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साउथ का वो राजनेता जिसने चलाया था हिंदी-हटाओ आंदोलन

गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी पढ़ाने का प्रस्ताव देने वाली शिक्षा नीति के मसौदे पर जारी विवाद के...
साउथ का वो राजनेता जिसने चलाया था हिंदी-हटाओ आंदोलन

गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी पढ़ाने का प्रस्ताव देने वाली शिक्षा नीति के मसौदे पर जारी विवाद के बाद केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति के मसौदे में बदलाव कर दिया है। केंद्र सरकार ने विवादित 'हिंदी क्लॉज' को हटा दिया है। दक्षिण राज्यों में इस नीति को लेकर विवाद पैदा होने के बाद केंद्री सरकार ने इसमें बदलाव का फैसला लिया है। दक्षिण भारतीय राज्यों और गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी भाषा को लेकर शुरू हुए विवाद के बीच सरकार ने कहा कि नई शिक्षा नीति में हिंदी भाषा वैकल्पिक तौर पर रखी गई है और इस पर किसी तरह का कोई नहीं होना चाहिए। नई शिक्षा नीति पर शुरू हुए विवाद और इसे लेकर केंद्र सरकार द्वारा किए गए बदलाव के बाद आज हम आपको साउथ के उस नेता के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने हिंदी-हटाओ आंदोलन की शुरुआत की थी-

जिस शख्स ने हिंदी-हटाओ आंदोलन की शुरुआत की थी वह हैं तमिलनाडु की राजनीति के पितामह एम. करुणानिधि, जिन्होंने 1969 में पहली बार राज्य के सीएम का पद संभाला था। इसके बाद वो पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी रहे। करुणानिधि एक ऐसे नेता रहे जिन्होंने हर चुनाव में अपनी सीट न हारने का रिकॉर्ड दर्ज किया है। उन्होंने जिस भी सीट से चुनाव लड़ा हमेशा उनके हाथ जीत ही लगी।

ईवी रामासामी पेरियार की विचारधारा से प्रभावित करुणानिधि आधुनिक तमिलनाडु के शिल्पकार माने जाते हैं। राजनीतिक जीवन में उन्होंने कई ऐसे काम किए जो किसी भी नेता के लिए मिसाल से कम नहीं है।

जब करुणानिधि ने शुरू किया था 'हिंदी-हटाओ आंदोलन'

दक्षिण की राजनीति के स्तंभ कहे जाने वाले करुणानिधि के निधन के बाद डीएमके की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी करुणानिधि के बेटे, डीएमके चीफ एमके स्टालिन के कंधों पर है। आज करुणानिधि की जयंती भी है। कई दशक तक तमिलनाडु की जनता के दिलों पर राज करने वाले नेता, दशकों तक उत्तर भारत के लोगों की आलोचना का पात्र भी बने रहे। उन्हें लोगों की आलोचना इसलिए सहनी पड़ी क्योंकि उन्होंने हिंदी को लेकर हठ और विरोध किया था। 1937 में गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी के अनिवार्य शिक्षण लागू करने की योजना थी, हालांकि अहिंदी क्षेत्रों में इसका जमकर विरोध हो रहा था। खासकर दक्षिण के राज्य अपने आशियाने में किसी दूसरी भाषा को प्रश्रय देने की बात पचा नहीं पा रहे थे। इनमें तमिलनाडु सबसे आगे था।

दरअसल, दक्षिण भारत में हिंदी विरोध पर मुखर होते हुए करुणानिधि ने 'हिंदी-हटाओ आंदोलन' किया। 1937 में स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने पर बड़ी संख्या में युवाओं ने विरोध किया, करुणानिधि भी उनमें से एक थे। इसके बाद उन्होंने तमिल भाषा को अपना हथियार बनाया और तमिल में ही नाटक, अखबार और फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखने लगे।

उस दौरान तमिलनाडु में हिंदी शिक्षण को तमिल पर किसी दूसरी भाषा को थोपने की तरह लिया गया। इसे तमिल अस्मिता से भी जोड़ा गया। उस वक्त पेरियार ने इसका तार्किक विरोध किया। तब पेरियार के कई युवा अनुयायी भी हिंदी के खिलाफ सडकों पर उतर आए। इनमें से करुणानिधि भी एक थे। वो कल्लाक्कुडी में युवाओं का नेतृत्व कर रहे थे। इसके लिए उन्होंने युवाओं का एक संगठन भी खड़ा किया। कुछ लोग इसे द्रविड़ राजनीति का पहला छात्र संगठन भी मानते हैं। उस वक्त उनकी उम्र महज 14 साल थी। आंदोलन के दौरान हिंसा की वजह से करुणानिधि को गिरफ्तार भी किया गया। इस आंदोलन के बाद करुणानिधि ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

आज भी इस नीति को लेकर हुआ विरोध

वहीं, आज भी नई शिक्षा नीति आने के बाद तमिलनाडु में डीएमके सहित विभिन्न राजनीतिक दलों ने मसौदा राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रस्तावित तीन भाषा फॉर्मूले का कड़ा विरोध किया। एमके स्टालिन ने कहा कि तीन भाषा फॉर्मूला, कक्षा एक से कक्षा 12 तक हिंदी पर जोर देता है, यह हैरान करने वाली बात है और यह सिफारिश देश को बांट देगी।

नई शिक्षा नीति के विरोध के साथ ही स्टालिन ने याद दिलाया 1937 का समय

स्टालिन ने तमिलनाडु में 1937 में हिंदी विरोधी आंदोलनों को याद करते हुए कहा कि 1968 से राज्य दो भाषा फॉर्मूले का ही पालन कर रहा है, जिसके तहत केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है। उन्होंने केंद्र से सिफारिशों को खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि यह तीन भाषा फॉर्मूले की आड़ में हिंदी को थोपना है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के सांसद संसद में शुरू से ही इसके खिलाफ आवाज उठाएंगे।

जानिए इस नीति को लेकर किसने क्या कहा था

दरअसल, हिंदी पढ़ाने का प्रस्ताव देने वाली शिक्षा नीति को लेकर सबसे ज्यादा विरोध तमिलनाडु ही दर्ज करवा रहा है। मोदी सरकार के मंत्रियों के अलावा उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने भी लोगों से अपील की, वह नई शिक्षा नीति के मसौदे का अध्ययन, विश्लेषण और बहस करें लेकिन जल्दबाजी में किसी नतीजे पर ना पहुंचें। हालांकि दक्षिण भारत के नेताओं द्वारा इस मसौदे को लेकर विरोध के सुर लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

क्या बोले कुमारस्वामी और थरूर

पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम और डीएमके नेता एमके स्टालिन के बयानों के बाद अब कर्नाटक के सीएम एचडी कुमारस्वामी और कांग्रेस नेता शशि थरूर हिंदी को दक्षिण भारत पर थोपने के खिलाफ चेतावनी जारी कर रहे हैं। थरूर ने कहा था, 'दक्षिण में कई जगह हिंदी दूसरी भाषा के तौर पर प्रयोग की जाती है लेकिन उत्तर में कोई मलयालम या तमिल नहीं सीख रहा है।'

वहीं, कुमारस्वामी ने कन्नड़ में ट्वीट किया, 'मानव संसाधन मंत्रालय (एचआरडी) की ओर से जारी मसौदे को कल मैंने देखा जिसमें हिंदी थोपने की बात की गई है। तीन भाषा की नीति के नाम पर किसी पर कोई भाषा नहीं थोपी जानी चाहिए। इसके बारे में हमलोग केंद्र सरकार को सूचित करेंगे।'

'जनता की राय सुनने के बाद ही ड्राफ्ट पॉलिसी लागू होगी

वहीं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ट्वीट किया, 'जनता की राय सुनने के बाद ही ड्राफ्ट पॉलिसी लागू होगी। सभी भारतीय भाषाओं को पोषित करने के लिए ही पीएम ने एक भारत श्रेष्ठ भारत योजना लागू की थी। केंद्र तमिल भाषा के सम्मान और विकास के लिए समर्थन देगा। इस मामले में बीजेपी नेता तेजस्वी सूर्या ने कहा था, 'इस पॉलिसी को साउथ के छात्रों को हिंदी सीखने का प्रोत्साहन मिलेगा। अगर एनईपी लागू नहीं होता तो भी स्कूलों में हिंदी सीखने को बढ़ावा मिलना चाहिए।'

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