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घर वापसी: मुकुल राय के लिए ममता की कुर्सी बदलने के मायने, जानें क्यों कहा था बेचारा...

ममता बनर्जी शुक्रवार को जब मुकुल राय को साथ लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचीं, तब मुख्यमंत्री के...
घर वापसी: मुकुल राय के लिए ममता की कुर्सी बदलने के मायने, जानें क्यों कहा था बेचारा...

ममता बनर्जी शुक्रवार को जब मुकुल राय को साथ लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचीं, तब मुख्यमंत्री के बैठने के लिए ऊंची पीठ वाली आरामदायक कुर्सी थी। इसी कुर्सी पर बैठकर वे नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस करती हैं। उनकी बाईं तरफ पहले मुकुल राय और फिर अभिषेक बनर्जी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठे थे। ममता ने भतीजे अभिषेक को बोल कर अपनी कुर्सी बदलवाई और वे भी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठीं। उनका यह व्यवहार बताता है कि मुकुल राय की घर वापसी पर ममता ने उन्हें कितना महत्व दिया है।

उससे पहले कॉन्फ्रेंस के लिए स्टेज पर चढ़ते वक्त ममता के पीछे तृणमूल कांग्रेस में नंबर दो की हैसियत रखने वाले और हाल ही पार्टी के महासचिव बने अभिषेक बनर्जी और मुकुल राय दोनों साथ थे। अभिषेक ने पीछे हटते हुए मुकुल राय से आगे चलने को कहा। मुकुल, ममता के ठीक बगल में बैठे थे और उनके बाद थे अभिषेक। मुकुल के पीछे उनके बेटे शुभ्रांशु राय थे, जो भाजपा के टिकट पर बीजपुर सीट से विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। अभिषेक ने दोनों को उत्तरीय पहनाकर पार्टी में शामिल कराया।

ममता इस मौके को तृणमूल बनाम भाजपा नहीं बनाना चाहती थीं। इसलिए पहले मुकुल ने कहा कि मैं भाजपा में क्यों नहीं रह सका, इसके बारे में बाद में विस्तार से लिखकर बताऊंगा। उसके बाद संवाददाताओं ने जब उनसे यही सवाल किया कि आप भाजपा क्यों छोड़ रहे हैं, तो ममता ने स्पष्ट कहा कि यहां व्यक्तिगत सवाल न पूछे जाएं। मुकुल ने सिर्फ इतना कहा कि कोई भी भाजपा में नहीं रहना चाहता है।

मुकुल राय के प्रति ममता का रुख हमेशा नरम रहा है। कुछ दिनों पहले ही शुभेंदु अधिकारी के साथ तुलना पर ममता बनर्जी ने कहा था, “मुकुल राय उतने बुरे नहीं हैं। बेचारा मुकुल...।” तभी से यह संभावना व्यक्त की जाने लगी थी कि मुकुल राय तृणमूल में आ सकते हैं। यहां तक कि विधानसभा चुनाव के दौरान भी ममता ने कभी मुकुल राय के खिलाफ बयान नहीं दिया। प्रेस कॉन्फ्रेंस में ममता ने कहा कि चुनाव में मुकुल राय ने तृणमूल के खिलाफ कुछ नहीं बोला था। उन्होंने स्पष्ट किया कि तृणमूल छोड़ भाजपा में गए और नेताओं की घर वापसी होगी, लेकिन उनकी नहीं जिन्होंने पार्टी के खिलाफ दुष्प्रचार किया है। 2017 सितंबर में तृणमूल से सबसे पहले मुकुल राय ही भाजपा में गए थे। अब देखना है कि मुकुल राय के पीछे घर वापसी करने वालों की कितनी लंबी कतार लगती है।

पिछले कुछ दिनों से मुकुल राय को देखकर यह आसानी से समझा जा सकता था कि भाजपा में वे असहज महसूस कर रहे हैं। भाजपा में जाने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में मुकुल ने प्रदेश में सक्रिय भूमिका निभाई थी। बल्कि वे ही पार्टी के मुख्य रणनीतिकार थे। तब भाजपा को 42 में से 18 सीटें मिली थीं। लेकिन विधानसभा चुनाव में रणनीति बनाने या टिकट बंटवारे में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। पार्टी ने उन्हें सिर्फ एक प्रत्याशी बना कर रख दिया गया था। पार्टी सूत्रों के अनुसार खुद अमित शाह ने उनसे चुनाव लड़ने को कहा था। हालांकि उन्हें कृष्णा नगर उत्तर जैसी सीट दी गई जहां से भाजपा प्रत्याशी के लिए जीतना आसान था। इस तरह दो दशक के राजनीतिक जीवन में मुकुल राय पहली बार विधायक बने थे। मुकुल की नाराजगी की और भी वजहें बताई जा रही हैं। शुभेंदु अधिकारी, मुकुल राय से बहुत जूनियर हैं फिर भी भाजपा ने शुभेंदु को विपक्ष का नेता बना दिया। जब दोनों पहले तृणमूल में थे तब भी दोनों के बीच नहीं पटती थी।

मुकुल राय के तृणमूल में जाने के बाद भाजपा विधायक अनुपम हाजरा ने फेसबुक पर लिखा, “यह अवज्ञा और अपमान की करुण परिणति है।” बाद में मीडिया से बातचीत में अनुपम ने कहा कि पार्टी के अनेक नेताओं और कार्यकर्ताओं का चुनाव में इस्तेमाल ही नहीं किया गया। ये सब चुनाव में बड़ी और सक्रिय भूमिका निभाना चाहते थे। गौरतलब है कि गृह मंत्री अमित शाह ने 200 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा किया था, लेकिन पार्टी को 77 सीटों से ही संतोष करना पड़ा।

मुकुल राय को लेकर भाजपा का स्थानीय नेतृत्व हमेशा नाखुश सा रहा है। प्रदेश पार्टी अध्यक्ष दिलीप घोष से जब भी मुकुल की भूमिका के बारे में पूछा जाता तो वे कहते थे कि यह केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा। मुकुल के तृणमूल में जाने के बाद उन्होंने कहा, “यह कोई राजनीतिक समस्या नहीं, व्यक्तिगत समस्या है। कोई अगर पार्टी छोड़कर जाना चाहे तो जा सकता है। भाजपा नेता सौमित्र खां ने मुकुल को मीरजाफर संज्ञा दी।”

कई रोज पहले ही मुकुल राय की पत्नी कृष्णा राय को देखने अभिषेक बनर्जी अस्पताल गए थे। अस्पताल में मुकुल राय तो नहीं थे लेकिन उनके बेटे शुभ्रांशु राय के साथ अभिषेक की काफी देर तक बात हुई थी। मीडिया में बताइए तो उसी रात दिलीप घोष भी कृष्णा राय को देखने गए और अगली सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृष्णा राय का हाल चाल पूछने के लिए मुकुल राय को फोन किया था।

फिलहाल चर्चा है कि 30 से ज्यादा भाजपा नेता तृणमूल में लौटना चाहते हैं। मुकुल राय के साथ कुछ नेताओं को वर्चुअल तरीके से पार्टी में शामिल कराने की चर्चा थी, लेकिन वह हो न सका। हाल यह है कि बीरभूम में भाजपा के अनेक नेता-कार्यकर्ता ई रिक्शा पर घूम-घूम कर सार्वजनिक रूप से माफी मांग रहे हैं और कह रहे हैं कि हम तृणमूल में लौट रहे हैं।

अब सवाल उठता है कि तृणमूल में मुकुल राय की भूमिका क्या होगी। 2017 में पार्टी छोड़ने से पहले वे ममता के बाद नंबर दो की हैसियत रखते थे। लेकिन दो दिन पहले ही ममता ने अभिषेक बनर्जी को पार्टी का महासचिव बना दिया और वे इस तरह से पार्टी में नंबर दो बन गए हैं। इसलिए अब मुकुल के लिए वह जगह नहीं खाली रह गई है। दलबदल के कारण संभव है कि वे जल्दी ही विधायक पद से इस्तीफा दे दें। उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया जा सकता है। वैसे भी अभिषेक बनर्जी विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर के साथ मिलकर अपनी क्षमता दिखा चुके हैं। तृणमूल ने कहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वह बंगाल से बाहर दूसरे राज्यों में भी लड़ेगी। दूसरे राज्यों में विस्तार में भी मुकुल राय का इस्तेमाल किया जा सकता है।

सीबीआई ने पिछले दिनों नारद स्टिंग मामले तृणमूल के तीन नेताओं-मंत्रियों को गिरफ्तार किया था, तब सवाल उठे थे कि मुकुल राय और शुभेंदु अधिकारी को क्यों नहीं गिरफ्तार किया। उस मामले में मुकुल राय अभियुक्त नंबर एक हैं। कहा जा रहा है कि औमुकुल पूरी रणनीति के साथ भाजपा से अलग हुए हैं। अब देखना है कि सीबीआई मुकुल राय के खिलाफ क्या कदम उठाती है। या फिर वह सिर्फ मुकुल राय के खिलाफ कदम उठाएगी और शुभेंदु अब भी उसकी जद से बाहर रहेंगे।

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