भाजपा नीत एनडीए के खिलाफ बिहार में विपक्षी दलों का व्यापक गठबंधन बनाने के प्रयासों को झटका लगा है। बसपा ने राज्य की सभी 40 लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
बसपा के प्रदेश प्रभारी लालजी मेधकर ने बताया कि पार्टी सुप्रीमो मायावती ने राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी के निर्देश दिए हैं। इसके लिए उन्होंने संभावित उम्मीदवारों और पार्टी पदाधिकारियों की 28 फरवरी को दिल्ली में बैठक बुलाई है।
बसपा ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला ऐसे वक्त में किया है जब राजद, कांग्रेस और अन्य छोटे दलों के महागठबंधन में सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया है, जबकि एनडीए में सीटों का बंटवारा हुए करीब दो महीने हो चुके हैं। मेधकर ने अकेले चुनाव लड़ने के फैसले की वजह नहीं बताई है। लेकिन, माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा से गठबंधन के कांग्रेस के इनकार करना इस फैसले की मुख्य वजह है। बताया जाता है कि कांग्रेस का यह फैसला मायावती को काफी नागवार गुजरा था।
वैसे, बिहार में बसपा की मजबूत पैठ नहीं है। 2015 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को 2.07 फीसदी वोट ही मिले थे। इसके बावजूद दलित वोटरों को पूरी तरह से लामबंद करने के लिए बसपा को महागठबंधन के साथ जोड़ने की राजद काफी समय से कोशिश कर रही थी।
2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बसपा की करारी पराजय के बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने मायावती को राज्यसभा में भेजने की पेशकश भी की थी। हाल में यूपी में सपा-बसपा का गठबंधन होने के बाद लालू के बेटे और राजनीतिक वारिस तेजस्वी यादव ने लखनऊ में मायावती से मुलाकात की थी। उन्होंने मायावती के पैर छूने की तस्वीरें ट्वीट की थी। यह भी दावा किया जा रहा है कि तेजस्वी के कहने पर ही मायावती ट्विटर पर सक्रिय हुई हैं। लेकिन, मायावती के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले से दलितों को लुभाने के राजद की रणनीति पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    