बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए होने जा रहे चुनावी महाभारत के लिए मैदान तकरीबन सज चुका है। एक दूसरे को शिकस्त देने के इरादे से दोनों राजनीतिक गठबंधन अपने सेनापतियों के साथ आमने सामने डट गए हैं। तीसरी ताकत के नाम पर कुछ महारथी खुद के जीतने के लिए नहीं बल्कि किसी और को हराने और किसी और की जीत में मददगार साबित होने की रणनीति के तहत अगल बगल से या फिर नेपथ्य में रह कर भी इस चुनावी महाभारत में अपनी भूमिका के लिए उद्धत हैं।
शुरुआती दौर में बिहार के शहरों में भाजपा प्रचार में आगे दिख रही है। अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए ऊंची जातियों को सक्रिय करने में सफल रही है, लेकिन आपसी फूट भी जबर्दस्त है। बिहारी मतदाता अपने पत्ते अभी खोलने को तैयार नहीं
केंद्रीय संचार एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी पर नियत डाक टिकट निकले जाने का मुद्दा उठाकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। उनके आरोपों में एक तरफ आंशिक सच्चाई है तो दूसरी तरफ राजनीति की गंध भी है।
चुनाव आयोग का बिगुल बजने से पहले और चुनाव अभियान चल निकलने के साथ ही आगामी विधानसभा चुनावों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपने नतीजे दिखाने शुरू कर दिए। कुछ बानगी:
हिंदी के नामचीन कथाकार उदय प्रकाश की हिंदुत्व वादी ताकतों द्वारा कन्नड़ विद्वान एमएम कलबुर्गी की हत्या के विरोध में साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा लगातार विवादों में आ रही है। गौरतलब है कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ के हाथों पुरस्कार लिया था। अब इस मुद्दे पर कथाकार नीलाभ अश्क और विष्णु खरे ने भी आपत्ति जताई है -
राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को मनाने के लिए आज दिल्ली रवाना हुए हैं। सपा ने कल बिहार विधानसभा चुनाव के लिए बने भाजपा विरोधी महागठबंधन से नाता तोड़कर अकेल चुनाव लड़ने का ऐलान किया था।
बिहार का कोशी क्षेत्र लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए के लिए बुरा सपना साबित हुआ था। यहां पर एनडीए को एक भी सीट जीतने में कामयाबी नहीं मिली थी। कभी कांग्रेस का गढ़ रहा यह क्षेत्र कालांतर में पहले लालू प्रसाद और फिर जद-यू-भाजपा का दुर्ग बना मगर लोकसभा चुनाव में यहां मिली हार ने भाजपा को इस क्षेत्र में नई रणनीति बनाने के लिए मजबूर कर दिया।
जनता परिवार को एकजुट करने की मुहिम बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही खत्म हो गई। समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड से नाता तोड़ते हुए बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ने की तैयारी कर ली है। पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव ने इसकी घोषणा भी कर दी।
पिछले साल भारतीय जनता पार्टी केंद्र में सत्ता में क्या आई 1990 के दशक के मजहबी और जातिगत टकराव के गड़े मुर्दे मानो फिर से उखाड़े जाने लगे। एक तरफ जनगणना में धार्मिक समुदायों की जनसंख्या वृद्धि के चुनिंदा आंकड़े पूर्वाग्रह के रंग में रंगकर धीरे-धीरे सामाजिक और मुख्यधारा मीडिया में टपकाए जाने लगे और दूसरी ओर सत्तारूढ़ दल और उसके परिवार के तरह-तरह के गेरुआधारी ‘पूतों फलों’ और ‘घर वापसी’ के भड़काऊ भाषणों के जरिये बहुसंख्यक समुदाय का भयादोहन कर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध उन्माद पैदा करने की कोशिश करने लगे। नतीजतन देश में कई जगह अल्प तीव्रता वाले सांप्रदायिक उपद्रव होने लग गए, खासकर उन राज्यों में जहां विपक्ष की सरकारें थीं और आगे चुनाव होने थे।