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लॉकडाउन में बुरे फंसे नीतीश, सुशासन बाबू की ये है दुविधा

आगामी विधानसभा चुनाव के महज कुछ महीने पूर्व कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी के संक्रमण को रोकने की...
लॉकडाउन में बुरे फंसे नीतीश, सुशासन बाबू की ये है दुविधा

आगामी विधानसभा चुनाव के महज कुछ महीने पूर्व कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी के संक्रमण को रोकने की चुनौती के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बड़ी राजनैतिक दुविधा में घिर गए हैं। लॉकडाउन के चलते राज्य से बाहर फंसे लाखों दिहाड़ी मजदूर और कोटा में पढ़ रहे हजारों छात्रों को घर वापस बुलाने के प्रश्न पर उनकी सरकार को विपक्ष की तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। कई मुख्यमंत्रियों ने देशव्यापी बंदी के दौरान अन्य प्रदेशों में फंसे अपने-अपने राज्य के लोगों को विशेष इंतजाम करके वापस बुलाने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन नीतीश अब तक इसे गैर-जरूरी समझते रहे हैं।

नीतीश के अनुसार, महामारी से निबटने का सबसे कारगर तरीका सामाजिक दूरी ही है। लोगों की आवाजाही से संक्रमण का खतरा बढ़ेगा। नीतीश चाहते हैं कि अभी जो जहां है, वहीं रहे। कोटा में कोचिंग कर रहे छात्रों की वापसी का विरोध करते हुए उन्होंने कहा, “ये छात्र संपन्न परिवारों से आते हैं और अधिकतर अपने परिजनों के साथ रहते हैं। उन्हें वापस बुलाने की जरूरत क्यों है।” मुख्यमंत्री के अनुसार, जब प्रवासी मजदूर कई सप्ताह से अन्य राज्यों में फंसे हैं, कोटा से छात्रों को बुलाना उचित नहीं है। नीतीश सरकार ने विभिन्न शहरों में फंसे लोगों की मदद के लिए कई कदम उठाए हैं और राहत कार्यों पर अब तक करीब 6,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।

बिहार से हर साल हजारों छात्र इंजीनियरिंग या मेडिकल की परीक्षा की तैयारी के लिए कोटा जाते हैं। 25 मार्च से शुरू लॉकडाउन के कारण वहां के सभी संस्थान बंद हो गए और आवागमन के साधनों के अभाव में अधिकतर छात्र वहीं फंस गए हैं। इनमें बिहार से गए छात्रों की संख्या लगभग 12 हजार है। उनमें से अनेक वापस आना चाहते हैं और कुछ ने इसके लिए धरना भी दिया है। इसी बीच उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों ने बसें भेजकर अपने छात्रों को वापस बुला लिया तो विपक्षी पार्टियों ने नीतीश पर असंवेदनशील होने का आरोप लगाया। कोटा में छात्रों का मामला अब पटना हाई कोर्ट पहुंच चुका है। सुनवाई के दौरान नीतीश सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि लॉकडाउन में छात्रों को वहां से नहीं लाया जा सकता। 27 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग की तो वहां भी नीतीश ने केंद्रीय आपदा अधिनियम में संशोधन करके केंद्र से सभी राज्यों के लिए एक समान नीति बनाने की मांग की।

इस बीच, राजद समेत सभी विपक्षी दलों ने नीतीश पर हमला तेज कर दिया है। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव कहते हैं कि दस राज्य सरकारों ने 25,000 से अधिक छात्रों को वापस बुला लिया, लेकिन नीतीश अपने अहं और छात्रों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा नहीं कर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकार सत्ताधारी दलों के रसूखदार नेताओं को विशेष पास देकर उनके बच्चों को कोटा से वापस लाने की सुविधा दे रही है, लेकिन आम लोगों के बच्चों को वहीं छोड़ दिया है। राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी के अनुसार 17 लाख प्रवासी श्रमिकों और कोटा में पढ़ाई कर रहे कुछ हजार छात्रों को एक ही पलड़े पर तौल देना असंवेदनशील और अमानवीय भी है।

दरअसल, भाजपा के एक विधायक द्वारा अपनी बेटी को कोटा से सड़क मार्ग द्वारा बिहार वापस लाने से विपक्ष को बड़ा मुद्दा मिल गया है। नवादा जिले के हिसुआ के विधायक अनिल सिंह हाल ही अनुमंडल अधिकारी से अनुमति पत्र लेकर कोटा में पढ़ रही अपनी बेटी को लेकर आ गए। जब विवाद बढ़ा तो उन्होंने यह दावा किया कि ऐसा करने वाले वह अकेले नहीं हैं बल्कि 700 अन्य व्यक्तियों को ऐसी अनुमति मिली है। हालांकि, इसके बाद पास जारी करने वाले अधिकारी को तो निलंबित कर दिया गया, लेकिन इस प्रकरण ने नीतीश सरकार की समस्या जरूर बढ़ा दी है।

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जब लाखों मजदूर अन्य राज्यों में फंसे हैं, तब कोटा से छात्रों को बुलाना उचित नहीं होगा

नीतीश कुमार

मुख्यमंत्री, बिहार

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