मोदी सरकार ने संसद में भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने के लिए सारी शक्ति झोंक रखी है। अलग-अलग मंत्रियों को इसके लिए विपक्ष को राजी करने की जिम्मेदारी सौंप रखी है।
केंद्र की भूमि अधिग्रहण नीति पर भारी राजनीतिक घटनाक्रम के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने फैसला किया है कि अब से विकास परियोजनाओं के लिए जमीन को भूमि स्वामियों और भूमि धारकों के साथ परस्पर समझौते के जरिए अधिग्रहित किया जाएगा।
भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ विपक्षी नेताओं का संसद से राष्ट्रपति भवन तक विरोध मार्च शांतिपूर्ण सम्पन्न हुआ। पुलिस को मार्च को इजाजत नहीं देने का अपना आदेश वापस लेने को बाध्य होना पड़ा। विपक्ष ने मार्च के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की।
भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर कांग्रेस ने आक्रामक रूख अख्तियार कर लिया है। पार्टी ने भूमि अधिग्रहण विधेयक को किसान विरोधी करार दिया। प्रधानमंत्री के खिलाफ किसान विरोधी नरेन्द्र मोदी नारा लगाते हुये वरिष्ठ नेता जयराम रमेश, राज बब्बर, रणदीप सुरजेवाला, सचिन पायलट और युवा कांग्रेस के अमरिंदर सिंह राजा बरार के नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ताओं ने जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया।
एक विशेष अदालत ने सोमवार को कथित रूप से झूठे और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर झारखंड में उत्तरी धादू कोयला ब्लाॅक का आवंटन सुनिश्चित करने के मामले में झारखंड इस्पात प्राइवेट लिमिटेड (जेआईपीएल) और उसके दो निदेशकों आर. सी. रूंगटा और आरएस रूंगटा के खिलाफ आरोप तय किए।
भूमि अधिग्रहण विधेयक के विरोध में बिहार में सत्ताधारी पार्टी जदयू के राज्यव्यापी आंदोलन के तहत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तर्ज पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का 24 घंटे का सत्याग्रह और उपवास पटना स्थित जदयू मुख्यालय में शनिवार सुबह से शुरू हो गया है।
सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून की सराहना कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यह जता कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसलों का अमूमन संघ साथ देगा। क्योंकि संघ जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के रूख की आलोचना तो कर रहा है लेकिन देशहित में भाजपा के फैसले को सही ठहरा रहा है।
पर्यावरणविद एवं विचारक के एन गोविन्दाचार्य ने कहा है कि सरकार भूमि अधिग्रहण बिल को लागू करने की कोशिश में लगी है लेकिन उसे इस देश के पांच करोड से ज्यादा बेघर लोगों की चिंता नहीं है।
भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पारित हो गया है, हालांकि भारी विरोध को देखते हुए मोदी सरकार सहमति, मुआवजे और निजी क्षेत्र के लिए अधिग्रहण के प्रावधानों पर थोड़ी नरम पड़ी। अब गेंद राज्य सभा के पाले में है। जहां विपक्ष का बहुमत है। विपक्ष और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के शिवसेना जैसे सहयोगी, विधेयक के विरोध की जमीन पर बने रहें चाहें तो आपसी सहमति अथवा दोनों पक्षों की थोड़ी नरमी से विधेयक पारित हो जाए। इस मसले पर कई मत हैं। थोड़े और संशोधनों के पक्षधर तो कुछ इस विधेयक को पूरी तरह नकार देने के। भाजपा की विचारधारा वाले के. एन. गोविंदाचार्य भी इस मसले पर भाजपा सरकार से अलग राय रखते हैं। अण्णा हजारे और उनके सहयोगी संगठनों को मोदी सरकार की नई भूमि अधिग्रहण नीति के विरोध में गोलबंदी के लिए प्रेरित करने में गोविंदाचार्य ने अहम भूमिका निभाई है।