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Search Result : "कमला नेहरू कॉलेज"

व्यवस्था की विकलांगता ही चुनौतीः केदार

व्यवस्था की विकलांगता ही चुनौतीः केदार

जब वह मेरे दफ्तर मिलने के लिए आए तो अचानक ही लगा कि मेरा दफ्तर भी विकलांग व्यक्ति के लिए कितना असुविधाजनक है। वह हथेलियों में हवाई चप्पल पहने हुए पूरी सहजता और जबर्दस्त आत्मविश्वास के साथ दफ्तर में आ चुके थे। तकरीबन लपकते हुए वह कुर्सी की ओर बढ़े।
गुट निरपेक्षता के स्‍मरण में नेहरू को भूल गईं सुषमा स्‍वराज

गुट निरपेक्षता के स्‍मरण में नेहरू को भूल गईं सुषमा स्‍वराज

पूरी दुनिया में भले ही भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को गुट निरपेक्ष आंदोलन के नेता के तौर पर जानती है लेकिन विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज ने बांडुंग सम्‍मेलन की 60वीं सालगिरह के मौके पर नेहरू का नाम लेना तक जरूरी नहीं समझा। विदेश राज्‍य मंत्री वीके सिंह ने भी नेहरू का जिक्र तक नहीं किया। कांग्रेस मुक्‍त भारत का नारा देकर सत्‍ता में आई मोदी सरकार अब अंतरराष्‍ट्रीय मंचों पर भी इसी नीति को आगे बढ़ा रही है। भारत सरकार की ओर से वैश्विक मंच पर नेहरू के योगदान को नजरअंदाज करने का यह अनूठा मामला है।
विरह में दो मंत्र

विरह में दो मंत्र

सर्वेश सिंह की कविताएं आध्यात्म और वास्तविक जीवन के ईद-गिर्द खूबसूरत ताना-बाना बुनती हैं। उनके द्वारा लिखे गए कई लेखों पर तीखी बहसें भी हुई हैं। उनकी कहानी ज्ञान क्षेत्रे, कुरूक्षेत्रे को बहुत सराहना मिली थी। सर्वेश फिलवक्त डीएवीपीजी कॉलेज, बनारस में हिंदी विभागाध्यक्ष हैं।
कहानी - प्रेक्षागृह

कहानी - प्रेक्षागृह

1 जनवरी 1958 को उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले में जन्में हरिसुमन बिष्ट हिंदी साहित्य के जानेमाने कहानीकार हैं। कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल से हिंदी में स्नातकोत्तर और आगरा विश्वविद्यालय, आगरा से पी.एच.डी की उपाधि। उनकी प्रमुख प्रकाशित रचनाओं में उपन्यास : ममता, आसमान झुक रहा है, होना पहाड़। कहानी संग्रह : सफ़ेद दाग, आग और अन्य कहानियां, मछरंगा, बिजूका। यात्रा विवरण : अंतर्यात्रा हैं। सन 1983 में उनके द्वारा संपादित पुस्तक ‘अपनी जबान में कुछ कहो' को साहित्यिक श्रेणी में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
नेताजी फाइलें: इंदिरा ने नष्ट कीं, अटल ने छिपाईं

नेताजी फाइलें: इंदिरा ने नष्ट कीं, अटल ने छिपाईं

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक नायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस 48 वर्ष के थे जब कहते हैं कि 18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक जापानी युद्धक विमान की दुर्घटना में उनकी मौत हो गई
नेताजी पर सरकार का पाखंड

नेताजी पर सरकार का पाखंड

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के रहस्य के मसले पर कांग्रेस की सरकारों, खासकर पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ आग उगलने वाली भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली वाजपेयी सरकार और वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने भी इससे संबंधित विभिन्न आयोगों की रिपोर्टों, खुफिया सूचनाओं और अन्य दस्तावेजों के खुलासे से इनकार किया।
पत्रिका पर पाबंदी को सही ठहराता सेंट स्टीफंस

पत्रिका पर पाबंदी को सही ठहराता सेंट स्टीफंस

सेंट स्टीफंस के छात्रों द्वारा शुरू की गई साप्ताहिक ई-पत्रिका पर कॉलेज के प्राचार्य विल्सन थंपू ने रोक लगा दी है। कॉलेज के चार छात्रों ने इसे शुरू किया था। सात मार्च को यह पत्रिका इंटरनेट पर आई थी और इसमें प्रकाशित थंपू के साक्षात्कार को 2000 से ज्यादा हिट मिले थे।
मोदी ने राउरकेला का आधुनिक संयंत्र राष्ट्र को समर्पित किया

मोदी ने राउरकेला का आधुनिक संयंत्र राष्ट्र को समर्पित किया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को राउरकेला इस्पात संयंत्र (आरएसपी) में 12,000 करोड़ रुपये की विस्तार एवं आधुनिकीकरण परियोजना राष्ट्र को समर्पित की। इस परियोजना के तहत एक नई प्लेट मिल लगाई गई है।
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।
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