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क्या राहुल गांधी को राजनीति से ही छुट्टी ले लेनी चाहिए?

क्या राहुल गांधी को राजनीति से ही छुट्टी ले लेनी चाहिए?

संसद के बजट सत्र के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के छुट्टी लेने पर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। विपक्ष इसे राहुल का पलायन कह रहा है तो कांग्रेस कह रही है कि वह चिंतन करने के लिए छुट्टी पर गये हैं। राहुल हमेशा अनमने तरीक़े से राजनीति करते रहे हैं। उन्होंने अब तक की राजनीति में जितने भी मुद्दे उठाये हैं उन्हें कभी मंजिल तक नहीं पहुंचाया। भट्टा पारसौल, कलावती और नियमगिरी के मुद्दे इसकी बानगी मात्र हैं।
क्या बदल गये हैं मोदी

क्या बदल गये हैं मोदी

देश में अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले की घटनाओं के बीच मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ एक लंबा भाषण दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली के विज्ञान भवन में हुए एक राष्ट्रीय समारोह में अपने विचार व्यक्त किये।
अब क्या होगा कांग्रेस का

अब क्या होगा कांग्रेस का

दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक भी सीट न जीत पाने से राज्य में कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट पैदा गया है। लोकसभा चुनाव के बाद लगातार कमजोर होती जा रही कांग्रेस का दिल्ली विधानसभा चुनाव में ऐसा हस्र होगा इस बात का अहसास कांग्रेस नेताओँ को भी नहीं था।
क्या केजरी की शपथ में जाने का साहस करेंगे मोदी

क्या केजरी की शपथ में जाने का साहस करेंगे मोदी

दिल्ली के प्रतीक्षारत मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यह घोषणा क्या की कि वह कल 12 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर उन्हें 14 फरवरी को अपने शपथग्रहण समारोह में रामलीला मैदान आने को निमंत्रित करेंगे, अब सब निगाहें इसपर लगी हैं कि मोदी इसके लिए राजी होते हैं या नहीं।
भारत क्या पाक के जाल में फंस गया

भारत क्या पाक के जाल में फंस गया

भारी गोलीबारी को मुद्दा बना पाकिस्तान पहुंचा संयुक्त राष्ट्र संघस पूरे मामले के अंतर्ताष्ट्रीयकरण की ओर बढ़ा, अब भारत से कूटनीतिक पहल समय की मांग
आगाज तो अच्छा , अंजाम क्या होगा

आगाज तो अच्छा , अंजाम क्या होगा

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लगभग पांच लाख ट्रांसजेंडर हैं। हालांकि इनकी गिनती इससे कहीं ज्यादा है। इनके अधिकारों की बात करें तो तमिलनाडु राज्य में इन्हें सबसे अधिक अधिकार प्राप्त हैं।
बदनाम हुए तो क्या, दाम मिलेगा

बदनाम हुए तो क्या, दाम मिलेगा

पीके फिल्म के नाम पर जितनी चिल्ला चोट हो सकती है हो रही है। बैनर-पोस्टर आग के हवाले किए जा रहे हैं। टेलीविजन चैनल पर बहस का बाजार गरम है। यह फिल्म के विषय पर बहस न होकर केसरिया-हरे की बहस हो कर रह गई है।
आखिर क्या करेगा नीति आयोग?

आखिर क्या करेगा नीति आयोग?

हर ओर से यही सवाल उठ रहे हैं कि यह आयोग आखिर करेगा क्या? इसके अधिकारों और काम-काज के दायरे को अब तक परिभाषित नहीं किया गया है और फिलहाल इसे सिर्फ थिंक टैंक के रूप में लिया जा रहा है।
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