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फर्जी चंदे और नोटिस की राजनीति पर सवाल

फर्जी चंदे और नोटिस की राजनीति पर सवाल

इनकम टैक्स विभाग ने अवैध चंदे के मामले में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस को नोटिस भेजा है। विभाग ने नोटिस में पूछे गए सवालों का संतोषजनक जवाब न देने पर कार्रवाई की धमकी दी गई है।
'आप' को इनकम टैक्स का नोटिस: कहीं यह बदले की कार्रवाई तो नहीं?

'आप' को इनकम टैक्स का नोटिस: कहीं यह बदले की कार्रवाई तो नहीं?

अवैध चंदे के मामले में इनकम टैक्स विभाग ने आम आदमी पार्टी (आप) पर शिकंजा कसने की कोशिश की है। विभाग ने आप को भेजे नोटिस में कई सवाल पूछे हैं और 16 फरवरी तक चंदे से जुड़े सवालों का जवाब देने को कहा है। तय तारीख़ तक जवाब न देने पर पार्टी पर कार्रवाई करने की धमकी दी गई है।
साक्षी पर पार्टी का चाबुक

साक्षी पर पार्टी का चाबुक

प्रतिक्रिया लेने के लिए पत्रकार उनके पास पहुंचे तो साक्षी ने पत्रकारों को ही धमका डाला और उन्हें सुधर जाने की धमकी दी। साक्षी महाराज ने मीडिया वालों से पीछा छुड़ाने के लिए पुलिस को बुला लिया। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर साक्षी महाराज ने रिपोर्टरों से कहा कि कारण बताओ नोटिस की उन्हें कोई जानकारी नहीं है
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।
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