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सीपीएम का आरोप, सरकार का राहत पैकेज झांसा, जरूरतमंदों को एक पैसा नहीं दिया

वामपंथी दल सीपीएम ने सरकार के राहत पैकेज को क्रूर मजाक और झांसा बताया है। एक बयान में पार्टी ने कहा है...
सीपीएम का आरोप, सरकार का राहत पैकेज झांसा, जरूरतमंदों को एक पैसा नहीं दिया

वामपंथी दल सीपीएम ने सरकार के राहत पैकेज को क्रूर मजाक और झांसा बताया है। एक बयान में पार्टी ने कहा है कि महामारी और लॉकडाउन के चलते सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों, खासकर प्रवासी मजदूरों,  रेहड़ी लगाने वालों और  घरों में काम करने वालों को सरकार ने एक पैसा भी नहीं दिया है। पैकेज में मुख्य तौर से कर्ज के लिए प्रावधान किए गए हैं। एक मात्र सीधा फायदा 3,500 करोड़ रुपये का है जो सरकार मुफ्त अनाज पर खर्च करेगी। पार्टी का कहना है कि पहले तो सरकार ने भ्रष्टाचार के नाम पर करोड़ों राशन कार्ड रद्द कर दिए और अब बिना कार्ड वालों को मदद करने की बात कह रही है। एक देश एक राशन कार्ड जैसी रीपैकेजिंग योजनाएं 2021 के मध्य तक ही लागू हो सकेंगी। इन योजनाओं का आज लोगों को कोई लाभ नहीं मिल सकेगा।

प्रवासी मजदूरों और मनरेगा पर गलत बयानी का आरोप

पार्टी के अनुसार, वित्त मंत्री प्रवासी मजदूरों की संख्या कम बता रही हैं। उन्होंने इनकी संख्या 8 करोड़ बताई है जबकि मार्च 2020 में संसद में इनकी संख्या 10 करोड़ बताई गई थी। इसका मतलब यह है कि मुफ्त अनाज वितरण का फायदा सबको नहीं मिल पाएगा। मनरेगा के तहत 40 से 50 फ़ीसदी कार्य दिवस बढ़ने का दावा भी गलत है। अप्रैल 2019 में 27.3 करोड़ कार्य दिवस पैदा हुए थे जबकि इस साल अप्रैल में सिर्फ 11.1 कार्य दिवस पैदा हुए जो एक दशक में सबसे कम है। इसलिए जो प्रवासी मजदूर अपने गांव लौट रहे हैं उनके सामने बेरोजगारी की बड़ी समस्या होगी।

एसडीआरएफ का भुगतान अनिवार्य है, केंद्र की उदारता नहीं

पार्टी के अनुसार वित्त मंत्री का यह कहना कि राहत शिविरों में रहने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए केंद्र ने खाने के खर्च का भुगतान किया है, जले पर नमक छिड़कने जैसा है। एसडीआरएफ के तहत केंद्र सरकार जो आवंटन करती है वह कानूनी रूप से अनिवार्य है। यह हर साल होता है, भले ही कोई महामारी हो या नहीं। इसमें केंद्र और राज्य की 75:25 अनुपात में हिस्सेदारी होती है। सच तो यह है कि केंद्र सरकार ने राज्यों को एक पैसा भी अतिरिक्त नहीं दिया है, फिर भी वह इसे अपनी उदारता के रूप में दिखा रही है।

3 महीने तक प्रतिमाह 7500 रुपये नकद ट्रांसफर हो

पार्टी का कहना है कि लॉकडाउन की अवधि में बेरोजगारों की संख्या 14 करोड़ बढ़ गई है, 80 फ़ीसदी शहरी गरीब अपनी नौकरी खो चुके हैं। ऐसे में सरकार को उन परिवारों को 3 महीने तक प्रतिमाह 7500 रुपये नकद ट्रांसफर करना चाहिए जो आयकर के दायरे से बाहर हैं। अनुमान है कि एक तिहाई परिवारों के पास एक सप्ताह से अधिक का खाना उपलब्ध नहीं है, ऐसे में यह जरूरी है कि 6 महीने तक प्रति व्यक्ति प्रति माह 10 किलो अनाज दिया जाए। सरकार के पास गोदामों में 7.7 करोड़ टन अनाज पड़ा है।

पार्टी का कहना है कि लॉकडाउन के चलते किसानों का संकट गहरा गया है इसलिए उन्हें उनके कर्ज माफ किए जाने चाहिए। राज्यों को भी बड़ी मात्रा में वित्तीय मदद की जरूरत है और यह मदद तत्काल दी जानी चाहिए। सबसे जरूरी बात यह है कि प्रवासी मजदूरों के लिए मुफ्त में आने-जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

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