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प्रियंका की गंगा यात्रा में कितना रंग, लगा सकेंगी कांग्रेस की नैया पार

्“देश संकट में है इसलिए देश को बचाने के लिए निकली हूं।” यह बात कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने...
प्रियंका की गंगा यात्रा में कितना रंग, लगा सकेंगी कांग्रेस की नैया पार

्“देश संकट में है इसलिए देश को बचाने के लिए निकली हूं।” यह बात कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने प्रयागराज से गंगा यात्रा की शुरुआत करते हुए कही। लेकिन प्रियंका की यह यात्रा उनकी पार्टी को संकट से निकालने में कितनी अहम भूमिका निभाती यह देखने वाली बात होगी। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर प्रियंका की इस यात्रा को काफी अहम माना जा रहा है। संगम तट से शुरू हुई यह यात्रा भले ही छह लोकसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी, लेकिन प्रियंका इस दौरान पूर्वी यूपी में कई समीकरणों अपने पक्ष में करने की कोशिशों में दिखीं।

इस दौरे की शुरुआत उन्होंने संगम नगरी प्रयागराज से की और वो गंगा के रास्ते नौका यात्रा करते हुए वाराणसी पहुंचीं। इस दौरे पर प्रियंका गांधी जगह-जगह लोगों से संवाद करती और मंदिरों के दर्शन करती रहीं। वह गंगा के तटों पर मौजूद अलग-अलग गांवों में भी गईं।

ऐसे में प्रियंका गांधी की ये गंगा यात्रा इतनी अहम क्यों है और कांग्रेस इससे क्या हासिल करने वाली है इस पर एक नजर डालते हैं-

मोदी असर का तोड़

आज से पांच साल पहले जब पीएम नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से अपनी उम्मीदवारी दाखिल की थी तो उस समय उन्होंने कहा था कि वो खुद नहीं आए हैं बल्कि मां गंगा ने बुलाया है। नरेंद्र मोदी के इस बयान का असर ये हुआ कि वो पूर्वांचल के मतदाताओं को अपने आप से जोड़ने में सफल रहे है। उसी नक्शेकदम पर चलते हुए कांग्रेस को विश्वास है कि गंगा यात्रा के जरिए वो लोगों के करीब आ सकेंगी। इस कवायद के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से बेहतर और दूसरा कौन हो सकता था।

ईबीसी पर सेंध

इस गंगा यात्रा के जरिए प्रियंका पूर्वी यूपी की अत्‍यंत पिछड़ी जातियों (ईबीसी) को साधने का प्रयास करती दिखीं। मुख्य रूप से मछुआरों और निषादों को जो पिछले चुनावों में बीजेपी को वोट करते रहे हैं। पूरे सूबे में इन जातियों की आबादी करीब 12 फीसदी है। दरअसल, गोरखपुर उपचुनाव के परिणामों के बाद निषाद सूबे में एक बड़ी ताकत बनकर उभरे हैं। निषादों को अपने पाले में बनाए रखने के लिए बीजेपी भी जीतोड़ मेहनत कर रही है। इस बात की पुष्टि कांग्रेस पार्टी के अध्‍यक्ष राज बब्‍बर भी करते हैं। उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि यह गंगा मैया के आशीर्वाद से तट पर बसे उन लोगों तक पहुंचने का प्रयास है जिन्‍हें सत्ताधारियों की सियासत कम प्राथमिकता देती है। उन्‍होंने कहा, 'प्रियंका गांधी केवट, मछुआरों और दूसरे आमजन के बीच 3 दिन तक संगम से काशी की गंगा यात्रा पर हैं। एकतरफा मन की बात नहीं जनमानस से असली संवाद।'

माना जा रहा है कि प्रियंका गैर यादव, गैर कुर्मी और गैर जाटव जातियों को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रही हैं। ऐसी अत्‍यंत पिछड़ी जातियों की संख्‍या उत्तर प्रदेश में लगभग 34 फीसदी है। इनमें निषाद, मछुआरा, बिंद, चौहान, धोबी, कुम्‍हार आदि शामिल हैं। ये जातियां ज्‍यादातर गंगा के किनारे वाले इलाकों में बसी हैं। इन जातियों का मिर्जापुर, जौनपुर, इलाहाबाद, लखीमपुर खीरी, फतेहपुर, मुजफ्फरनगर, अंबेडकर नगर, भदोही जैसी सीटों पर अच्‍छा खासा प्रभाव है।

हिंदू विरोधी छवि तोड़ने की कोशिश

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी की हिंदु विरोधी छवि को तोड़ने की कोशिश लंबे समय से कर रहे हैं। अब प्रियंका ने हनुमान जी के दर्शन के साथ गंगा यात्रा की शुरुआत कर अपनी हिंदू विरोधी छवि को तोड़ने की कोशिश की। वह मिर्जापुर स्थित विन्धवासिनी मंदिर भी गईं।  कई दक्षिणपंथी संगठन अक्‍सर उन्‍हें ईसाई बताकर उन निशाना साधते रहते हैं। ऐसे में प्रियंका ने हनुमान जी की पूजा करके बीजेपी की इस धारणा को तोड़ा। प्रियंका गांधी रास्‍ते में शीतला माता, सीता जी और भगवान शिव के मंदिर भी गईं।

मुश्किलें और भी...

इस यात्रा के दौरान प्रियंका का मुख्य फोकस मोदी की सीट वाराणसी पर था। हालांकि कांग्रेस सबसे पुरानी पार्टी है और एक वक्त था जब वाराणसी से कांग्रेस के सांसद चुने जाते थे, लेकिन 1989 में जनता दल ने एक बार जो कांग्रेस को बेदखल किया उसके बाद पार्टी सिर्फ 2004 में सफल हो पाई जब कांग्रेस से राजेश मिश्रा सांसद चुने गए। प्रियंका गांधी इन तीन दिनों में हजारों लोगों से मिली हैं। लेकिन लोगों का मानना है कि वाराणसी में कांग्रेस की राह इतना सरल नहीं है। यहां  कैडर को मजबूत करने के साथ ही प्रियंका गांधी को कई और चुनौतियों से जूझना होगा।

 

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