Advertisement

हार के बाद मोदी ने बदले तेवर, आदिवासी नहीं रहे जरूरी ? खेलेंगे ओबीसी कार्ड

झारखण्‍ड विधानसभा चुनाव-2019 में उम्‍मीद के विपरीत पराजय के बाद भाजपा अपनी रणनीति बदल रही है ?...
हार के बाद मोदी ने बदले तेवर, आदिवासी नहीं रहे जरूरी ? खेलेंगे ओबीसी कार्ड

झारखण्‍ड विधानसभा चुनाव-2019 में उम्‍मीद के विपरीत पराजय के बाद भाजपा अपनी रणनीति बदल रही है ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्रीय मंत्रिमंडल में व्‍यापक फेरबदल में झारखण्‍ड से अन्‍नपूर्णा देवी को स्‍थान और राज्‍यपाल के रूप में रमेश बैस की तैनाती कुछ इसी तरह के संकेत दे रहे हैं। इस तरह झारखण्‍ड के अब केंद्र में तीन मंत्री हो गये हैं, जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा और अल्‍पसंख्‍यक मामलों के मंत्री मुख्‍तर अब्‍बास नकवी। नकवी झारखण्‍ड से राज्‍यसभा के सदस्‍य हैं। मगर लोग उन्‍हें भूल चुके हैं कि झारखण्‍ड से उनका कोई वास्‍ता भी है। उनके लिए न यहां का दौरा और न यहां के लिए विशेष योजना।

हाल तक आदिवासी बहुल झारखण्‍ड में भाजपा ट्राइबल कार्ड खेल रही थी। मगर 2019 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 सीटों में सिर्फ दो सीटों पर विजय ने भाजपा को झकझोर दिया था। विधानसभा अध्‍यक्ष दिनेश उरांव, राजयपाल द्रौपदी मुर्मू  और चुनाव के कुछ पहले केंद्र में आदिवासी कल्‍याण मंत्री के रूप में अर्जुन मुंडा की तैनाती काम नहीं आई। उसके बावजूद मोह भंग नहीं हुआ। बाहर से आये ( झारखण्‍ड विकास मोर्चा सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी द्वारा पार्टी का भाजपा में विलय), बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता बनाने के लिए कुछ महीने भाजपा में यह सीट खाली रही। अभी तक उन्‍हें नेता विरोधी दल की मान्‍यता नहीं मिल सकी है। तो सांसद समीर उरांव को पिछले राष्‍ट्रीय अनुसूचित जनजाति मोर्चा का अध्‍यक्ष बना दिया गया। मगर तीन विधानसभा उप चुनाव में आदिवासी फैक्‍टर काम नहीं करता नहीं दिखा। इस बीच सरना-आदिवासी धर्म कोड पर मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन की चाल के आगे भाजपा को सरेंडर की भूमिका में आ जाना पड़ा। संघ के विचार के विपरीत विधानसभा में आम समर्थन करना पड़ा। वैसे भी जनजाति समाज का जेएमएम से पुराना जुड़ाव है। यह देख लगता है कि भाजपा के इरादे में कुछ नये प्रयोग की खिचड़ी पक रही है।

26 प्रतिशत जनजातीय समाज से ज्‍यादा 54 प्रतिशत आबादी वाला ओबीसी का मोह खींच रहा है। 2019 के विधानसभा चुनाव में भी ओबीसी को आरक्षण का मामला बड़ा मुद्दा था। आबादी के हिसाब से आरक्षण की मांग को लेकर लगातार आंदोलन, प्रदर्शन होते रहे हैं। इनकी आबादी 54 प्रतिशत है मगर आरक्षण मात्र 14 प्रतिशत। जबकि जनजाति की आबादी 26.3 प्रतिशत है मगर आरक्षण 26 प्रतिशत। वहीं अनुसूचित जाति की आबादी 11 प्रतिशत और आरक्षण 10 प्रतिशत है। जेएमएम से जनजातीय समाज का पुराना जुड़ाव है। ओबीसी के आरक्षण का दायरा बढ़ाने के लिए लगातार मांग हो रही है, आंदोलन होते रहे। रघुवर दास ने भी आरक्षण का दायरा बढ़ाने का लालीपॉप दिखाते हुए इनकी आबादी का सर्वे का निर्देश दिया था। कहा था कि आयोग सिफारिश करे ओ राज्‍य सरकार कैबिनेट से पास करायेगी। झामुमो ने भी चुनावी घोषणा पत्र में सरकारी नौकरियों में पिछड़ा वर्ग के लोगों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था। 1978 में मंडल आयोग और 2014 को राज्‍य पिछड़ा वर्ग आयोग ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण की अनुशंसा की थी मगर इसे सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया।

पिछले साल राज्‍य पिछड़ा वर्ग आयोग ने हेमन्‍त सरकार से ओबीसी को 50 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की थी। तमिलनाडु और महाराष्‍ट्र में लागू आरक्षण व्‍यवस्‍था और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अध्‍ययन कर आयोग ने राज्‍य सरकार से यह सिफारिश की थी।

राजभवन के रवैये को लेकर झामुमो के साथ लगातार तल्‍खी रही है। हाल में तो ट्राइबल एडवाजरी कमेटी सहित कुछ मुद्दों पर आमने-सामने जैसे हालात हो गये थे। रमेश बैस के आने के बाद शांति रहेगी कहना कठिन है। कुछ साल पहले छत्‍तीसगढ़ में कुर्मियों के राज्‍य सम्‍मेलन में रमेश बैस ने कहा था कि छत्‍तीसगढ़ आदिवासी बहुल है कहकर लंबे समय से गुमराह किया जाता रहा। यह ओबीसी बहुल राज्‍य है। आदिवासियों की आबादी यहां 32 प्रतिशत तो ओबीसी की 50 प्रतिशत है। कुर्मी समाज सभी ओबीसी को लेकर आगे बढ़े, हमें सब को एक करना होगा। बहरहाल झारखण्‍ड की स्थिति ओबीसी और जनजाति को लेकर कुछ इसी तरह है। मगर बैस अब राज्‍यपाल की भूमिका में होंगे। आगे भाजपा के और पत्‍ते खुलेंगे तब स्थिति ज्‍यादा साफ होगी।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad