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दीमापुर हत्या: 43 आरोपी गिरफ्तार

दीमापुर हत्या: 43 आरोपी गिरफ्तार

बलात्कार के आरोपी व्यक्ति की भीड़ द्वारा हत्या किए जाने की घटना के बाद नगालैंड के दीमापुर में हालात सामान्य की ओर लौट रहा है। शहर में कर्फ्यू में भी ढील दी गई है और तीन दिन बाद फिर से बाजार खुले। इस बीच घटना के संबंध में और अधिक गिरफ्तारियां की गईं।
संसद में उठा दीमापुर हत्या का सवाल

संसद में उठा दीमापुर हत्या का सवाल

नगालैंड में बलात्कार के आरोपी को पीट पीट कर मार डाले जाने का मुद्दा आज लोकसभा में उठा और असम के कांग्रेस सदस्यों ने इस मामले को प्रदेश सरकार की विफलता करार दिया।
दीमापुर हत्या: भीड़ के न्याय के पक्ष में शिवसेना

दीमापुर हत्या: भीड़ के न्याय के पक्ष में शिवसेना

शिवसेना ने दीमापुर में भीड़ द्वारा बलात्कार के आरोपी को जेल से बाहर खींचकर मार डालने की घटना को सही ठहराने की कोशिश की है। पार्टी मुखपत्र सामना में इस संदर्भ में एक लेख छापा गया है।
ओबामा की हत्या की साजिश

ओबामा की हत्या की साजिश

एक ओर जहां हम निर्भया गैंगरेप के आरोपियों से संबं‌धित डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण पर पाबंदी लगाने में जुटे हैं और इसपर देश में अच्छी-खासी बहस चल रही है वहीं अमेरिका में वहां के एक टीवी स्टेशन ने जेल में बंद एक कैदी का इंटरव्यू प्रसारित किया है जिसने यह कह कर सनसनी फैला दी है कि अगर वह गिरफ्तार नहीं होता तो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को मार गिराता।
बेनजीर भुट्टो को किसने मारा

बेनजीर भुट्टो को किसने मारा

पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के हत्यारों के बारे में सूचना सामने आयी है। रावलपिंडी की आतंकवाद निरोधक अदालत में सुनवाई के दौरान यह जानकारी दी गई। जानकारी के मुताबिक़ बेनजीर की हत्या में एक मदरसे के छात्र शामिल थे।
वंचितों से पूछिए वसंत का लैंडस्केप

वंचितों से पूछिए वसंत का लैंडस्केप

वन भूमि पर सामुदायिक अधिकारों के दावा फॉर्म अधिकतर जगहों पर न तो उपलब्ध कराए जा रहे हैं न उनकी जानकारी दी जा रही है। एक अनुमान के अनुसार पूरे राजस्थान में अब तक केवल 150 सामुदायिक दावे ही पेश हो पाए हैं। अधिकतर वन अधिकार समितियां निष्क्रिय होने के कारण भौतिक सत्यापन नहीं हो पा रहा है। जहां वे सक्रिय हैं वहां वन विभाग और पटवारी सहयोग नहीं कर रहे हैं। समितियों, यहां तक कि ग्राम सभाओं द्वारा सत्यापित दावों को भी नौकरशाही नहीं सत्यापित कर रही है। कुछ जगहों पर अनपढ़ लोगों को धोखे से कब्जा छोडऩे के दावे पर हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं। कहीं-कहीं दावेदारों के मौके पर काबिज होने के बावजूद काबिज नहीं होना दिखाया जा रहा है। साक्ष्यों की सूची में दावेदारों को नियमत: तीन में दो साक्ष्य मांगे जा रहे हैं। इस मामले में वन विभाग ग्राम सभाओं को भी गुमराह कर रहा है। नियमत: हर स्तर पर सत्यापन तक लोगों को बेदखल नहीं किया जा सकता लेकिन कई जगह लोगों को बीच में ही लोगों को बेदखल किया जा रहा है। गैर आदिवासी जंगलवासियों के दावे सीधे नामंजूर किए जा रहे हैं जो नियम विरुद्ध है। अभी तक 1980 के पहले के दावों का ही सत्यापन किया जा रहा है जबकि कानून 2005 तक के कब्जे मान्य होने चाहिए।
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