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राफेल मामले में जेपीसी के गठन के लिए क्यों अड़ी है कांग्रेस और क्या हो सकता है फायदा

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश में इस समय राफेल का मुद्दा खासा गरमाया हुआ है। एक बार फिर मोदी सरकार...
राफेल मामले में जेपीसी के गठन के लिए क्यों अड़ी है कांग्रेस और क्या हो सकता है फायदा

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश में इस समय राफेल का मुद्दा खासा गरमाया हुआ है। एक बार फिर मोदी सरकार और कांग्रेस आमने-सामने आ गए हैं। एक ओर जहां मोदी सरकार फैसले को अपनी जीत बता रही है तो कांग्रेस सरकार पर कोर्ट से तथ्य छुपाने और देश को गुमराह करने के आरोप लगा रही है। कांग्रेस लगातार ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमेटी (जेपीसी) की मांग कर रही है लेकिन सरकार लगातार इससे बच रही है। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और वित्त मंत्री अरुण जेटली भी साफ कह चुके हैं कि कोर्ट के फैसले के बाद जेपीसी की जरूरत नहीं है। आइए जानते हैं कि आखिर कांग्रेस जेपीसी की मांग पर क्यों अड़ी है और इसके गठन से उसे क्या मिल सकता है।

70 सालों में 8 बार हुआ जेपीसी का गठन

असल में जेपीसी की मांग कांग्रेस यूं ही नहीं कर रही है। इससे पहले जब कांग्रेस सत्ता में थी तो उसने विपक्ष के दवाब पर 1987 में सबसे पहले बोफोर्स मामले में जेपीसी का गठन किया था और तब सरकार को जाना पड़ा था। पिछले 70 सालों में अलग-अलग मामलों को लेकर कुल 8 बार जेपीसी का गठन किया गया है। इसमें 5 बार तो ऐसा हुआ है जब सत्ताधारी दल अगला आम चुनाव हार गई। लगता है, कुछ इसी तरह का डर भी मोदी सरकार को सता रहा है।

कोर्ट को सीक्रेसी का हवाला देकर गुमराह किया गया: गोहिल

कांग्रेस के प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल ने 'आउटलुक' को बताया कि 1987 में राजीव गांधी सरकार ने बोफोर्स तोप खरीद मामले में जेपीसी का गठन किया था तब विपक्ष ने सदन नहीं चलने दिया था जबकि हम खुद सत्ता में थे। तब राफेल मामले में सरकार जेपीसी के गठन से क्यों बच रही है। उनका कहना है कि यह वह शक्तिशाली संस्था है, जिसके सामने वह सब कुछ सच सामने आ जाएगा जो मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने सीक्रेट के नाम पर,जो तथ्य छिपाएं हैं वह सामने आ जाएंगे। कोर्ट के सामने न तो कागजात पेश किए गए और सीक्रेसी का हवाला देकर कोर्ट को गुमराह किया गया।

'सरकार कुछ छिपाना चाहती है'

गोहिल ने कहा कि अब सरकार ने हलफनामा दायर कर कैग के मामले में टाइपो गलती बताकर कोर्ट में खुद संशोधन की बात कही है जिससे साफ है कि सरकार ने कोर्ट को गुमराह किया है। उन्होंने कहा कि मैं खुद पेशे से वकील हूं। सुप्रीम कोर्ट में जब कोई भी मामला दायर होता है तो उसे कई वकील बारीकी से देखते हैं और शब्दों को हू-ब-हू मिलाया जाता है तब सरकार की ओर से इस तरह की बात करना अजीब सा लगता है। सरकार के हलफनामे से यह साफ है कि सरकार राफेल को लेकर छिपाना चाहती है और जेपीसी में सब कुछ साफ हो जाएगा। हालाकि इसमें भी सत्तारूढ़ सरकार का ही बहुमत रहता है लेकिन इसमें सभी दलों के आनुपातिक आधार पर सदस्य होते हैं। जेपीसी में सीक्रेट की बात कहकर तथ्य छिपाए नहीं जा सकते। असल दस्तावेज जेपीसी के सामने आ जाएंगे।

उन्होंने कहा कि सरकार का डील को सीक्रेट कहना तर्कसंगत नहीं है। सीक्रेट हथियार हो सकता है लेकिन डील नहीं। वैसे भी राफेल जैसे मामले को सुनने का क्षेत्राधिकार कोर्ट का नहीं है और यह जेपीसी में सुना जा सकता है। अगर सरकार ने कुछ गलत नहीं किया है तो फिर जेपीसी गठित क्यों नहीं कर देती। सरकार सच उगलने के डर से इससे बच रही है और उसे अगली बार सरकार जाने का डर है।

क्या होती है जेपीसी

जेपीसी संसद द्वारा गठित की जाने वाली एक तदर्थ समिति है जिसका गठन संसद द्वारा किसी विशेष मुद्दों या रिपोर्ट की जांच के लिए किया जाता है। इसके सदस्यों में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों के सदस्य शामिल किए जाते हैं। समिति के सदस्यों की संख्या तय नहीं है, लेकिन इसका गठन इस तरह किया जाता है ताकि सदन के अधिकांश पार्टियों को इसमें प्रतिनिधित्व करने का मौका मिले। आमतौर पर इसमें लोकसभा के 10 और राज्य सभा के पांच सदस्य शामिल किए जाते हैं। इसके पास किसी भी माध्यम से सबूत जुटाने का हक होता है। तकनीकी विषयों पर सलाह के लिए जेपीसी तकनीकी विशेषज्ञों को भी नियुक्त करती है।

 जेपीसी की गठन से इनकार के पीछे एक ठोस कारण है। जेपीसी घोटालों की जांच में एक अहम हथियार है। इसके असीमित अधिकार होते हैं। चूंकि यह मामला सीधे प्रधानमंत्री से जुड़ा हुआ है। ऐसे में यदि जेपीसी बनाई गई तो मोदी से भी सवाल हो सकता है।

कब-कब हुआ है जेपीसी का गठन

- 1987 में जब राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स तोप खरीद मामले में घोटाले का आरोप लगा था।

- 1992 में जब पीवी नरसिंह राव की सरकार पर सुरक्षा एवं बैंकिंग लेन-देन में अनियमितता का आरोप लगा था।

- 2001 में स्टॉक मार्केट घोटाले को लेकर जेपीसी का गठन हुआ था। हालांकि इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिला।

- 2003 में भारत में बनने वाले सॉफ्ट ड्रिंक्स और अन्य पेय पदार्थों में कीनटाशक होने की जांच के लिए किया गया था।

- 2011 में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच को लेकर हुआ था।

- 2013 में वीवीआईपी चॉपर घोटाले की जांच को लेकर हुआ।

- 2015 में भूमि अधिग्रहण,पुनर्वास बिल को लेकर किया गया।

- 2016 में आखिरी बार एनआरसी मुद्दे को लेकर हुआ।

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