Advertisement

उत्तराखंड निकाय चुनाव में कांग्रेस ने रोक दिया भाजपा का विजयी रथ

यह मात्र डेढ़ साल पहले की कहानी है, जब भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ राज्य में सत्तारूढ़ हुई। लेकिन राज्य के...
उत्तराखंड निकाय चुनाव में कांग्रेस ने रोक दिया भाजपा का विजयी रथ

यह मात्र डेढ़ साल पहले की कहानी है, जब भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ राज्य में सत्तारूढ़ हुई। लेकिन राज्य के लिए कोई ठोस योजना बनाकर विकास की गाड़ी दौड़ने के बजाय सारा समय जीरो टॉलरेंस जैसे जुमलों में बीत गया और जनता से निरंतर दूरी बढ़ती गयी। निकाय चुनाव के परिणाम इस दूरी को मापने का निष्पक्ष बैरोमीटर साबित हुए। कुल मिलाकर पिछले विधानसभा चुनाव में मिले प्रचंड बहुमत का दर्पण चटक गया। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने विधानसभा क्षेत्र के एकमात्र शहर डोईवाला में पार्टी को बचाने में विफल रहे और पार्टी प्रत्याशी कांग्रेस से चुनाव हार गईं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट भी अपनी विधानसभा में रानीखेत नगर पालिका का चुनाव जितवाने में फेल हो गए। यहां पर निर्दलीय ने जीत हासिल की।

यदि नतीजों पर गौर करे तो बड़े शहरो में भाजपा की साख बच गई। सात नगर निगम में से पांच भाजपा और दो कांग्रेस ने जीते। जबकि पिछले चुनाव में कांग्रेस का एक भी मेयर नहीं था और इस बार उसने हरिद्वार और कोटद्वार नगर निगम भाजपा से छीन लिए। तकरीबन 85 नगर पालिका और नगर पंचायतों में 35 पर भाजपा, 25 पर कांग्रेस और बाकी पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। 1014 वार्डों के में तो दोनों राष्ट्रीय दल खेत रहे। साढ़े पांच सौ से ज्यादा सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीतीं और भाजपा 298, कांग्रेस 163, बसपा 2 और यूकेडी व आप ने दो-दो और सपा ने एक सीट जीती। लेकिन मजे की बात यह है कि जनता ने इस बार दिग्गजों की जमकर खबर ली। दोनों पार्टी के बड़े नेताओ को अपने ही क्षेत्रो में शिकस्त मिली।

कुल मिलाकर यह चुनाव भाजपा के लिए जश्न मनाने के लिए कम और समीक्षा करने के लिए ज्यादा उपयुक्त है और मुख्यमंत्री, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और मंत्रिमंडल के ज्यादातर सदस्य अपने जिलों और विधानसभा क्षेत्रो के शहरो में चुनाव में बुरी तरह पिट गए। हरिद्वार जैसी भगवा सीट भी भाजपा के हाथों से निकल गई। नगर पालिका, नगर पंचायतो के साथ ही पार्षदों में निर्दलीयों ने दोनों राष्ट्रीय दलों को दरकिनार कर सबसे ज्यादा सीटों पर कब्जा किया।

देहरादून: सबसे पहले देहरादून नगर निगम की बात करते है। यहां पूरी पार्टी से नाराजगी मोल लेकर मुख्यमंत्री ने अपने खासम-खास सुनील उनियाल गामा को मेयर का टिकट दिया और मात्र 35 हजार वोटों से हुई जीत समीक्षा करने की ओर इशारा कर रही है। पिछली बार 2013 के चुनाव से इस बार एक लाख से ज्यादा मतदाता बढ़े और जीत का अंतर पिछले चुनाव से आधा हो गया। तीन बार के विधायक और कैबिनेट मंत्री कांग्रेस प्रत्याशी दिनेश अग्रवाल को हराकर भाजपा और मुख्यमंत्री अपने दिल को तसल्ली तो दे सकते है लेकिन हालात बहुत अनुकूल नहीं रह गए हैं। देहरादून शहर में पिछले ढाई दशक में से दो दशक तक भाजपा ही काबिज रही है।

हरिद्वार: नगर निगम हरिद्वार में भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत ने खासतौर पर कैबिनेट मंत्री और हरिद्वार शहर से चौथी बार विधायक मदन कौशिक के लिए परिस्थितियों को जटिल कर दिया है। यहां से कौशिक की पसंद अनु कक्क्ड़ कांग्रेस की अनीता शर्मा से चुनाव हार गई हैं। हरिद्वार के सांसद रमेश पोखरियाल निशंक पर कोई फर्क पड़े या नहीं लेकिन कौशिक को यहां पर अपनी राजनीति के लिए नए सिरे से क्षेत्र रक्षण करना होगा, वर्ना हार का अगला नंबर उनका भी हो सकता है। क्योंकि हरिद्वार जिले के ज्यादातर पार्टी विधायक लगातार उनकी मुखालफत कर रहे है।

कोटद्वार: पौड़ी जिले की एकमात्र नगर निगम कोटद्वार में भाजपा की बुरी गत हुई। यहां से कैबिनेट मंत्री और खुद को गढ़वाल का शेर कहलवाने वाले हरक सिंह रावत विधायक हैं। इन्हें विपरीत समय में राजनीतिक समीकरणों को अपने पक्ष में करने में माहिर माना जाता है लेकिन मेयर की सीट जितने के लिए इनका चुनाव प्रबंधन फेल साबित हुआ और पार्टी प्रत्याशी तीसरे नंबर पर जा गिरी। प्रत्याशी के पति दिलीप सिंह रावत भी लैंसडोन से भाजपा विधायक है लेकिन पार्टी में हुए जबरदस्त भीतरघात ने यह सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी।

ऋषिकेश: पहली बार हो रहे नगर निगम में भाजपा ने इज्जत बचा ली और पार्टी प्रत्याशी अनीता ममगई चुनाव जीत गयी। लेकिन कांग्रेस यहाँ तीसरे नंबर पर खिसक गयी और पहले दो बार निर्दलीय चेयरमैन रहे दीप शर्मा की पत्नी इस बार बतौर निर्दलीय दूसरे नंबर पर रही।

काशीपुर: यहां भाजपा संतोष कर सकती है, क्योंकि यहां मेयर के पद पर एक फिर उषा चौधरी ने शानदार जीत दर्ज की है। भाजपा तकनीकी तौर पर इस सीट को अपने खाते में गिन सकती है लेकिन हकीकत यह है कि पिछली बार भी उषा चौधरी बतौर निर्दलीय मेयर चुनी गयी थी और उससे पहले निर्दलीय ही नगर पालिका की चेयरमैन निर्वाचित हो चुकी है, इसलिए यहां जीत का श्रेय पार्टी से ज्यादा चौधरी को देना ही समझदारी होगा। 

रुद्रपुर: उधमसिंह नगर जनपद मुख्यालय के नगर निगम रुद्रपुर में भाजपा प्रत्याशी रामपाल ने बमुश्किल मात्र पांच हजार वोटो से से कांग्रेस के नन्दलाल को चुनाव हराकर सीट जीती। दिन भर कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस के आगे पीछे होने का क्रम जारी रहा और देर रात भाजपा जीत गयी।

हल्द्वानी: नैनीताल जिले के सबसे बड़े शहर हल्द्वानी नगर निगम का चुनाव भी कांग्रेस की दिग्गज और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदेश के लिए खतरे की घंटी बजा गया। यहां पर इंदिरा के पुत्र सुमित हृदेश कांग्रेस के प्रत्याशी थे मगर तमाम इंतजाम करने के बाद भी भाजपा के जोगेंद्र रौतेला से ग्यारह हजार वोटों से चुनाव हार गए। यह परिणाम इंदिरा हृदेश के लिए तब और खराब हो गया जब वह अगले विधानसभा तक अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्र को सौपने का लगभग मन बना चुकी है।

अब बात दिग्गजों के क्षेत्रो की

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपनी नगर पालिका डोईवाला नहीं बचा सके। कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक हरिद्वार मेयर और मंत्री हरक सिंह रावत कोटद्वार नगर निगम में पार्टी को चुनाव जिताने में फेल साबित हुए। कैबिनेट मंत्री अरविन्द पांडेय अपनी ही नगर पालिका गदरपुर और राजयमंत्री रेखा आर्य अल्मोड़ा को नहीं बचा सकी। एक अन्य मंत्री यशपाल आर्य अपने क्षेत्र में दो निकाय हार गए। मंत्री प्रकाश पंत पिथौरागढ़ और सुबोध उनियाल अपना शहर नरेंद्रनगर बचाने में सफल रहे। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट अपना शहर रानीखेत नहीं बचा सके तो तीन बार विधायक चुने जाने के बावजूद गणेश जोशी पर्यटन नगरी मसूरी में अध्यक्ष का चुनाव जीतना तो दूर एक वार्ड सभासद भी नहीं जिता सके। युवा नेता व भाजपा विधायक पुष्कर सिंह धामी खटीमा और राजेश शुक्ला अपने शहर किच्छा को नहीं बचा पाए। कांग्रेस दिग्गज इंदिरा हृदेश भी अपने गढ़ हल्द्वानी में कसौटी पर खरी नहीं उत्तरी। लोगों की भावनाओ से जुड़े और राज्य के आंदोलन का केंद्र रहे गैरसैण में भी भाजपा हार गई। हरीश रावत, भगत सिंह कोश्यारी भी अपने क्षेत्रों में कमल नहीं खिला सके। हां, इस सबके बावजूद चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने प्रीतम सिंह मुस्करा सकते है कि उनकी अगुआई में कांग्रेस ने भाजपा के सरपट दौड़ रहे रथ की रफ्तार धीमी करने में काफी हद तक कामयाबी हासिल कर ली है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement