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आरटीआई कार्यकर्ता निखिल डे को 19 साल पुराने मामले में 4 माह की सजा

आरटीआई कार्यकर्ता निखिल डे को 19 साल पुराने मामले में 4 माह की सजा

राजस्थान में अजमेर जिले की किशनगढ़ की मुंसिफ अदालत ने 19 साल पुराने एक मामले में सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे को 4 माह के कारावास की सजा सुनाई है।
संघ से जुड़े मजदूर संगठन ने बजट की कड़ी आलोचना की

संघ से जुड़े मजदूर संगठन ने बजट की कड़ी आलोचना की

वित्त मंत्री भले ही दावा करें कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून के तहत सालाना बजटीय आवंटन में 25 फीसदी की वृद्धि की गई है, मगर मजदूर–किसान संगठन इस दावे से सहमत नहीं हैं।
अरुणा राॅय की टीम पर हमला, भाजपा विधायक पर आरोप

अरुणा राॅय की टीम पर हमला, भाजपा विधायक पर आरोप

राजस्‍थान में सामाजिक संगठनों द्वारा निकाली जा रही जवाबदेही यात्रा पर हमले की खबर है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के गृह जिले झालावाड़ के अकलेरा में सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय व निखिल डे के साथियों पर कुछ लोगों ने हमला किया जिसमें करीब दर्जन भर कार्यकर्ता घायल हो गए हैं। आरोप है कि यह हमला भाजपा विधायक कंवर लाल मीणा और उनके समर्थको ने किया।
निखिल वागले ने किया पुलिस सुरक्षा लेने से इनकार

निखिल वागले ने किया पुलिस सुरक्षा लेने से इनकार

दक्षिण पंथी संस्था सनातन की ओर से धमकी मिलने के बाद वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले ने महाराष्ट्र सरकार से पुलिस सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया है। इस धमकी के बाद राज्य सरकार ने उन्हें सुरक्षा देने की बात कही थी।
कट्टी-बट्टी - कट्टी ही रहेगी दर्शकों से

कट्टी-बट्टी - कट्टी ही रहेगी दर्शकों से

बॉलीवुड में पहली नजर के प्यार पर बनी फिल्मों की कोई कमी नहीं है। मैडी यानी माधव काबरा (इमरान खान) को पायल (कंगना रणौत) से पहली नजर का प्यार है। बिलकुल इंस्टेंट। मैगी वाला। यहां देखा, वहां प्यार। दिवाने माधव को यह भी मंजूर है कि पायल टाइमपास प्यार करेगी। ठीक है भई। नया जमाना है तो चल जाएगा।
हिंदी साहित्य के इंजीनियर

हिंदी साहित्य के इंजीनियर

गणित के कठिन सवालों के बीच गोदान का होरी भी जिंदगी के जवाब खोजता है। रसायन के सूत्र भले भूल जाएं मगर चंदर का सुधा भूल जाना अखरता है। प्रकाश के परावर्तन का नीरस सिद्धांत सुनील के केस को सुलझाते ही सरस लगने लगता है। ब्लैक बोर्ड पर अल्फा, बीटा, गामा के बीच निर्मला, चोखेरबाली और राग दरबारी भी धमाचौकड़ी मचाते हैं। अमूमन घरों में होशियार बच्चे विज्ञान पढ़ते हैं। विज्ञान में भी लड़के गणित और लड़कियां जीव विज्ञान पढ़ती हैं। जब कोर्स की किताबें ही साल में खत्म करना मुश्किल हो तो कहानी-कविताएं, उपन्यास पढ़ने के लिए किसके पास वक्त है। गणित लेने के बाद अर्जुन की आंख की तरह बस एक ही लक्ष्य है, आईआईटी। विज्ञान पढ़ रहे बच्चों के माता-पिता को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से कम कुछ भी गवारा नहीं है। मोटी-मोटी किताबों, सुबह से शाम तक चलने वाली कोचिंग क्लासों के बीच इंजीनियर बनने का सपना पलता है। ऐसे में साहित्य की कौन सोचे। पढ़ाई के दौरान साहित्य पढऩा समय की बर्बादी है और लिखना... इसके बारे में तो सोचना भी मत।
मसान – एक दर्द की दो दास्तां

मसान – एक दर्द की दो दास्तां

मसान यानी श्मशान के इर्द-गिर्द भी प्रेम पनपता है। जलती चिता से उठती चिंगारियां दिल की कोमलता को नहीं झुलसा पातीं। नीरज घायवन ने कम संसाधनों में एक बढ़िया फिल्म रच दी है। दो कहानियां अतंतः एक ही मंजिल को पहुंचती हैं, त्रासदी।
शिवसेना: एक कागजी शेर के 50 साल!

शिवसेना: एक कागजी शेर के 50 साल!

1985 तक शिवसेना केवल मुंबई तक ही सीमित थी। महाराष्ट्र में इसके प्रसार का श्रेय छगन भुजबल को जाता है। शरद पवार 1986 में अपने कांग्रेस विरोधी समूह को सकते में छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। उस वजह से बने खाली स्थान को शिवसेना ने भरा। आज भी मुंबई की शिवसेना और बाकी महाराष्ट्र की शिवसेना में अंतर है।
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