करीब एक दशक पहले दुर्घटनावश सीमा पार कर पाकिस्तान चली गई और वहीं रह रही मूक-बधिर भारतीय लड़की गीता कल भारत वापस आएगी। इस संबंध में दोनों देशों की सरकारों ने सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं।
पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारी नजम सेठी ने कहा है कि यूएई में दिसंबर में भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली द्विपक्षीय क्रिकेट श्रृंखला के आयोजन की उम्मीद अब भी बची है। पीसीबी की कार्यकारी समिति के प्रमुख सेठी ने इस खबरों को भी अधिक तवज्जो नहीं दी कि बीसीसीआई ने मुंबई में पाकिस्तान क्रिकेट प्रतिनिधिमंडल को आमंत्रित किए जाने के बावजूद मेजबान होने की जिम्मेदारी नहीं निभाई।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को स्पष्ट रुप से कहा कि पाकिस्तान को आतंकी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने में फर्क नहीं करना चाहिए।
पाकिस्तान की ताकतवर सेना ने वहां की सरकार में अपना परोक्ष दखल बढ़ा दिया है। इसी महीने की शुरुआत में सेवानिवृत हुए लेफ्टिनेंट जनरल नासिर खान जंजुआ को देश का नया राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) नियुक्त करवाकर सेना ने शासन में अपनी बढ़ती दखल का अहसास कराया है।
अमेरिका ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते की तर्ज पर पाकिस्तान के साथ असैन्य परमाणु समझौता करने से साफ इनकार कर दिया है और कहा है कि इस बारे में कोई वार्ता नहीं हुई है।
सह शिक्षा के इस्लामिक सिद्धांतों के अनुकूल ना होने की बात कहते हुए पाकिस्तान के एक धार्मिक संगठन ने सरकार से जल्द से जल्द पुरुषों एवं महिलाओं के लिए अलग-अलग शिक्षा तंत्र स्थापित करने को कहा है।
देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री और बाबरी मस्जिद के खिलाफ उग्र राष्ट्रव्यापी मंदिर आंदोलन चलाने वाले लालकृष्ण आडवाणी का मानना है कि देश में असहिष्णुता का माहौल बढ़ रहा है। यह लोकतंत्र की भावना के विपरीत है। इस टिप्पणी का संदर्भ भी कम दिलचस्प नहीं है।
जिसे जिसका मांस खाना हो खाए, कोई गाय को माता माने या न माने, कोई बार-बार विदेश जाकर भारत की जैसी मर्जी महिमा मंडन करे, कोई किसी को मुल्ला कहे या पाकिस्तानी। मुसलमानों के एक बहुत बड़े वर्ग को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। ये मध्य और निम्न मध्य वर्ग के वे मुसलमान हैं जो दंगों की लपटों में झुलस जाते हैं। इस वर्ग को मतलब है तो सिर्फ इस बात से कि इन्हें दो जून की रोटी मिलती रहे और रोटी कमाने वाले कायम रहें। ये अपने गांव में रहते रहें क्योंकि दूसरी किसी जगह पर ठिकाना नहीं है। इन्हें रहने के लिए गांव छोडक़र कैंपों में न जाना पड़े। यही इनकी सबसे बड़ी फिक्र है।