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लोकसभा में पेश हुआ सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण का बिल

मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण देने से जुड़ा 124वां...
लोकसभा में पेश हुआ सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण का बिल

मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण देने से जुड़ा 124वां संविधान संशोधन बिल मंगलवार को सदन में पेश किया। केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने इसे पटल पर रखा। इस बिल को बसपा, कांग्रेस, आप और एनसीपी ने समर्थन देने की बात कही है। वहीं, डीएमके ने इसका विरोध किया है। बता दें कि कैबिनेट ने बीते दिन ही इस फैसले पर मुहर लगाई है। इस बिल को लेकर राज्यसभा के सत्र को एक और दिन के लिए बढ़ा दिया गया है क्योंकि शीतकालीन सत्र आज खत्म हो रहा है।

सरकार के इस फैसले पर कैबिनेट की मुहर लगने के बाद आज इसकी असली परीक्षा है। दरअसल, संसद का शीतकालीन सत्र पूरी तरह से राफेल विमान सौदे में कथित गड़बड़ी को लेकर हंगामेदार रहा। अब आज सत्र का आखिरी दिन है, ऐसे में सरकार के सामने इस बिल को पेश करने और पास करवाने की चुनौती है। जबकि इस दौरान दौरान विपक्ष पूरी तरह से हमलावर है। इसे लेकर बीजेपी ने अपने सभी सांसदों को मौजूद रहने के लिए व्हिप जारी किया था। विपक्षी दल कांग्रेस ने भी सांसदों से मौजूदगी के लिए कहा था। जानकारी के मुताबिक शाम पांच बजे बिल पर चर्चा होगी।

सही नीयत से नहीं लिया फैसला: मायावती

बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने फैसले का समर्थन किया है। मंगलवार को मीडिया से बात करते हुए मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी इस फैसले का समर्थन करती है और संसद में पेश किए जाने वाले संविधान संशोधन बिल का समर्थन करेगी। हालांकि मायावती ने कहा, "लोकसभा चुनाव से पहले लिए गया यह फैसला हमें सही नीयत से लिया गया नहीं लगता है। यह चुनावी स्टंट और राजनीतिक छलावा लगता है। अच्छा होता अगर भाजपा सरकार यह फैसला चुनाव के और पहले लेती। बाबासाहेब के अथक परिश्रम और त्याग के बाद ही गरीब और शोषित वर्ग के दलित और आदिवासियों को आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था काफी पुरानी हो चुकी है। इसलिए एससी-एसटी ओबीसी को उनकी आबादी के अनुपात के हिसाब से आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था लागू की जानी चाहिए।"

संसद में अग्निपरीक्षा

सामान्य वर्ग के गरीब तबके के लिए सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में 10 पर्सेंट आरक्षण को भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने ऐतिहासिक फैसला करार दिया है जबकि कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का कहना है कि यह चुनाव से पहले का स्टंट है। हालांकि किसी भी दल ने खुलकर सरकार के इस फैसले का विरोध नहीं किया है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि लोकसभा में इस बिल को लेकर विपक्षी दलों का रुख क्या हो सकता है। अगर सरकार को संविधान संशोधन बिल को लागू करवाना है तो उसे लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पास करवाना जरूरी है। लोकसभा में तो एनडीए सरकार के पास बहुमत है, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष की स्थिति मजबूत है। ऐसे में सरकार की अग्निपरीक्षा होना तय है।

क्या कहते हैं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी?

संविधान के वर्तमान नियमों के अनुसार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की राह मोदी सरकार के लिए आसान नहीं है। संवैधानिक संशोधन के लिए लोकसभा और राज्यसभा में सरकार को पूर्ण बहुमत (50 प्रतिशत से अधिक) के अलावा विशेष बहुमत (उपस्थित और वोट करने वालों का 2/3) की जरूरत होगी।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी ने ‘आउटलुक’ को बताया, ‘चुनावों तक संशोधन द्वारा आरक्षण लागू करना सरकार के लिए मुश्किल है। राज्यसभा में भी भाजपा के पास बहुमत नहीं है। अपर कास्ट नाराज है इसलिए उसे संतुष्ट करने के लिए यह दांव चला गया है। भाजपा अगर इसमें असफल होती है तो विपक्ष पर आरोप लगाएगी।‘ साथ ही तुलसी हर वर्ग के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत करते हैं। उनका कहना है कि इस फैसले के बाद एससी-एसटी भी नाराज होंगे और उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वह कहते हैं कि इससे आर्टिकल 15 और 16 पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि संविधान में आर्थिक आधार पर समानता की बात नहीं है।

मोदी सरकार के सामने क्या है चुनौती?

मोदी सरकार के सामने फिलहाल कई चुनौतियां हैं, जिन्हें संविधान में संशोधन कर दूर करना होगा। पहली यह कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय कर रखी है और संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का प्रावधान नहीं है। दूसरा यह है कि संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में केवल सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े होने की बात है।

हालांकि संविधान में कोई परिवर्तन करने के लिए भी सरकार के लिए दोनों सदनों से बहुमत प्राप्त करना भी मुश्किल का काम होगा। माना जा रहा है कि सरकार संसद में आर्थिक आधार पर आरक्षण की नई श्रेणी के प्रावधान वाला विधेयक ला सकती है।

अभी किसको कितना आरक्षण?

साल 1963 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आमतौर पर 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। पिछड़े वर्गों को तीन कैटेगरी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में बांटा गया है।

अनुसूचित जाति (SC)- 15 %

अनुसूचित जनजाति (ST)- 7.5 %

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)- 27 %

कुल आरक्षण- 49.5 %

क्या कहता है संविधान?

संविधान के अनुसार, आरक्षण का पैमाना सामाजिक असमानता है और किसी की आय और संपत्ति के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, आरक्षण किसी समूह को दिया जाता है और किसी व्यक्ति को नहीं। इस आधार पर पहले भी सुप्रीम कोर्ट कई बार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के फैसलों पर रोक लगा चुका है। अपने फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है।

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