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अमित जोगी पर राजनितिक जमीन बचाने का दारोमदार, अजीत जोगी के निधन से बढ़ी चुनौती

अजीत जोगी के निधन के बाद उनकी पार्टी " जोगी कांग्रेस " (जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी ) का क्या होगा ? यह...
अमित जोगी पर राजनितिक जमीन बचाने का दारोमदार, अजीत जोगी के निधन से बढ़ी चुनौती

अजीत जोगी के निधन के बाद उनकी पार्टी " जोगी कांग्रेस " (जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी ) का क्या होगा ? यह सवाल छत्तीसगढ़ के राजनीतिक गलियारों गूंजने लगा है। छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का 29 मई को निधन हुआ और अभी उनका क्रिया-कर्म भी नहीं निपटा है  और लोग पूरी पार्टी का कांग्रेस में विलय का शिगूफा छोड़ने लगे हैं। अजीत जोगी ने कांग्रेस से अलग होकर 2016 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी ( जे.सी सी. जे. ) नाम से नई पार्टी बनाई और 2018 में बसपा से तालमेल कर विधानसभा का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में जोगी कांग्रेस को पांच और बसपा को दो सीटें मिली। सबसे बड़ी बात यह रही कि जोगी कांग्रेस राज्य में साढ़े 12 फीसदी वोट हासिल कर तीसरी शक्ति के रूप में उभरी। बसपा को मात्र ढाई फीसदी ही वोट मिले। 2003 में विद्याचरण शुक्ल एनसीपी के बैनर तले प्रत्याशी उतारकर सात फीसदी वोट हासिल कर पाए थे। अजीत जोगी 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के चेहरा थे और 2018 में उसी कांग्रेस को चुनौती देते उन्होंने अपने बलबूते पार्टी का जनाधार तैयार कर उसे मान्यता प्राप्त दल का तगमा भी दिला दिया।  

प्रशासनिक अधिकारी से राजनेता बने अजीत जोगी राजनीतिक दांव-पेंच में माहिर खिलाडी के साथ छत्तीसगढ़ में जनाधार वाले नेता थे। खासतौर से सतनामी समाज के वोट बैंक पर उनकी पकड़ का कोई मुकाबला नहीं था। अब इस वोट बैंक पर अमित जोगी किस तरह कब्जा बनाये रख पाते हैं, यह उनके लिए चुनौती है और पार्टी की मजबूती के लिए जरूरी भी है। अब तक अमित अपने पिता अजीत जोगी की छत्रछाया में  ही काम कर रहे थे, भले वे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं  और चुनावी रणनीति से लेकर दूसरे काम वही देखते हैं, लेकिन अब उन्हें अजीत जोगी के बिना अजीत जोगी जैसे फैसले लेने और काम करने होंगे। चार साल के भीतर जोगी कांग्रेस छोड़कर कई  नेता -कार्यकर्त्ता चले गए। इसके बावजूद पार्टी को साढ़े 12 फीसदी वोट मिले, तो इसके पीछे  अजीत जोगी  का करामाती व्यक्तित्व ही था।  पार्टी में पुराने और नए लोगों का धड़ा अलग-अलग था, लेकिन अजीत जोगी के व्यक्तित्व के नीचे सब एक थे, लेकिन अमित सबको कैसे साधेंगे, यह सवाल पार्टी के नेता-कार्यकर्त्ता के साथ आम लोगों के दिमाग में कौंध रहा है। अमित के फैसलों से असहमत होकर पार्टी के कुछ संस्थापक सदस्य अलग हो गए तो भीतर रहने वाले कुछ पुराने लोग असहज महसूस करते रहते हैं। ऐसे लोग अब तक अजीत जोगी के कारण चल रहे थे।  अजीत जोगी के करीबी और पत्रकार अशोक भटनागर कहते हैं- सर पर जिम्मेदारी आती है तो हर व्यक्ति में परिपक्वता आती है, ऐसे ही अमित पर पार्टी का बोझ आने से गंभीर होंगे और सबको साथ लेकर चलेंगे। 

अमित की पहली परीक्षा मरवाही विधानसभा में हो जाएगी। अजीत जोगी के निधन के कारण मरवाही विधानसभा सीट खाली हो गई है। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट से अमित 2013 से 2018 तक विधायक रहे। छत्तीसगढ़ गठन के बाद से यह सीट जोगी परिवार के पास ही रही है। पारिवारिक सीट से अमित का उपचुनाव लड़ना तय है, लेकिन अमित के आदिवासी होने के जाति प्रमाणपत्र को लेकर विवाद है। मामला कोर्ट और थाने में है। अमित जोगी कहते हैं- इस मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया है। अजीत जोगी के आदिवासी प्रमाणपत्र को लेकर भी तीन दशक तक विवाद चलता रहा और अंत तक नहीं निपटा। अमित मरवाही से चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें सहानुभूति लहर का लाभ मिल जायेगा, लेकिन विरोधी दल खासतौर से कांग्रेस अमित को हर हाल में रोकने की कोशिश करेगी, क्योंकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का जोगी परिवार से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते भूपेश बघेल ने ही अमित को पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित किया था।

अजीत जोगी के निधन के बाद ही जोगी कांग्रेस का कांग्रेस में विलय की बात चल पड़ी है। यह बात सही है कि जोगी परिवार के कांग्रेस की नेता सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी से संबंध अच्छे है। खासतौर से अजीत जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी की केमेस्ट्री सोनिया गाँधी से बढ़िया है, लेकिन अमित की छवि और कार्यप्रणाली न तो सोनिया गाँधी को पसंद है और न ही राहुल गाँधी को। 2018 चुनाव के पहले भी कांग्रेस में विलय की कोशिश हुई थी, लेकिन कई रोड़े आ गए। फिर प्रदेश के कांग्रेस नेता जोगी परिवार के खिलाफ हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने जोगी परिवार को बाहर कर सत्ता में धमाकेदार तरीके से कब्जा कर लिया। पार्टी के अभी 69 विधायक है। दो तिहाई से भी ज्यादा बहुमत। ऐसे में कांग्रेस और चार विधायकों (अजीत जोगी के निधन के बाद अब जोगी कांग्रेस के चार विधायक रह गए हैं ) को क्यों जोड़े ? सरकार अल्पमत में होती तो बात समझ में आती। जोगी कांग्रेस से खैरागढ़ के विधायक देवव्रत सिंह को छोड़कर कोई भी अभी कांग्रेस में नहीं जाना चाहता। कहा जाता है देवव्रत का झुकाव कांग्रेस की तरफ जरूर है। जोगी कांग्रेस विधायक दल के नेता धर्मजीत सिंह का कहना है- पार्टी का कांग्रेस में विलय का कोई सवाल नहीं है। पार्टी का अपना जनाधार है। कुछ लोग कांग्रेस में विलय की अफवाह फैला रहे हैं। दुःख की घडी में यह अच्छी बात नहीं है।

जोगी कांग्रेस में अजित जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी और विधायक धर्मजीत सिंह वरिष्ठ होने के साथ परिपक्व और गंभीर भी है। लेकिन डॉ. रेणु जोगी अभी भले विधायक हैं, लेकिन राजनीतिक दांवपेंच से दूर रहती है, वही, धर्मजीत को कमान सौंपने से सतनामी वोट बैंक पार्टी से छिटक सकता है। इसके लावा अजीत जोगी की करिश्माई छवि और छाप का फायदा जितना अमित उठा सकते हैं, उतना धर्मजीत नहीं। इस कारण अमित के व्यवहार और काम के तरीके पर जितने भी सवाल उठाये जायँ। पार्टी के खेवनहार वही बन सकते हैं और सारा दारोमदार उनके कंधे  पर ही है। 

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