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Search Result : "केंद्रीय बजट 2021-22"

कच्चे तेल पर सीमा-शुल्क फिर हो सकता है लागू

कच्चे तेल पर सीमा-शुल्क फिर हो सकता है लागू

वित्त मंत्री अरुण जेटली कच्चे तेल के आयात पर पांच प्रतिशत सीमा शुल्क फिर से लगाने पर विचार कर सकते हैं जिससे सरकार को तीन अरब डालर का अतिरिक्त राजस्व मिलने के साथ और घरेलू उत्पादकों के लिए परिचालन में बराबरी का अवसर मिलेगा।
ग़ाजीपुर में बीमार हैं स्वास्थ्य केंद्र

ग़ाजीपुर में बीमार हैं स्वास्थ्य केंद्र

गाजीपुर जिला चिकित्सालय के आकस्मिक चिकित्सा विभाग में सुबह के दस बजे हैं और इलाज के लिए कोई डॉक्टर नहीं है। पूछने पर पता चला कि आज डॉक्टर साहब नहीं आएंगे।
केंद्र की नीतियों पर आम आदमी की बिजली

केंद्र की नीतियों पर आम आदमी की बिजली

अब दिल्ली दूर अस्त नहीं। आम आदमी पार्टी की दिल्ली फतह का अंजाम क्या होगा? इसका कितना असर पड़ेगा देश की सियासत पर, आर्थिक नीतियों के तौर-तरीकों पर शासन की नीति पर ? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली केंद्रीय बजट को अंतिम रूप देने से पहले दिल्ली विधानसभा चुनावों से निकले आम आदमी के जिन्न से प्रभावित होंगे ?
कैसा बजट लाएंगे जेटली?

कैसा बजट लाएंगे जेटली?

वित्तीय घाटा कम करने की कवायद के साथ ही मेक इन इंडिया और राज्यों को आवंटन का ख्याल भी रखना होगा वित्त मंत्री को
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।
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