कांग्रेस ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम के कई प्रमुख प्रावधानों पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए इसे न्याय, समानता और बंधुत्व के संवैधानिक मूल्यों की जीत बताया और कहा कि यह मूल कानून में निहित "शरारतपूर्ण इरादों" को खत्म करने की दिशा में एक लंबा रास्ता तय करता है।
कांग्रेस महासचिव एवं संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर उच्चतम न्यायालय का आदेश न केवल उन दलों के लिए एक बड़ी जीत है, जिन्होंने संसद में इस मनमाने कानून का विरोध किया था, बल्कि संयुक्त संसदीय समिति के उन सभी सदस्यों के लिए भी जीत है, जिन्होंने विस्तृत असहमति नोट प्रस्तुत किए थे, जिन्हें तब नजरअंदाज कर दिया गया था, लेकिन अब वे सही साबित हुए हैं।
रमेश ने एक्स पर कहा, "यह आदेश महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मूल कानून में निहित शरारती इरादों को समाप्त करने में काफी मददगार साबित होगा।"
उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों के वकीलों ने तर्क दिया था कि इस कानून के परिणामस्वरूप एक ऐसी संरचना का निर्माण होगा, जहां कोई भी व्यक्ति कलेक्टर के समक्ष संपत्ति की स्थिति को चुनौती दे सकेगा और इस तरह के मुकदमे के दौरान संपत्ति की स्थिति अनिश्चित बनी रहेगी।
इसके अतिरिक्त, रमेश ने कहा कि केवल पांच वर्षों से प्रैक्टिस कर रहा 'मुस्लिम' ही वक्फ को दान दे सकता है।
उन्होंने आरोप लगाया, "इन धाराओं के पीछे की मंशा हमेशा मतदाताओं को भड़काए रखने और धार्मिक विवाद भड़काने की कोशिश करने वालों को शामिल करने के लिए एक प्रशासनिक ढांचा बनाने की रही है।"
उन्होंने कहा, "इस आदेश के साथ, सर्वोच्च न्यायालय ने कलेक्टर की शक्तियों पर रोक लगा दी है; मौजूदा वक्फ संपत्तियों को संदिग्ध चुनौतियों से बचा लिया है; तथा नियम बनाए जाने तक मुस्लिम होने का प्रमाण देने संबंधी प्रावधान पर पांच साल के लिए रोक लगा दी है।"
रमेश ने कहा, "हम इस आदेश का स्वागत न्याय, समानता और भाईचारे के संवैधानिक मूल्यों की जीत के रूप में करते हैं।"
सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कई प्रमुख प्रावधानों पर रोक लगा दी, जिसमें यह प्रावधान भी शामिल है कि केवल पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाले लोग ही संपत्ति को वक्फ के रूप में समर्पित कर सकते हैं, लेकिन पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस गहन बहस वाले मुद्दे पर अपने अंतरिम आदेश में कहा, "हमने माना है कि पूर्वधारणा हमेशा किसी कानून की संवैधानिकता के पक्ष में होती है और हस्तक्षेप केवल दुर्लभतम मामलों में ही किया जा सकता है।"
सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ संपत्तियों की स्थिति पर निर्णय करने के लिए कलेक्टर को दी गई शक्तियों पर भी रोक लगा दी और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम भागीदारी के विवादास्पद मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया कि केंद्रीय वक्फ परिषद में 20 में से चार से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए, और राज्य वक्फ बोर्डों में 11 में से तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पीठ ने नये कानून की प्रत्येक धारा के प्रति "प्रथम दृष्टया चुनौती" पर विचार किया है और पाया है कि "कानून के सम्पूर्ण प्रावधानों पर रोक लगाने का कोई मामला नहीं बनता है।"
उन्होंने कहा, "हालांकि कुछ वर्गों को संरक्षण की आवश्यकता है।"
पीठ ने स्पष्ट किया कि उसके निर्देश प्रथम दृष्टया और अंतरिम प्रकृति के हैं और वे याचिकाकर्ताओं या सरकार को अंतिम सुनवाई के चरण में कानून की संवैधानिक वैधता पर पूर्ण तर्क देने से नहीं रोकेंगे।
इसके बाद मुख्य न्यायाधीश गवई ने उन प्रावधानों का उल्लेख किया जिनमें अंतरिम आदेश द्वारा हस्तक्षेप किया गया है या जिन पर रोक लगा दी गई है।
आदेश में कहा गया है, "किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति वक्फ के रूप में समर्पित करने से पहले पिछले पांच वर्षों से मुस्लिम होना आवश्यक है (धारा 3(आर)) इस प्रावधान पर तब तक रोक लगा दी गई है जब तक राज्य सरकारें यह जांचने के लिए नियम नहीं बना लेतीं कि कोई व्यक्ति मुस्लिम है या नहीं। ऐसे किसी नियम/तंत्र के बिना, यह प्रावधान सत्ता के मनमाने प्रयोग को बढ़ावा देगा।"
सबसे महत्वपूर्ण हस्तक्षेपों में से एक धारा 3सी के संबंध में आया, जिसमें वक्फ संपत्तियों की स्थिति निर्धारित करने के लिए नामित सरकारी अधिकारियों को शक्तियां प्रदान की गई थीं।
केंद्र ने 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलने के बाद 8 अप्रैल को अधिनियम को अधिसूचित किया। लोकसभा और राज्यसभा ने क्रमशः 3 अप्रैल और 4 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित किया।