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छोटे दलों पर ममता की नजर, भाजपा से कड़ी चुनौती के बाद बदली रणनीति

पश्चिम बंगाल में आक्रामक रूप से उभरती भाजपा और उसके तेवर को देखते हुए अपने खम पर चुनाव लड़ने वाली...
छोटे दलों पर ममता की नजर, भाजपा से कड़ी चुनौती के बाद बदली रणनीति

पश्चिम बंगाल में आक्रामक रूप से उभरती भाजपा और उसके तेवर को देखते हुए अपने खम पर चुनाव लड़ने वाली टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी की पार्टी ने छोटी पार्टियों पर नजर गड़ाना शुरू दिया है। वहीं छोटी पार्टियां अपने वजूद के विस्‍तार को लेकर सक्रिय हैं। बिहार हो या झारखण्‍ड, पश्चिम बंगाल से लगने वाली सीमा वाली सीटों पर इन प्रदेशों के राजनीतिक दलों का कम या ज्‍यादा प्रभाव तो है ही। ममता बनर्जी भी हिंदी भाषी और आदिवासी वोटरों का महत्‍व समझती होंगी।

राजद लगातार बंगाल पर नजर रख रहा है। पिछले माह भी राजद के केंद्रीय प्रधान महासचिव अब्‍दुलबारी सिद्दीकी और महासचिव श्‍याम रजक ने चुनावी गठबंधन को लेकर बंगाल का दौरा किया था। तब ममता बनर्जी से तो इनकी मुलाकात नहीं हुई। मगर उनके भतीजा और टीएमसी में बड़ी हैसियत रखने वाले सांसद और युवा इकाई के अध्‍यक्ष अभिषेक बनर्जी से इनकी मुलाकात हुई थी। बात सकारात्‍म रही। अभी बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्‍वी उसी अभियान में अन्‍य वरिष्‍ठ नेताओं के साथ कोलकाता में हैं। पार्टी के लोगों से विमर्श किया है। दीदी से मुलाकात के बाद तस्‍वीर कुछ साफ होगी।

हालांकि अंतिम मुहर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की रहेगी। राजद के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार राजद की चाहत ज्‍यादा बड़ी नहीं है। वह टीएमसी से आधा दर्जन सीटें लड़ना चाहता है। कोलकाता का बड़ा बाजार जहां से 2006 में वामगबंधन की सरकार के दौरान राजद का एक विधायक जीता था। आसनसोल का रानीगंज, जमुड़‍िया और पंडेश्‍वर चौबीस परगना में बाटपारा एवं मेदिनीपुर जिले की खड़गपुर सीट। टीएमसी और राजद के रवैये से लगता है कि दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं। बिहार में राजद का कांग्रेस और वाम दलों से गठबंधन है जबकि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वाम दल की टीएमसी से अलग लड़ने जा रहे हैं। ऐसे में राजद ने टीएमसी से तालमेल किया तो बिहार के गठबंधन से अलग चेहरा होगा। राजद के एक वरिष्‍ठ नेता कहते हैं कि अभी बिहार के चुनाव में चंद सीटों के कारण राजद के हाथ से आई हुई सत्‍ता फिसल गई। लालू प्रसाद इस दर्द को गहरे समझते हैं। बंगाल में भाजपा को रोकने में कांग्रेस गठबंधन की तुलना में ममता को ज्‍यादा सशक्‍त देख रहे हैं, इसलिए राजद का झुकाव ममता के करीब है। वैवे भी लालू की ममता से पुरानी दोस्‍ती रही है। इसका असर राष्‍ट्रीय राजनीति में भी फायदेमंद रहेगा।

इधर झारखण्‍ड के सत्‍ताधारी झामुमो भी बंगाल सीमा से लगने वाले और आदिवासी बहुल कोई 35-40 सीटों पर नजर गड़ाये हुए है। पश्चिम बंगाल की 294 में 16 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं जहां जेएमएम का प्रभाव है। बीते माह झारग्राम में जब हेमन्‍त सोरेन ने चुनावी सभा की तो ममता नाराज हो गई थीं। उनका रिएक्‍शन मीडिया में छाया रहा। झामुमो ने संयमित तरीके से उसका जवाब भी दिया। झामुमो के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडेय ने आउटलुक से कहा कि दो-चार दिन इंतजार कर लीजिए पूरी तस्‍वीर साफ हो जायेगी। झामुमो अकेले लड़ने को तैयार है मगर गठबंधन में लड़ने पर भी नजर है। ममता की पार्टी और कांग्रेस-वाम दलों के गठबंधन दोनों के साथ हमारी बातचीत चल रही है। वहां भाजपा जैसा भयावह माहौल बना रही है हम उसका आकलन कर रहे हैं। भाजपा को सत्‍ता से दूर रखने की हर संभव हमारी कोशिश होगी। बता दें कि झारखण्‍ड में भी राजद वाली हालत है। यहां भी झामुमो के साथ कांग्रेस और राजद सरकार में हैं। बंगाल में टीएमसी के साथ कोई बात होती है तो झामुमो का भी राजद के पैटर्न पर अलग रास्‍ता रहेगा।
ममता बनर्जी भी बंगाल में उभरती भाजपा के खिलाफ गोलबंदी के लिए मंथन कर रही हैं। वे चाहती हैं कि छोटे दल ऐसे हों जिनका मुंह ज्‍यादा बड़ा न हो और भाजपा का वोट काट सकें और दूसरी सीटों पर टीएमसी को मदद मिल सके। ऐसे में किन दलों से टीएमसी का तालमेल हो पाता है, आदिवासी और हिंदी भाषी वोटों के विभाजन में उन्‍हें कितनी मदद मिलती है यह यह समय बतायेगा। वैसे नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और झारखण्‍ड की आजसू भी अपने उम्‍मीदवार उतारने को लेकर गंभीर हैं।

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