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जेडीयू में प्रशांत किशोर का बढ़ा कद, बनाए गए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

जेडीयू के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मशहूर चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को...
जेडीयू में प्रशांत किशोर का बढ़ा कद, बनाए गए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

जेडीयू के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मशहूर चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है। हाल ही में जेडीयू में शामिल होकर अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने वाले प्रशांत किशोर का पार्टी में कद अब दूसरे नंबर का हो गया है।

प्रशांत किशोर दो दिन पहले पटना में हुए छात्र संगम में नीतीश के साथ थे। वह16 सितंबर को पटना में जेडीयू कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी में शामिल हुए थे। 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान वे यहां कांग्रेस पार्टी की तरफ से मैदान में उतरे थे लेकिन मोदी और नीतीश जैसे दिग्गजों को सत्ता की सीढ़ियां चढ़ाने वाले इस मैनेजमेंट गुरु को यूपी से निराशा ही हाथ लगी थी।

प्रशांत किशोर को नई जिम्मेदारी मिलने का ऐलान करते हुए पार्टी प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर की योग्यता और क्षमता को देखते हुए यह जिम्मेदारी दी है। मैं इसका स्वागत करता हूं। इससे आने वाले समय में पार्टी को सही दिशा और गति मिलेगी। उन्होंने कहा कि प्रशांत के उपाध्यक्ष बनने से पार्टी मजबूत होगी।

मोदी के कैंपेन के बाद हुए थे चर्चित

प्रशांत किशोर ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के लिए कैंपेन किया था। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रशांत किशोर धीरे-धीरे भाजपा से दूर हो गए। 2014 के बाद सियासी गलियारों में वह तेजी से चर्चित हुए। इसके बाद उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ नीतीश कुमार के लिए कैंपेन किया। नीतीश की जेडीयू और लालू की आरजेडी तथा कांग्रेस को साथ लाकर महागठबंधन बनाने के पीछे भी प्रशांत किशोर की अहम भूमिका मानी जाती है। इस महागठबंधन में बिहार चुनाव में भाजपा को सीधी मात दी।

पिछले साल यूपी चुनावों में कांग्रेस ने ली थी सेवा

इसके बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस के लिए रणनीति बनाने के लिए पीके की सेवा ली। 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव में पीके ने 27 साल यूपी बेहाल का नारा दिया। राहुल गांधी ने प्रदेश भर में खाट सभा का आयोजन किया। इसके बाद सपा से गठबंधन की रूपरेखा तैयार करने में भी पीके की रणनीति को ही प्रमुख माना गया लेकिन चुनाव के परवान चढ़ते-चढ़ते पीके धीरे-धीरे गुम होते गए।

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