकार की लड़ाई में नया मोड़ आ गया है।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष जगमोहन डालमिया के निधन के बाद नए अध्यक्ष के चयन की अटकलें तेज हो गई हैं। बोर्ड के लिए हालांकि नए अध्यक्ष का चुनाव आसान तो नहीं होगा, लेकिन इस पद के लिए राजीव शुक्ला, गौतम राय और दिल्ली के सी. के. खन्ना के नाम को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है।
बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए होने जा रहे चुनावी महाभारत के लिए मैदान तकरीबन सज चुका है। एक दूसरे को शिकस्त देने के इरादे से दोनों राजनीतिक गठबंधन अपने सेनापतियों के साथ आमने सामने डट गए हैं। तीसरी ताकत के नाम पर कुछ महारथी खुद के जीतने के लिए नहीं बल्कि किसी और को हराने और किसी और की जीत में मददगार साबित होने की रणनीति के तहत अगल बगल से या फिर नेपथ्य में रह कर भी इस चुनावी महाभारत में अपनी भूमिका के लिए उद्धत हैं।