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Search Result : "महिला हिंसा"

ऐक्टिविस्ट महिलाओं ने किया अर्णब गोस्वामी का बहिष्कार

ऐक्टिविस्ट महिलाओं ने किया अर्णब गोस्वामी का बहिष्कार

देश की कई जानी-मानी महिला ऐक्टिविस्ट ने टाइम्स नाव टीवी चैनल और अर्णब गोस्वामी के शो के बहिष्कार का ऐलान किया है। इन ऐक्टिविस्ट ने अर्णव को एक ख़त लिखकर अपनी नाराज़गी जताई है। ख़त में कहा गया है कि गोस्वामी अपने टीवी कार्यक्रम न्यूज़ आवर में पत्रकारीय उसूलों का पालन नहीं करते हैं। इसलिए आगे से यह महिला ऐक्टिविस्ट उनके शो में हिस्सेदारी नहीं करेंगी।
आइएएस ने महिला सचिव पर फेंकी फाइल

आइएएस ने महिला सचिव पर फेंकी फाइल

एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने अपने कार्यालय में अपनी निजी सचिव के चेहरे पर फाइल को फैंका। वह महिला इस कदर परेशान और आहत हुई कि वह बेहोश हो गई।
पाकिस्तान में महिला पत्रकार की मौत

पाकिस्तान में महिला पत्रकार की मौत

रूसी मूल की पत्रकार मारिया गोलावनीनी पाकिस्तान में अपने घर में मृत पाई गईं। मारिया पाकिस्तान में रॉयटर्स की ब्यूरो चीफ थीं। पूछताछ के लिए पुलिस ने कुछ लोगों को हिरासत में लिया है। पाकिस्तान के साथ-साथ वह अफगानिस्तान की खबरों पर भी नजर रखती थीं।
गुड़गांव में चलेंगी महिला कैब

गुड़गांव में चलेंगी महिला कैब

गुड़गांव जिला प्रशासन कामकाज़ी महिलाओं के लिए खा़ास तरह की कैब चलाने की योजना बना रही है। अच्छी बात यह है कि इन कैब को महिला ड्राइवर ही चलाएंगी।
महिला हॉकी टीम स्पेन रवाना

महिला हॉकी टीम स्पेन रवाना

भारतीय महिला हॉकी टीम स्पेन के वैलेंशिया में होने वाले अभ्यास मैचों के लिए 15 दिन की स्पेन यात्रा पर रवाना हो गई।
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।