स्वाति मालीवाल ने आरोप लगाया है कि दिल्ली महिला आयोग में उनके दफ्तर पर ताला लगा दिया गया और उनकी नेम प्लेट हटा दी है। लेकिन उन्होंने अभी हार नहीं मानी और वह उपराज्यपाल से मिलने की कोशिश में जुटी हुई हैं। इस बीच, दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि स्वाति मालीवाल की नियुक्ति की फाइल अब एलजी के पास भेजी जाएगी।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को उप राज्यपाल नजीब जंग द्वारा दिल्ली में सरकार का मतलब उप राज्यपाल बताए जाने पर उन पर निशाना साधते हुए कहा कि इस तरह के बयान का नतीजा तानाशाही होगा तथा जंग का रुख इस लोकतांत्रिक देश में ना सिर्फ असंवैधानिक बल्कि हास्यास्पद है।
आम आदमी पार्टी की ओर से दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालिवाल की नियुक्ति लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग ने रद्द कर दी। सरकार की ओर से बरखा शुक्ला की जगह मालिवाल की नियुक्त की गई थी। मालिवाल आम आदमी पार्टी हरियाणा के नेता नवीन जयहिंद की पत्नी और आरटीआई कार्यकर्ता भी हैं। नवीन जयहिंद मुख्यमंत्री के करीबी लोगों में से एक हैं। इस नियुक्ति के रद्द होने की खबर के साथ ही टि्वटर पर #SwatiMaliwal हैशटैग ट्रैंड करने लगा। लबोलुआब यह रहा कि ‘दिल्ली वालों को यह जान लेना चाहिए कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली के सिर्फ मुख्यमंत्री हैं लेकिन असल मुख्यमंत्री लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग ही हैं।‘
दो दिन पहले ही दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष बनी स्वाति मालीवाल की नियुक्ति पर उपराज्यपाल नजीब जंग ने आपत्ति जताई है। जंग का दावा है कि उनसे राय लिए बिना दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति का अधिकार मुख्यमंत्री को नहीं है।
सिविल सेवा परीक्षा में अव्वल रही अभ्यर्थी को करीब 53 प्रतिशत अंक मिले हैं और इस तरह संघ लोक सेवा आयोग द्वारा देश के शीर्ष नौकरशाहों के चयन के लिए आयोजित परीक्षा का कठिन पैटर्न पता चलता है।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविन्द पनगढ़िया ने विश्वास जताया है कि विकास आधारित नीतियों पर आगे बढ़ते रहने से भारतीय अर्थव्यवस्था अगले 15 साल या उससे भी कम समय में 8,000 अरब अमेरिकी डालर तक पहुंच सकती है और यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकती है।
सरकार पर 'किसान विरोधी' होने का दाग लगवाकर भी भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव की जिद्द पर अड़े प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यही मुद्दा नीतिगत मोर्चे पर शिकस्त दे रहा है। बुधवार को हुई नीति आयोग की बैठक में तकरीबन साफ हो गया कि केंद्र सरकार संसद के जरिये भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव की आस छोड़कर राज्यों को अपने कानून बनाने के लिए प्रेरित करेगी। हालांकि, मोदी सरकार से यह प्रेरणा लेने के लिए केवल 16 मुख्यममंत्री मौजूद थे। यानी भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव की कवायद पूरे देश के बजाय अब एनडीए शासित राज्यों तक सिमट जाएगी। लेकिन इसके खतरे भी कम नहीं हैं।