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Search Result : "पूर्व गृहमंत्री"

नेपाल में बाहरी हस्तक्षेप मंजूर नहीं

नेपाल में बाहरी हस्तक्षेप मंजूर नहीं

शांतिपूर्ण नेपाल भारत के भी राष्ट्रीय हित में है। यह बात नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई ने दिल्ली यात्रा के दौरान कही। उन्होंने कहा कि नेपाल में संविधान तैयार करने की प्रक्रिया में भी भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। लेकिन भट्टाराई ने यह भी जोड़ा कि नेपाल में अंदरूनी मामलों में किसी भी बाहरी हस्तक्षेप का स्वागत नहीं किया जायेगा।
नशीद की गिरफ्तारी से भारत चिंतित

नशीद की गिरफ्तारी से भारत चिंतित

देश की समुद्री सीमा पर भारत के लिए चिंता की नई वजह पैदा हो गई है। पड़ोसी देश मालदीव के भारत समर्थक समझे जाने वाले पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को पुलिस ने आतंकवाद रोधी कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया है। नशीद वर्तमान में विपक्षी नेता हैं।
कौन हैं आसाराम और शांतनु सैकिया

कौन हैं आसाराम और शांतनु सैकिया

पेट्रोलियम मंत्रालय से दस्तावेज लीक मामले में गिरफ्तार आरोपी आसाराम के बारे में बताया जाता है कि वह पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का ही चपरासी है जबकि शांतनु सैकिया पत्रकार हैं
महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री आरआर पाटिल का निधन

महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री आरआर पाटिल का निधन

महाराष्ट्र की पूर्ववर्ती कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) सरकार में उपमुख्यमंत्री और राज्य के गृहमंत्री रहे वरिष्ठ राकांपा नेता आर.आर. पाटिल का सोमवार को 57 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है।
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।
सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

चुनिंदा नायकों या खलनायकों की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के कारण इतिहास का सम्यक विवेचन नहीं हो पाता। जैसे गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना और माउंटबेटन पर ज्यादा जोर देने से हमें भारत विभाजन के बारे में कई जरूरी प्रश्‍नों के उत्तर नहीं मिलते। मसलन, देसी मुहावरे में आम जनता को अपनी बात समझाने में माहिर और उनमें आजादी के लिए माद्दा जगाने वाले गांधी अपने तमाम सद्प्रयासों के बावजूद नाजुक ऐतिहासिक मौके पर आम हिंदू-मुसलमान को एक-दूसरे के प्रति सांप्रदायिक दरार से बचने की बात समझाने में क्यों विफल रहे, नोआखली जैसी अपनी साक्षात उपस्थिति वाली जगह को छोडक़र? जिन्ना की महत्वकांक्षा और जिद को कितना भी दोष दें, कलकत्ता और अन्य जगहों का आम मुसलमान क्यों उनके उकसावे पर पाकिस्तान हासिल करने के लिए खून-खराबे पर उतारू हो गया?
जवाबदेही के जुए से कतराती नौकरशाही

जवाबदेही के जुए से कतराती नौकरशाही

सूचना के अधिकार कानून के क्रियान्वयन पर अभी चार अध्ययन आए हैं। दो गैर सरकारी, परिवर्तन और सूचना के जनाधिकार पर राष्‍ट्रीय अभियान द्वारा, और दो सरकारी, केंद्रीय सूचना आयोग की कमेटी और स्वयं भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय द्वारा। सभी की रिपोर्ट के अनुसार सूचना का अधिकार सक्षमता से लागू करने में मुख्य बाधा अपर्याप्त क्रियान्वयन, कर्मचारियों के प्रशिक्षण का अभाव और खराब दस्तावेज प्रबंधन है। किसी ने फाइल देखने की नोटिंग की मांगों और खिझाऊ तथा तुच्छ आवेदनों के कारण नहीं माना है। फिर भी कार्मिक मंत्रालय नौकरशाही के दबाव में इनसे संबंधित लाना चाहता है तो उसकी मंशा पर शक होता है वही कार्मिक मंत्रालय जिसका अपना अध्ययन बताता है कि अभी देश के सिर्फ 15 प्रतिशत लोगों को सूचना के अधिकार के कानून की जानकारी है और 85 प्रतिशत लोगों को नहीं। यानी नौकरशाही अभी भी सिर्फ 15 प्रतिशत भारतीयों के प्रति जवाबदेह होने से भी कतरा रही है। और परिवर्तन की रिपोर्ट के अनुसार इन 15 प्रतिशत में सिर्फ एक-चौथाई यानी 27 फीसदी ही संतोषप्रद सूचना हासिल कर पाते हैं।
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