2 मार्च 1965 को छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश में जन्मे कवि अनिल करमेले की कविताएं सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है। पहल, हंस, ज्ञानोदय, वागार्थ, वसुधा, कथादेश, जनसत्ता, इंडिया टुडे, शुक्रवार, पब्लिक एजेंडा, दैनिक हिन्दुस्तान, नई दुनिया, लोकमत समाचार, भास्कर आदि में वह प्रमुखता से छपे हैं। साथ ही लेख एवं समीक्षाएं भी प्रकाशित हुई हैं। ‘ईश्वर के नाम पर’ उनकी पहली किताब प्रकाशित हुई थी। इसी पुस्तक पर उन्हें मध्य प्रदेश साहित्य अकादेमी का "दुष्यंत कुमार" पुरस्कार मिला। फिलवक्भात वह भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) के अंतर्गत महालेखाकार लेखापरीक्षा कार्यालय में सेवारत हैं।
राष्ट्रीय पुरस्कार घोषित हो गए हैं। इसी घोषणा के साथ प्रियंका चोपड़ा का राष्ट्रीय पुरस्कार पाने का ख्वाब टूट गया। मैरी कॉम को लोकप्रिय फिल्म का खिताब तो मिला पर यह फिल्म न श्रेष्ठ फिल्म की श्रेणी में आ सकी न प्रियंका को श्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। कंगना रणौत ने क्वीन के लिए बाजी मार ली है।
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सहित 85 विधायकों ने आज 12वीं जम्मू कश्मीर विधान सभा के सदस्य के रूप में शपथ ली। इसके साथ ही नयी विधानसभा का कार्यकाल शुरू हो गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और संघ परिवार के दूसरे घटक नए सिरे से हिंदुओं के ध्रुवीकरण की तैयारी में हैं। इसके लिए इस वर्ष बिक्रमी नववर्ष और चैत्र नवरात्रों का इस्तेमाल करने की योजना बन चुकी है।
सन 2014 का ज्ञानपीठ पुरस्कार मराठी लेखक भालचंद्र नेमाड़े को दिया जाएगा। नेमाड़े अपने उपन्यास हिंदू – जगण्याची अड़गळ के लिए जाने जाते हैं। मराठी भाषा में अड़गळ का अर्थ होता है ऐसा कबाड़ जो संभाल कर रखा जाता है। ऐसे कबाड़ को परिभाषित करने वाले नेमाड़े बहुत बेबाकी से बोलते हैं।
दुनिया भर में बॉडी बिल्डर्स के मसीहा और टर्मिनेटर फिल्म के अभिनेता ऑर्नल्ड श्वार्जनेगर को इंटरनेशनल लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया है। यह अवॉर्ड उन्हें जर्मनी के हैमबर्ग में आयोजित गोल्डन कैमरा पुरस्कार समारोह में दिया गया। श्वार्जनेगर को ‘ट्विन्स’ में उनके सह कलाकार डैनी डेविटो ने इस पुरस्कार से नवाजा। दोनों एक साथ 1988 में बेहद सफल कॉमेडी फिल्म ‘ट्विन्स’ के रिलीज होने के 27 साल बाद दिखे। फिल्म में दोनों ने जुड़वां भाईयों की भूमिका निभाई थी।
खजुराहो नृत्य समारोह-एक ऐसे दौर में जब कला को खुद को जिंदा व प्रासंगिक बनाए रखने के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ रही है, अलग-अलग कलाओं का एक-दूसरे का सहारा बनकर एक मंच पर आना एक सुकून देने वाला अनुभव है। खजुराहो नृत्य समारोह ऐसा करने में काफी हद तक कामयाब रहा है।